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भाभी ने मज़ाक-मज़ाक में आभा के गरीबी का मज़ाक उड़ा दिया, "क्या आभा इतनी क्या प्यारी है ये साड़ी तुम्हें जो हर फंक्शन में इसे ही पहन लेती हो?"
पैसा होने की वजह से समाज में रूतबा भी ससुराल वालों का बहुत था, लेकिन दरवाजे पर लगे महंगे पर्दे के पीछे की सच्चाई बिलकुल ही उलट थी।
क्या मम्मी, तुम भी किस गंवार को क्या समझा रही हो? एक हफ्ता हो गया समझाते हुए इस बात को उसको, अभी तक कुछ भी समझ में आया?
एक बार शादी और कन्यादान कर दिया तो फिर बेटी कैसी है उसकी चिंता नहीं करते। वो जिंदा भी है या नहीं ये भी जानने को इच्छुक नहीं रहते।
एक दिन उसे ऐसे खिलखिलाकर हँसते देख जेठानी ने बहुत बहुत डाँटा था। उनका कहना था कि बहुएं इतनी जोर से नहीं हँसती हैं।
बस अनु मुझसे तो ये सब कह दिया लेकिन ख़बरदार जो प्रिया के सामने ये सब कहा तो। मैं तुम्हारी माँ हूँ, तो प्रिया की सास भी हूँ...
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