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क्या स्त्री आज भी सजावट का ही सामान है?

जब तक इस प्रकार की प्रथा चलती रहेगी, तब तक एक स्त्री कभी भी इस प्रकार के मनौवैज्ञानिक दंश से बाहर नहीं निकल पाएगी।

जब तक इस प्रकार की प्रथा चलती रहेगी, तब तक एक स्त्री कभी भी इस प्रकार के मनौवैज्ञानिक दंश से बाहर नहीं निकल पाएगी।

अगर आपको एक महिला के अंतर्मन के बारे में जानना है कि जब उसको कोई विवाह के लिए मना कर जाता है तब उसके मन में क्या गुजरती है या कोई विशेष टिप्पणी करता है इन सभी मनोभावों को अच्छे से दर्शाया है डव के नए ऐड ने।

अगर हम अरेंज्ड मैरिज की बात करें तो आज भी ९९ प्रतिशत लड़कियों को इस प्रकार की अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है। यही नहीं आने वाला परिवार हर प्रकार से तोल-मोल कर लड़की को देखता है जैसे वो कोई सजावटी सामान हो।

क्या स्त्री आज भी सजावट का ही सामान है? रंग सांवला है, लड़की की लंबाई कम है, आपकी बेटी बहुत मोटी है, इसके पैर बराबर नहीं पड़ रहे, आंखों में इतने पावर का चश्मा, खाना बनाना नहीं आता वगैरह-वगैरह। जितने लोग उतने तरह के सवालों का सामना एक लड़की को देना पड़ता है।

यही नहीं आपकी बेटी की कमियों को दहेज के मापदंड से कम ज्यादा भी किया जाता है। यदि दहेज अच्छा मिला तो सभी रूप और गुण नजरअंदाज हो जाते हैं। पर कमी रही तो जीते जी उसे शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है।

आखिर कब तक उसे अपने आपको एक सामान की तरह लोगों के सामने प्रस्तुत करना पड़ेगा और क्या लव मैरिज ही इसका निवारण है। क्या हर लड़की लव मैरिज में बंध सकती है बिल्कुल नहीं। तो क्यूं ना हम इस परंपरा को जड़ से मिटा नहीं सकते।

हमें भी उतना ही हक है जितना एक पुरुष को ना कहने का है। क्यूं ना हमें भी एक पुरुष को इस प्रकार से जज करने का समान भाव मिले। जब तक इस प्रकार की प्रथा चलती रहेगी एक स्त्री कभी भी इस प्रकार के मनौवैज्ञानिक दंश से बाहर नहीं निकल पाएगी।

रंग-रूप, लंबाई, मोटापा, आंखों का विकार जब उसने नहीं मांगा तो क्यूं किसी की बातें सुनें। आइए एक स्वस्थ परंपरा का निर्वहन कर स्त्री को वो समान अधिकार दे जो उसे सभी के साथ खड़ा होने में सम्मान का भाव दिलाए।

मूल चित्र : Still from the Dove Ad, YouTube

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