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RASHMI SHUKLA

दिल में जज़्बात थे अपनी पहचान बनाऊं... अपनी कलम को अपनी आवाज़ बनाऊं...✍️

Voice of RASHMI SHUKLA

नवरात्र व्रत/उपवास में बरतें सावधानी!

व्रत रखने से शरीर के कई विषैले पदार्थ शरीर से बाहर निकल जाते हैं। साथ ही पाचन दृष्टि से भी काफी फायदेमंद होता है।

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बेरोज़गार

रोज़गार के नाम पर जिन्होंने ठगा है, ना भूलिए वो किसी का भी सगा है, चुनावों में बड़े दावे करने वालों से, आज रोजगार मांगों तो लाठी मिलती है।

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तेरे आने से…

तेरे ना आने से कुछ भी नहीं बदला बस रातें करवटों में गुज़री दिल को दिलासा देते,रात भी आई थी तारों भरी चादर के साथ पर....

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ना मायका न ससुराल, कोई घर नहीं मेरा!

छह गज की साड़ी में मायके की इज्ज़त लिए,आंखों में बिना कोई सपना पाले नए जीवन का,चल दी ससुराल की ओर एक नए घर को संवारने। 

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क्यों सबका अस्तित्व बनाने वाली खुद अपना अस्तित्व ढूंढती है…

कितनी सरलता से एक स्त्री एक बीज को फूल बनाती है और पूरी बगिया को अपने प्रेम से सींचती है फिर क्यों वह अपने अस्तित्व को ही खोज नहीं पाती?

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और अचानक मुझे अपना मनचाहा ‘जीवनसाथी’ मिल गया…

अब पिछली बार की बात ही ले लो... ट्रेन में किसी लड़के से हाथापाई कर ली थी। कौन समझाए लड़की का मामला है कहीं ऊंच-नीच हो गई तो?

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मासिक पीरियड में पेड टाइम-ऑफ पॉलिसी

महीने के उन दिनों के मुश्किल पड़ाव में घर और काम को एक समान समय देना पूरे  जोश के साथ वह भी इतने दर्द में बहुत बड़ी बात होती है।

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मेरे हिस्से का इतवार कहां है?

बेफिक्री वाले बचपन कहां है, मां के हाथों की मालिश कराएँ, रूखे पकते बालों का इतिहास गवाह है, बताओ तो हमारे हिस्से का इतवार कहां है?

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आज हमारी शादी को तीस साल हो गए हैं…

राजेश को ये उम्मीद नहीं थी कि कुछ ऐसा सुनने को मिलेगा। पर उसनेे भी हिम्मत नहीं हारी और पता नहीं क्या सोच कर फ़िर लाईन में लग गया।

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अरे भाग्यवान! कैसा लगा ये सरप्राइज…

बुआ जी कम फिल्मी थीं? सविता जी का फोन आते उन्होंने जो फिल्मी अंदाज में एक्टिंग कर दिखावा किया कि वो सच में बीमार हैं।

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और ना पहनो चूड़ी-सिंदूर, लोग छेड़ेंगे ही…

स्वरा को ये बात बहुत अंदर तक चुभी। आदित्य ऐसी सोच वाला होगा ये उसने कभी नहीं सोचा था। किसी औरत के पहनावे से उसके छेड़ने ना छेड़ने का क्या मतलब।

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बात सिर्फ मायके की नथ न थी…

अब अगर वह नहीं आए तो मामा की तरफ़ से आई नथ भी नहीं आएगी और उनके ना आने पर चार लोग पूछेंगे सो अलग। ऐसे में क्या जवाब दिया जाता?

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इस दीवाली कुछ अलग करते हैं!

समाज से अलग उनकी भावनाओं को भी जगह देते हैं, किसी का परिवार बनकर भी त्योहार मनाते हैं, तो किसी के अंधेरे घर को दीयों संग रोशन करते हैं...

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प्यार का रंग भी अजीब होता है…

वो छत पर दिखती एक हलकी झलक, एक अजीब सी सिहरन दे जाती है। इस प्यार के रंग का खेल भी चेहरे पर अनेकों रंग ले आता है।

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पापा, मैं अपने घरवालों के लिए कमाना चाहती हूँ…

संध्या तुम्हारे कहने से पढ़ाई करा दी और अब क्या बेटी के पैसों का खाएंगे। बस यही दिन देखने रह गए थे। कहीं नहीं करनी नौकरी।

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तुम लोगों के प्यार ने सच में दिल में दीए जला दिए!

ये सहगल अंकल के घर तो कोई चहल-पहल नहीं और कोई नज़र भी नहीं आ रहा। आखिर माजरा क्या है। उनके घर के सभी सदस्य कहीं गए हैं क्या?

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मरना बाद में, पहले एक बच्चा पैदा कर दो…

यहां एक बात गौर करने लायक है कि ऐसी क्या मजबूरी थी जो इस उम्र में मां बनना इतना जरूरी लगा? विज्ञान ने तरक्की की लेकिन ये बात मेरी समझ से परे है!

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समाज तेरे ताने-बाणों के रंग…

पैरों में समाज के ताने-बाने पहनाकर, लोग क्या कहेंगे से दहलीज़ ना पार करना सिखाया,मूरत पूरी रंग-बिरंगे रंगों से भरकर, बस एक रंग ना भरा...

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अब ये मेरी नकचढ़ी बहू नहीं लाडली बहू है…

दूसरे दिन बारह बजने को आए पर बहू का कोई अता-पता नहीं! आज तो रसोई की रस्म थी! सुप्रिया जी लोगों के बीच छिपते-छुपाते बहू के कमरे में गईं।

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अपने अंदर के रावण को अब स्वयं जलाना है…

तुमने मर्द बनकर कौन सा नाम कमाया है? शोषण करके स्त्री का मुंह बस दबाया है, बस अपने घमंड को ऊंचा रखने खातिर, रावण का तुमने पुतला जलाया है!

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इज़हार-ए-इश्क

कुछ सवाल तेरे भी हैं और मेरे भी, इन उलझे सवालों का जवाब, ढूंढने निकले हैं हम किनारों पर, शायद समुंदर में चलती किश्तियों से...

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लड़का तो सुंदर देखते शादी के लिए…

"अरे भाई! पायल को अपने पति पर नज़र रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी, वरना आजकल के सुंदर लड़के ना जाने क्या-क्या करते हैं।"

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गुलाबी यादें

बिना कुछ कहे-सुने जब मुस्कुराते थे हमारे अधर, वो गुलाबी शामों का हर अतीत याद आया। आख़िरी बार भीगे थे ये गुलाबी गाल

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मेरी माँ!!

तेरी आंचल की छांव पाने को ये दिल तरसता है, भले ही फटे आंचल में तू हर बार सिमटती थी, पर उसी आंचल से मेरे लिए दुआएं बरसती थी।

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तो क्या हुआ अगर मेरी बहू अभी बच्चा करना नहीं चाहती…

भक्ति अपनी सास को कब दादी बनाने वाली हो? अब तो समय भी हो चला धीरे-धीरे और कितना समय लोगे तुम दोनों? इतनी देर करना ठीक नहीं...

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तेरी माँ ने इस घर के लिए किया ही क्या है…

“क्या दादी एक औरत होकर आपको कभी नहीं लगा कि आप अन्याय कर रहीं एक दूसरी औरत के साथ। उनकी घुटती शक्ल भी आपको नहीं दिखी?”

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जिगर का टुकड़ा!

ये क्या मम्मी-पापा भी, उनको देख रूही दौड़कर उनसे लिपट गई। उसकी आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे।पार्टी खत्म होते ही उसने पराग से माफी मांगी।

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मुझे दूसरे का घर ज़्यादा प्यारा लगने लगा था…

मीना भी शादीशुदा थी और जब देखो अपने पति के प्यार के तराने गाती रहती थी। छवि को अक्सर जलन भी होती थी पर मन मसोस कर रह जाती थी।

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बहू को इतनी ढील देना ठीक नहीं…

पड़ोस की महिलाओं ने बबीता जी को तंज कसने शुरू कर दिए, “अगर बहू को कुछ सिखाया होता तो फटाफट कुछ बन जाता और ढील दो उसे।”

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मेरा घर अब मेरा नहीं

आँख खुली तो खुद को अस्पताल में पाया। खैर ये सोचकर तसल्ली हुई कि चलो रब ने जीवन बख्शा। पर जैसे ही शरीर को करवट देने की सोचा तो ये क्या....

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पैसे ले लो, पर दो वक्त की रोटी दे दो!!

जब तक पैसे चाहिए होते है तब तक माँ बाप अच्छे लगते है, पर जब वो आश्रित हो जाते हैं तो बोझ लगते हैं। पर क्या सच में माता-पिता बोझ होते हैं?

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कोरोना काल में रखें अपने को तनावमुक्त

इस चिंता भारी महामारी में, जहां हर तरफ़ तनाव देने वाली न्यूज़ है। ऐसे में अपनी सेहत के साथ साथ मानसिक सवास्थ का भी ध्यान रखना ज़रूरी है।

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क्या आप 76 साल की फैशन ब्लागर मिसेज़ वर्मा से मिले हैं?

चाहे स्टिलोट्स पहने, बंडाना पहना हो या जींस टी-शर्ट, सबसे अपना‌ जादू बिखेरती इंस्टा पर नज़र आ रहीं हैं फैशन ब्लागर मिसेज़ वर्मा...

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इस उम्र में ‘इंस्टा आंटी’ बनना अच्छा लगता है क्या…

तभी उनकी दोस्त नलिनी दूर से आती दिखी। उसको देखते ही माला जी ने एक प्यारी सी स्माइल पास करी। पर ये क्या नलिनी तो दूसरे ग्रुप में चली गई।

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बेटा, तुम्हें ये रिश्ता पसंद है ना…

उन्होंने अपनी बेटी से पूछा की रिश्ते से कोई आपत्ति हो तो बता दे।बेटी ने जवाब दिया “हमें क्यूँ होगी आपत्ति, आप हमारा बुरा तो सोचेंगे नहीं।”

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हमें गाने वाली बहु पसंद नहीं है…

प्रिया का दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। आखिर उसे एक आइडिया आ ही गया। रोज़ दोपहर में नाश्ते के बाद वो‌ और माँ जी छत पर जाते हैं।

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28 मई, यानी आज है मासिक धर्म स्वच्छता दिवस

मासिक धर्म कभी कभी काफ़ी दर्दनाक हो सकता है लेकिन अच्छे आहार और नियमित व्यायाम के साथ आप दर्द और अतिरिक्त रक्तस्राव को कम कर सकते हैं।

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आम की टोकरी लिए छः साल की ‘छोकरी’ विवादों में क्यों?

आम की टोकरी लिए छः साल की छोकरी आजकल विवादों से घिरी हुई है। जी हां मैं बात कर रही कक्षा एक में शामिल कविता "आम की टोकरी" की।

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मिस यूनिवर्स एडलिन के साड़ी लुक को वायरल किया इस डॉल ने

मिस यूनिवर्स 2020 में एडलिन बहुत ही खूबसूरत पिंक साड़ी पहने हुए थीं, जिस लुक को अब वायरल कर रही है श्रीलंकन आर्टिस्ट निगेशन की ये डॉल ।  

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क्या होगा मेडल का जब खिलाड़ी अपराधी हो?

मैं ये नहीं जानती की सुशील कुमार सही हैं या ग़लत पर ये खबर देखने के बाद मेरे जैसे कई लोगों को निराशा ज़रूर हुई होगी। मेरे लिए वो हीरो थे। 

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मेरी बेटियाँ भी बेटों से कम नहीं हैं…

गीता ने आकर सबसे पहले सरपंच से मुलाकात करी। सरपंच गीता को देखकर शर्मिंदा हो गए। उन्होंने गीता से अपने शब्दों के लिए माफी मांगी।

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बस आखिरी बार मुझे एक मौका और दे दो…

संध्या को देखते ही सुधीर उसके पांव को पकड़ माफ़ी मांगने लगा, ”मुझे माफ़ कर दो संध्या बहुत बड़ी गलती हो गई। प्लीज़ घर चलो।”

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बाबा,आप हो तो सब कुछ है,आप नहीं तो कुछ भी नहीं…

सपने में भी बाबा का त्याग याद आ रहा था। कैसे उन्होंने अपनी पेंशन बचाकर मेरे कॉलेज फीस भर मुझे आगे की पढ़ाई कराई थी।

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मेरे जीवन में परी बनकर आई हो आप भाभी…

कैसे कहे बिंदिया अपनी भाभी से कि सबकी कटाक्ष भरी बातें चुभती हैं। अब नहीं सहते बनता। क्या मां ना बन पाना इतना बड़ा जुर्म है?

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तेरी हंसी में ही मेरी दुनिया बसती है माँ..

तेरे लिए शब्द कम पड़ जा रहे मां मेरे शब्दकोशों में,लिखना तो बहुत कुछ चाह रही पर अल्फाज़ भूले जा रहे।इतना कह सकती हूँ तुम ही दुनिया हो मेरी माँ।

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आज के समय में क्या हर कोई संपत्ति के लिए अपने रंग बदल लेता है?

आज का समय ऐसा है कि हर कोई गिरगिट से भी तेजी से अपना रंग बदल लेता है। आज जो जैसा है कोई भरोसा नहीं कल को वो ना बदल जाए।

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हमारी बहु हमारे न चाहने पर भी नाईट शिफ्ट में काम करती है…

हालत ये हो गई थी कि सुबह बहू सोती मिलती और बेटे के आने पर बहू का आफिस जाने का चक्कर होता। मीनल जी का पारा तो सातवें आसमान पर था।

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क्या आप अभी भी इस शादी को निभाना चाहते हैं?

निधि ने शादी को लेकर क्या सपने सजाए थे। खुद को संभालते हुए उसने अमृत से कहा, "क्या आप इस विवाह बंधन में बंधे रहना चाहते हैं?"

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अगर ये सब आलस है, तो हाँ मैं हूँ आलसी…

कितनी बार राकेश से बोला था कि मेरे लिए मेड लगा दो, अब नहीं होता अकेले सारा काम...पर‌ मजाल है जो राकेश उसकी बातों को सुन लें।

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मम्मी, आप ये सब क्यूं झेलती रहती हैं?

ऐसा नहीं बोलते हर्ष वो तुम्हारे पापा हैं और आपको मम्मी-पापा के बीच में नहीं बोलना है और ये सब किसी को नहीं बताना है, वरना...

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अगर ये इतने तंग कपड़े पहनेगी तो इसके साथ ऐसा ही होगा

"दीदी, ये इतने तंग कपड़े क्यूं पहनती है? मना किया तो नहीं मानी अब हम लोग मज़ा नहीं चखाए तो सा* को समझ कैसे आता।”

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औरत का संघर्ष…

किराएदार है तू इस बगिया की, हक नहीं है इस बगिया में तेरा। किसी और के घर को जाकर महकाना, और वहां भी अपने नाम को भूल जाना।

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क्यूं हमारा खुद पर अधिकार नहीं…

अपने अधिकारों के लिए मैं लडूंगी हर बार, ना छीन पाओगे मेरी तुम सत्ता, करती हूं ये ऐलान, ना ललकारना मुझे, बन जाऊंगी चंडी करने सबका संहार।

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ज़िंदगी क्या हो गई!

ना जाने कब मेरे जन्म की आवाज़, कानों का दर्द बन गई, ना जाने कब बाबा के कंधों का बोझ बन गई, पता ना चला कब मैं भाई के लिए प्रश्न बन गई...

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आत्मसम्मान…

दुनिया ने इस मन को आज विद्रोही बनाया है, जब किसी अबला की इज्ज़त को सरेआम खींचा है, फट गए हैं कान किसी के करुण क्रंदन से...

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क्या स्त्री आज भी सजावट का ही सामान है?

जब तक इस प्रकार की प्रथा चलती रहेगी, तब तक एक स्त्री कभी भी इस प्रकार के मनौवैज्ञानिक दंश से बाहर नहीं निकल पाएगी।

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जब याद आती है मां…

जेठ की दोपहर में, छांव को तलाशती हूं, जब जिंदगी की ठोकरों में, खुद को संभालती हूं, जब जली रोटी देखती हूं, तब याद आती है मुझे मां।

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सासू माँ, आज थोड़ा मीठा हो ही जाए…

स्वाति ने जैसे ही डिब्बा खोला, उसे मिठाई कम लगी। उसने विशाल से पूछा तो उसने कहा, "हो सकता है दादी या पापा में से किसी ने खाई हो।"

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मेरे पिता, मेरा अभिमान!

बाहर से सख्त अंदर से नर्म, वो मेरी हिम्मत, वो मेरा विश्वास, जिंदगी की दौड़ में बस भागते देखा मेरा पिता ही नहीं, तू है मेरा अभिमान।

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माँ, भाभी भी तो एक इंसान है…

कला सुबह से ही रसोई में लगी थी इतने कम समय में उसने ढेरों पकवान बना दिए थे। कोई कुकिंग काम्पिटीशन होता तो उसे पहला स्थान मिलता।

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याद!

आज जब खुद की लाडो को विदा किया, तो आपकी जिम्मेदारियों की समझ आईं, तारों को घंटों बैठे घूर रहीं बेपरवाह सी, इन सितारों में...

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ख़्वाब अजनबी से…

कोई दुनिया की महफिल में अकेला है, कोई अकेली तन्हाइयों में साथ ढूंढ लेता है। कभी फूलों की महक में जिंदगी मिलती थी, अब तो बस...

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अब सिर्फ भाभी नहीं “कैब वाली भाभी जी” बोलो

जाते-जाते निशा ने अपनी भाभी से बोला, "मेरे मायके को बनाए रखना भाभी और किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो बेझिझक बताना।"

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अभिलाषा है…

बेलों सा लहराने की, नदियों सा बल खाने की, हवाओं सा इठलाने की, झरनों सा बहने की, भंवरों सा डोलने की, कोयल सा कुहकने की अभिलाषा है...

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बचपन के वो दिन…

बचपन की याद में छुपी चली आई, वो छुपम छुपाई वो पकड़म पकड़ाई, गिल्लियों की आवाजें, पतंगों की उड़ानें, बहुत याद आता है बचपन सुहाना।

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मुझे भी अपने पति को देखना है…

"अरे! मैं भी तो देखूं आखिर किस चूहे से शादी हो रही इस शेरनी की", मीरा लड़कपन में बोली। मीरा को कौन सा उसे मां की दी सलाह याद आ रही थी।

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माँ आप पढ़ी-लिखी हो कर भी ऐसा कैसे कर सकती हैं?

बेबाक ख्यालों और औरतों की आवाज़ बनी नंदिनी बस अपने घर पर ही मात खाती है क्यूँकि माँ आज भी पुराने रिवाज़ों से बाहर निकल ही नहीं पा रहीं।

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ज़्यादा हँसने-बोलने की ज़रूरत नहीं है ससुराल में…

इधर चंचल की शादी हो गई। माँ ने पहले ही बोला था कि ज्यादा बोलना नहीं और कोई कुछ बोले तो 'खीखी' मत करने लगना।

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आज इन नज़दीकियों को बढ़ने दो…

आज सुप्रिया और अविनाश को एकांत में देखा तो राधा से भी रहा ना गया। पलों को एकांत में बिताने को सोच वो उत्पल के पास गई।

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और उसने शरमाते हुए जल्दी से हाँ कर दी…

ये तो बता कोई पसंद किया या तेरे लिए किसी बुड्ढे को देखूं? क्योंकि जवान तो तू रही नहीं। तीस की हो चली, पता नहीं कब शादी करेगी।

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ये बच्चा सिर्फ मेरा है और मेरा ही रहेगा…

डाक्टर रत्ना काफी गंभीर होकर कमरे की तरफ़ इशारा करती हैं। राधे अपनी पत्नी की आंखों में आसूं देख समझ नहीं पाता।

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शाम होते ही मां तेरी याद आई…

क्षितिज में डूबता सूरज देख, शाम होते ही मां तेरी याद आई। अपलक निहारती रहूं तुझे मां, दिल में छटपटाहट सी आई। शाम होते मां तेरी याद आई...

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बोलो तुमने बहु के साथ ऐसा क्यों किया…

सविता जी का तो अब पारा सातवें आसमान पर था। उन्होंने सुधा से बदला लेने की सोची और जल्द ही उन्होंने इस पर काम भी शुरू कर दिया।

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मेरी अधूरी ख्वाहिशें

कासे कहूं अपनी ये बात, सांवरे ना हो सके मोरे आज, बंसी की धुन से जगाई जो आस, रह गई बस सांस में वो आस। कर दो इस जोगन की पूरी अरदास...

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चलो फ़िर से नई शुरुआत करते हैं!

शुरुआत करते हैं नये सहर की, भुलाकर पुराने यादों के पहर की। पुराने ख्वाब को खुद से भुलाकर, आज ख़ुद से नई मुलाकात करते हैं...

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तुम्हारी बहू गंवार है गंवार ही रहेगी…

क्या मम्मी, तुम भी किस गंवार को क्या समझा रही हो? एक हफ्ता हो गया समझाते हुए इस बात को उसको, अभी तक कुछ भी समझ में आया?

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सिर्फ़ एक दिन का सम्मान नहीं हिंदी दिवस

पूरी तबीयत के साथ ठूँसे हुए गुटखे को निगलते हुए मैनेजर साहब बोले, "कल मैडम जी इन्वाईटेड हैं। विदेश से आ रही हैं, कल हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में बोलेंगी।"

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समाज की नज़रों में वो एक तलाकशुदा से ज्यादा और कुछ नहीं…

शादी में सुभ्रदा कहती हैं, "मैं अच्छे से जानती हूं इन तलाकशुदा औरतों को, खुद का घर बसता नहीं और दुसरों का घर तोड़ने में लगी रहती हैं।"

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लोग सुनेंगे तो क्या सोचेंगे मेरे बारे में…

क्या आवाज़ है और रंग-रूप में तो किसी भी नई हीरोइन को मात दे सकती है। चाल तो ऐसी कि इसके आगे अच्छे-अच्छे फेल हो जायें।

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अरे शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा!

हमें शादी में कोई कमी नहीं चाहिए। सगाई की तैयारियां तो बिल्कुल भिखारियों की तरह करी थीं। नाक कटवा दी थी हमारी बिरादरी में तुम लोगों ने...

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