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मरना बाद में, पहले एक बच्चा पैदा कर दो…

यहां एक बात गौर करने लायक है कि ऐसी क्या मजबूरी थी जो इस उम्र में मां बनना इतना जरूरी लगा? विज्ञान ने तरक्की की लेकिन ये बात मेरी समझ से परे है!

यहां एक बात गौर करने लायक है कि ऐसी क्या मजबूरी थी जो इस उम्र में मां बनना इतना जरूरी लगा? विज्ञान ने तरक्की की लेकिन ये बात मेरी समझ से परे है!

भगवान ने औरत को जब गढ़ा तो उसको सृष्टि की रचयिता बनाया था। जो अपनी कोख से वंश बढ़ाएगी और इसी प्रकार श्रृंखला आगे बढ़ेगी। उसने ये कभी ना सोचा होगा कि ये वरदान भी अभिशाप होगा। जो महिलाएं जनन करने योग्य नहीं रह जाती उन्हें आज भी समाज परित्यकत करने में समय नहीं लगाता। उसे कई प्रकार के नामों से विभूषित करता है जैसे ‘बांझ’।

मेरा प्रश्न है कि क्या पुरुष प्रधान समाज में महिलाएं सिर्फ बच्चा पैदा करने मात्र मशीन रह गईं हैं? क्योंकि बिन बच्चे की मां एक पुरुष को अधूरी लगती है? कितनी बार हमने सुना है कि वो इस कमी को पूरा करने के लिए अपनी पत्नी तक को छोड़ देता है। शायद इस मामले में हमारी कई महिलाएं आज भी ये सोच नहीं ला पाती हैं, क्योंकि उन्हें शुरू से पति को देवतुल्य समझाया गया है।

इसी बात का जीता-जागता उदाहरण है गुजरात की ७० साल की महिला जीवूबेन जो आजकल चर्चा का विषय बनी हुई हैं। वो दुनिया की सबसे उम्रदराज महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने इस उम्र में एक बच्चे को जन्म दिया। जब कई सारे डाक्टरों ने जवाब दे दिया था तब भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और IVF के जरिए संतान सुख लिया।

इस उम्र में जहां बाकी की महिलाएं मेनोपॉज से उबर चुकी होती हैं। कुछ हड्डियों और तमाम बीमारियों से ग्रस्त होती हैं वहां जीवूबेन ने ये कर दिया। अपने ऊपर लगे बांझपन के धब्बे को आखिर मिटा दिया जो आज के वैज्ञानिक युग में संभव हो सका।

पर यहां एक बात गौर करने लायक है कि ऐसी क्या मजबूरी थी जो इस उम्र में मां बनना इतना जरूरी लगा? क्या उन्हें समाज का इतना दबाव था? या फ़िर उन्हें पति द्वारा छोड़ने का डर या दुःख। खैर ये तो उनकी आपसी बात है।

पर उस दूधमुंही बच्ची का क्या? जीवूबेन खुद सत्तर की और उनके पति पचहत्तर साल के। क्या वो इस उम्र में उस बच्ची को पाल पाएंगे? क्या उनका जर्जर होता शरीर साथ देगा? क्या बच्ची को स्वस्थ माता-पिता की ज़रुरत नहीं है? कितने साल अपने माता-पिता का साथ मिल पाएगा? चाहे ये उन्होंने अपनी मर्ज़ी से किया, लेकिन ये सवाल मेरे मन में उठ रहे हैं।

क्या ये सभी ने सोचा था या फिर एक बच्चे की महत्वकांक्षा के आगे कुछ दिखा नहीं था?

ये तो वही हो गया कि एक मरती हुई महिला से भी समाज बच्चे पैदा करवा ले। चाहे इसके आगे के परिणाम कितने भी भयावह हो। क्या इसके लिए एक अलग नियम नहीं बनना चाहिए?

क्या एक औरत की ज़िंदगी सिर्फ़ बच्चे पैदा करने तक है? यदि वो उसमें असफल हुई तो बेकार समझ फ़ेक दिया जाए।

ये प्रश्न आप सबके लिए है कि कब तक एक औरत को ही सहना होगा?

इमेज सोर्स: Reptile8488 from Getty Images Signature

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