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जिगर का टुकड़ा!

ये क्या मम्मी-पापा भी, उनको देख रूही दौड़कर उनसे लिपट गई। उसकी आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे।पार्टी खत्म होते ही उसने पराग से माफी मांगी।

ये क्या मम्मी-पापा भी, उनको देख रूही दौड़कर उनसे लिपट गई। उसकी आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे।पार्टी खत्म होते ही उसने पराग से माफी मांगी।

“रूही! कल‌ लड़के वाले ‌देखने‌ आ रहे तुम तैयार रहना।” दीपक जी अपनी मझली बेटी को बोल गए।

दीपक जी बहुत गंभीर और गुस्सैल स्वभाव के हैं। जिसकी वजह से पूरा परिवार कहीं ना कहीं उनसे डरता है। साथ ही उनकी आज्ञा की अवहेलना करना उन्हें तनिक भी रास नहीं आता।

दीपक और मृणालिनी जी के तीन बच्चे हैं बड़ी बेटी प्रभा की शादी हो चुकी और छोटा बेटा जो अभी सरकारी नौकरी के लिए प्रयासरत है। घर में सभी अपने पिता से ज्यादा माँ से लगाव रखते हैं।

“रूही! कल ये साड़ी पहन लेना और हाँ ज़रा उन लोगों के सामने कम ही बोलना, तुम्हारे पापा बोल रहे थे। बड़े अच्छे परिवार का रिश्ता आया है लड़का विदेश में काम करता है। बस शादी के लिए परिवार देश में आया है। उनको भी जल्दी ही होगी तो बस एक बार पसंद कर लें और क्या।”

दूसरे दिन श्रीवास्तव परिवार आकर रूही को पसंद कर जाता है। पर पता नहीं क्यूँ लड़के को लेकर रूही उतनी आशान्वित नहीं है।

“मम्मी! मुझे पराग पसंद नहीं तुम पापा से इस रिश्ते को लेकर मना कर दो।”

“अब क्या कमी दिख गई तुमको पापा ने सब देख कर ही रिश्ता पसंद किया था। मेहरा अंकल के जान-पहचान के हैं वो‌ लोग। हमसे कुछ ग़लत तो नहीं बताएंगे और फिर ऐसा क्या बोल दिया।”

“पता नहीं मम्मी वो अजीब बातें कर रहा था। तुमको ऐसे रहना होगा और ये करना होगा। मुझे अच्छा नहीं लगा जैसे वो आर्डर दे रहा था।”

“अरे! शुरू-शुरू में सब ऐसा ही लगता है फिर सब आदी हो जाते हैं। अब अपने पापा को देख ले वो भी तो ऐसे हैं और अब तो मुझे आदत हो गई उनकी।”

रूही की इस बीच कई बार पराग से बात हुई पर वो अपना विचार बदल नहीं पा रही थी। वो चाह कर भी पराग को पसंद नहीं कर पा रही थी।

पराग भी उसे अपने विचार के अनुरूप हर बात के लिए बाध्य करता था जो रूही को पसंद नहीं आ रही थी। लेकिन इस रिश्ते के लिए पापा के सामने मुंह खोलता कौन।

खैर! थोड़ी हिम्मत कर पराग के स्वभाव से मृणालिनी जी ने अपने पति को आगाह किया। पर उनके अनुसार तो रुही बच्ची थी। ये सोच उन्होंने मृणालिनी जी को शांत रहने को कहा।

इधर शादी की तैयारियां जोर-शोर से शुरू थीं। रंग-बिरंगे तोरण से सजा मंडप और गेंदे के फूलों से सजे दरवाजे अलग ही शोभा दे रहे थे। मेहंदी से सजे हांथ और महावर लगाए पैरों में रूही किसी खूबसूरत परी सी दिख रही थी। पर चेहरे में वही उदासी के भाव थे।

शाम को बारातियों के आगमन पर अच्छे से स्वागत सत्कार किया गया। तारों की छांव में रूही की बिदाई अश्रुपूरित नेत्रों के साथ हुई। शादी के दूसरे दिन ही पराग और उसका परिवार विदेश के लिए निकल गए। दीपक और उनकी धर्मपत्नी काफी आशान्वित होकर बेटी की जिम्मेदारियों से निवृत्त हो चुके थे।

विदेश में रूही परिवार को याद कर अकेले में आंसू बहा लेती थी। पराग भी अब रुही में ज्यादा रूचि नहीं ले रहा था। घर में ध्यान ना दे पाने की वजह से रूही को पराग पर शक हुआ। एक दिन पराग के घर से निकलते ही रूही पीछे हो ली। कार एक बड़े होटल में आकर रूकी।

रूही ने दूर से देखा एक औरत पराग के गले लग रही है। मामला थोड़ा समझ रूही ने एक वेटर को पैसे देकर दोनों ‌के‌ बीच संबंध जानने चाहें पर कुछ खास पता ना चला। उसके बाद से पराग ऐसे ही काफी देर से घर आने लगा। रूही अंदर ही अंदर परेशान हो रही थी। पर घर में किसी से कहें भी तो क्या सभी उससे इतने अच्छे से पेश आते थे।

एक दिन पराग ने उसे तैयार होकर कहीं चलने को कहा बिना बताए। रूही का दिल ज़ोर से धड़क रहा था। अनजान शहर कहीं पराग खराब पति तो नहीं मुझे किसी के हाथ..नहीं! नहीं! और ना जाने क्या फालतू बातें‌। तभी कार उसी होटल के बाहर रुकी और रूही को शक हुआ कहीं पराग जान तो नहीं गए। आज तो ये मुझ पर बहुत गुस्सा करेंगे।

तभी पराग एक बड़े हॉल में ले जाता है जहां घुप्प अंधेरा था। रूही चिल्ला उठी, “प्लीज़ मुझे जाने दो। मेरी क्या गलती थी जो यहां लेकर आए” और इतने में लाइट जल गई।

”हैप्पी बर्थडे डे टू यू… हैप्पी बर्थडे टू रूही” रूही को तो याद ही नहीं रहा कि आज उसका जन्मदिन है।

अरे! ये क्या मम्मी-पापा भी, अब तो उनको देख रूही दौड़कर उनसे लिपट गई। उसकी आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे। जन्मदिन की पार्टी खत्म होते ही उसने पराग से माफी मांगी।

“पराग! मैं आपको कितना गलत समझती थी। आपका मैंने होटल में कार से पीछा भी किया। मुझे लगा कुछ ग़लत है पर आज देखकर लगा मैं कितनी ग़लत थी। सबसे ज़्यादा गलत तो पापा आपको समझा मुझे लगा पता नहीं कहां शादी करा दी। मुझे माफ़ करना पापा आप मुझे देखने इतनी दूर आए।”

“रूही बेटा! बच्चे माँ-बाप के जिगर का टुकड़ा होते हैं। उन्हें ऐसे ही तो किसी के हाथों में नहीं सौंप सकते। सबसे बड़ी बात कहीं ना कहीं तुम भी ठीक थी। आजकल बाहर बसे लोगों से शादियां करने में दिक्कत भी आती है। पराग के बारे में सब जांच कराई थी और ये तो मेरे जिगरी दोस्त के परिवार से था। हाँ! रूही तेरा पापा सख्त है पर इतना भी नहीं कि अपनी लाडो कहीं पर भी ऐसे जाने देता।”

“मैडम! मुझे पता था आप पीछा कर रहीं आखिर ड्राइवर तो मेरा ही था। जासूस अच्छे नहीं बन पाए आप और हाँ ये होटल तो अंकल आंटी के लिए बुक करना था। उनके आने-जाने का प्रबंध करने में समय निकल रहा था। मुझे माफ़ करना जो शुरुआत के सबसे जरूरी दिनों में समय ना दे सका। जहां तक बात शुरुआती दिनों में बात की है तो विदेश में रहने के तौर-तरीके अलग हैं। जो मैं समझाता था पर तुम बहुत गुस्से में आकर मेरी बात नहीं सुनती थी‌।”

तभी सब बोले, “अरे अंत भला तो सब भला चलो जन्मदिन की पार्टी तो और जोश से मनाते हैं।”

मूल चित्र: Biba via Youtube

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