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मुझे आशा है कि आप मेरे अब तक अविवाहित रहने के कारण पढ़कर मुझे विवाह ना करने के लिए क्षमा कर देंगे। यदि आपके पास इसका समाधान हो तो अवश्य बताइए?
बुरे वक्त में समाज आगे आ कर मेरे साथ क्यों नहीं खड़ा होता? जब समाज उस वक्त मेरा साथ नहीं दे सकता तो वह कौन होता है जो मेरे जीवन का फैसला ले?
छह गज की साड़ी में मायके की इज्ज़त लिए,आंखों में बिना कोई सपना पाले नए जीवन का,चल दी ससुराल की ओर एक नए घर को संवारने।
तभी दीया की छोटी नंद दौड़ती हुई आती है और बड़े प्यार से कहती है, “भाभी अच्छे से तैयार हो जाओ पंडित जी आ गए हैं, पूजा होनी है।"
पति के नाम से पत्नी की पहचान शायद हमारे कल्चर का हिस्सा बन चुका है जिसका एक और उदाहरण मैं आपको देती हूं।
एक मेरा सिंदूर और बिछिया ही पहचान बनायी समाज ने तुम्हारी पहचान थी, फिर इस सफ़ेद पोशाक में कौन पहचानेगा मुझे कि “मैं तुम्हारी हूँ?”
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