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बात सिर्फ मायके की नथ न थी…

अब अगर वह नहीं आए तो मामा की तरफ़ से आई नथ भी नहीं आएगी और उनके ना आने पर चार लोग पूछेंगे सो अलग। ऐसे में क्या जवाब दिया जाता?

अब अगर वह नहीं आए तो मामा की तरफ़ से आई नथ भी नहीं आएगी और उनके ना आने पर चार लोग पूछेंगे सो अलग। ऐसे में क्या जवाब दिया जाता?

“जिज्जी! हम तो नहीं आ पाएंगे सुमन की शादी में। आप देख लो कैसे करना है सब। अब इनकी तबियत देखूं या शादी मनाऊं। आप भी तो यही कहोगी कि पहले मेरे भाई को देखो।”

शिवानी जी कुछ बोल पातीं कि उनकी भाभी आंचल ने उससे पहले ही फोन रख दिया। शिवानी जी को पता था कि आंचल झूठ बोल रही है। वह अपने मायके की शादी को ज्यादा वरीयता दे रही है। उनका भाई आशीष भी अपनी पत्नी के आगे दो शब्द नहीं बोल पाता है।

शिवानी जी को गुस्सा नहीं अपितु घबराहट हो रही थी कि सुमन की शादी में मामा की तरफ से नथ कौन देगा? इसके अलावा पूरी शादी में सभी मामा मामी को जरूर पूछेंगे। जग हंसाई होगी सो अलग। शिवानी जी की टेंशन उनके चेहरे से ही झलक रही थी।

पर अब कर भी क्या सकते हैं किसी को कुछ बोल तो सकते नहीं है। एक ही तो भांजी है क्या उसकी शादी में भी नहीं आ सकते थे। इसके लिए बहाने बनाने की क्या जरूरत थी। कोई नहीं कल ही जाकर मैं ज्वेलर्स से नई नथ ले आऊंगी।

“मम्मी! दूध उबल रहा है! क्या कर रही हो? अभी सारा दूध गिर जाता। सुबह से देख रही हूं आप किसी चिंता में दिख रही हो मुझे”,  सुमन ने अपनी मां पूछा।

“शिवानी जी! मैं भी आपको सुबह से देख रहा हूं। आप किसी चिंता में दिख रहीं हैं। अगर कोई बात है गंभीर, तो हम सब से आप चर्चा कर सकती हैं। आखिर इतनी चिंता करके होगा क्या? तबीयत अपनी और बिगाड़ लेंगीं आप।” शिवानी जी के पति आशुतोष जी बोले।

शिवानी जी कुछ बोलने को हुईं, तभी उनके किराएदार पवन जी आ गए।

“दीदी बाजार जा रहा हूं, अगर कल के लिए कुछ सामान चाहिए हो तो बता देना। संकोच मत करना। आपका छोटा भाई ही तो हूं और अभी तो बहुत सारे काम है वह भी बता देना। अगर हुआ तो मैं ऑफिस से छुट्टी भी ले लूंगा ताकि आशुतोष भैया को ज्यादा थकान ना हो काम से।”

पवन शिवानी जी का किराएदार है वो और उसकी पत्नी शैलजा का स्वभाव इतना मधुर है कि हर कोई उनकी तारीफ़ करता है। कोई देखकर कह ही नहीं सकता कि ये किराएदार हैं। पवन काफ़ी सालों से आशुतोष जी के साथ ही आफिस में काम करता है। उसके मृदु स्वभाव से ही शिवानी जी और उनका परिवार पसंद करता है।

“अरे! लो तुम्हारा भाई पवन भी आ गया। पवन अब तुम संभालो अपनी बहन को पता नहीं सुबह से किसी चिंता में ही अलग खोई हुई है। हमसे तो कुछ बता नहीं रही अब तुम ही इस से पूछ लो कि आखिर किस बात की चिंता है इसे।”

“क्या हुआ शिवानी दीदी किस बात की चिंता है? कोई काम है तो हमें बताइए। नाहक ही किसी बात की चिंता मत करिएगा। हम सब हैं सब मिलकर अपनी सुमन बिटिया की शादी अच्छे से निपटाएंगे।”

“क्या बताऊं पवन! मेरे भाई आशीष और भाभी आंचल सुमन की शादी में नहीं आ रहे हैं। अब अगर वह नहीं आए तो मामा की तरफ़ से आई नथ भी नहीं आएगी और उनके ना आने पर चार लोग पूछेंगे सो अलग।

और बात सिर्फ नथ की ही नहीं है। मुझे पता है मेरी भाभी झूठ बोल रही है, क्योंकि उनकी बड़ी बहन की बेटी की भी शादी उसी समय पर है। क्या यह उचित है कि अपनी इकलौती भांजी के विवाह में ना आया जाएँ? मैं यह नहीं कहती कि अपनी बहन की बेटी की शादी ना निपटाई जाएं। पर क्या हम यह नहीं कर सकते थे कि आंचल भाभी अपनी बहन की बेटी की शादी में जाती और आशीष भाई हमारे यहां आ जाते?

तो कम से कम रिश्तेदारी तो निभाई जा सकती थी। इस तरह का झूठ बोलने से क्या फायदा होता है जहां पर अपनों का साथ ही नहीं मिले, जब हमें उन की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।”

“दीदी! आप नाहक ही परेशान हो रही हैं। कोई ना कोई दूसरा रास्ता जरुर निकाला जा सकता है। आप परेशान ना हों कल मैं कुछ सोचता हूं। फिर आपसे बात करता हूं इस विषय पर। फिलहाल आप ज्यादा चिंता ना करें”, पवन बोला।

दूसरे दिन शिवानी जी घर के कुछ काम निपटा रहीं थीं कि तभी पवन ने शिवानी जी को आवाज दी, “शिवानी दीदी! क्या कर रही हैं? यह देखिए मैं क्या लेकर आया हूं…”

“क्या लेकर आए हो पवन? क्या दिखाना चाहते हो?”

“वही जिसके लिए आप कल बहुत ज्यादा परेशान थीं। अपनी लाडो सुमन के लिए उसके मामा की तरफ से एक छोटा सा तोहफा…”

“अरे पवन तुम तो नथ लेकर चले आए।”

“क्यों नहीं लता दीदी आखिर मैं भी तो सुमन का मामा ही लगता हूं। भले ही हमारा खून का रिश्ता ना सही पर इंसानियत का तो है। मैं आपको इस तरह से दुखी नहीं देख सकता था। इसलिए अपनी बिटिया के लिए एक छोटा सा शगुन का तोहफा लेकर आया हूं और हां इसके लिए कृपया ना मत कहिएगा। और कुछ भी जरूरत हो तो आगे भी निसंकोच जरुर बोलिएगा मुझे।”

पवन की तरफ से दिया गया शगुन का तोहफा लेकर शिवानी जी की आंखों में आंसू आ गए। आज उन्हें पता चल रहा था कि रिश्ते सिर्फ खून के नहीं होते हैं। इंसानियत के भी होते हैं जो वक्त पड़ने पर एक दूसरे के काम आते हैं।

यहां बात सिर्फ नथ की ही नहीं थी बात सच्चाई की थी। नथ तो शिवानी जी बाजार जाकर स्वयं भी ला सकतीं थीं। पर वक्त बेवक्त जो साथ निभाए वही तो रिश्तेदारी होती है।

इधर सुमन की शादी का शुभ मुहूर्त भी आ गया। शिवानी और आशुतोष जी ने अपनी बेटी का विधि पूर्वक विवाह किया तथा मामा की तरफ से निभाई जाने वाली सारी रस्मों को पवन ने निभाया। शादी में हर कोई पवन की तारीफ करते नहीं थक रहा था।

इमेज सोर्स: Still from Short Film Shaadi/MR. Productions, YouTube

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