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मीनू झा

मन में मच रही भावनाओं की उथल-पुथल को शब्दों के सांचे में ढाल कर आकार देने की एक अदनी कोशिश.. सामने वाले तक "अणु" मात्र भी पहुंच जाए तो लिखना सार्थक।

Voice of मीनू झा

जारवा इंसान ही हैं, पर इंसान की तरह माने नहीं जाते…क्यों?

जारवा दर्शन? कोई देवी देवता हैं क्या या फिर कुछ और? ना देवी देवता हैं, ना जानवर हैं। इंसान हैं तुम्हारी हमारी तरह... लेकिन माने नहीं जाते!

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ना कोमल थी, ना कमज़ोर हूं!

सच है दूसरों से अपेक्षाएं रखते रखते हम खुद की उपेक्षा करने लगते हैं और परजीवी से बन जाते हैं, तो अपेक्षाएं रखनी ही है तो खुद से ही क्यों नहीं? जो पूरी हो तो सुखद ना पूरी हो तो सबक।

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बहू, अब तुम हमारी ज़िंदगी का हिस्सा हो…

"तुम कब और कैसे हमारे घर आईं, हमसे जुड़ी और कब हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गईं, ना हमें इसका एहसास रहा ना तुमने कभी एहसास दिलाया।"

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अगर आज भी मैं पहले जैसी होती, तो क्या आप…

ये तो रूचि है! उसके कॉलेज की सबसे खूबसूरत और स्मार्ट लड़की और तो और उसकी क्रश भी। वैसे क्रश तो वो बहुत लोगों की थी पर किसी को भाव नहीं देती थी।

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मैं अपने पति से लंबी थी और लोग हमारा मज़ाक उड़ाते थे, लेकिन…

बेटा वो समय ही ऐसा था। बेटियां अपने परिवार के निर्णय का प्रतिवाद नहीं करतीं थीं। वैसे भी मैं आत्मनिर्भर भी तो नहीं थी तुम्हारी तरह। उस पर मेरी ये लंबाई...

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मंदिर न कभी बिकते हैं, ना कभी बेचे जाते हैं…

दोस्तों, एक बेटी के मन में अपने घर से जुड़ी भावनाओं की मची उथल-पुथल पे रचे हुए इस ताने-बाने पर आपकी प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित करती हैं मीनू झा!

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शादी है, कपड़े नहीं जिसे रोज़ बदला जाए…

एक बार प्रेम-विवाह और फिर तलाक के बाद हमारी छिछालेदरी करवा के उसका मन नहीं भरा जो अब फिर एक नया राग लेकर बैठ गई है।

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अगर बेटे के बाद बेटी चाहना ठीक है तो बेटी के बाद बेटा चाहना गलत कैसे?

समाज की ये सोच बड़ी दोगली लगती शुभ्रा को, दो बेटे वाला इंसान अगर बेटी की इच्छा से तीसरा बच्चा करे तो उसे महानता का खिताब मिलता है...

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सिंदूर, उनके साथ भी उनके बाद भी…

"चलो! मैंने सोचा था मिलकर बताऊंगी पर बात खुल ही गई तो बता देती हूं। वो मैं ही थी सौ प्रतिशत मैं और मैंने सोलह श्रृंगार भी किया हुआ था।"

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दूसरों की देखभाल करते-करते मैं खुद को भूल गयी थी…

आखिर कितने दिनों तक चलता ये? बीपी और शुगर से ग्रसित होने के बाद रानू को इतनी रियायत दी गई कि वो झाड़ू पोंछे वाली लगा सके। पर इतने से क्या होता?

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अब तो भगवान ही बचाए ऐसे रिश्तों से…

इस बार सासु मां ने फ़रमान जारी किया, "नीति, मीना के लिए तुम अपना वाला कमरा दे देना। तुम दो चार दिन मेहमानों वाले कमरे में एडजस्ट कर जाना।" 

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मैं अपनी बेटी की शादी रिश्तेदारी में नहीं करना चाहती…

जब नई देवरानी ने मालती की तारीफ की, तो देवर बोले, "मालती भाभी को अपनाकर भैया ने जो उन पर एहसान किया, भाभी उसी अहसान को चुका रहीं हैं..."

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आपके लिए पराई सिर्फ आपकी पत्नी है और कोई नहीं…

"क्यों ना निकालूं बाल की खाल? जिंदगी क्या बार बार मिलती है। ब्याह के बाद की स्वतंत्रता और आनंद तो मिला नहीं, बंधन और जिम्मेदारियां भर भर के मिलती रहीं।"

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मेरी बहू रफूगर नहीं है…

"मुझे माफ़ कर दीजिए मां! पर साड़ी कटने में मेरा कोई दोष नहीं, मैंने सारे एहतियातों का ध्यान रखा था, पर वो पिन की वजह से..."

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भाभी, आपको किसी के लिए बदलनी की ज़रुरत नहीं है…

बेहद ही बदतमीज औरत है! पहले दोस्ती करती है, खाना-पीना, देना-लेना सब कर लेती है। और जब मन भर जाता है तो बहाने से लड़ाई कर लेती है, दूर रहना...

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प्यार, हक और संपत्ति सब चाहिए, पर ज़िम्मेदारी…ना भई ना!

"अपने पिता को अपने भाई के पास क्यूं नहीं भेज देतीं? आसपास के लोग भी जाने कैसी कैसी बातें करते हैं कि बेटा नहीं रखना चाहता होगा बीमार पिता को..."

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हमारे बीच कभी प्यार था ही नहीं…

"एक बात थी जो जाने कितने दिनों या कह सालों से मेरे अंदर गांठ बनकर पल रही है। पहले वादा कर इस बात से हमारी दोस्ती पर कोई आंँच नहीं आएगी।"

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बहू, आज समय के साथ चलने में ही सबकी भलाई है…

"क्या शादी करने का? तो कर ले ना बेटा! मैं तेरी मां जैसी आउटडेटेड नहीं हूं। बता कब करना चाहता है? मैं तैयार हूं", मुस्कारा कर दादी ने कहा।

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अगर बच्चे ने हमारी पोल खोल दी तो…

दादी और बुआ से बहुत अच्छे संबंध ना होने के बावजूद, माँ ने हमें कभी उनसे कैसे पेश आना है का निर्देश नहीं दिया। हम उनसे लाड-प्यार से मिलते।

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मैं ज़िन्दगी जीना चाहती हूं काटना नहीं…

"अल्पना, शादी तुम लड़के से करोगी या उसकी मांँ से? तुम लोगों ने छोटे लड़के को देखा? उससे बात करी? उससे पूछा कि वो तैयार है या नहीं?"

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तुम्हारी बेबी दीदी अब बड़ी होने को है…

"दी, मैं बहुत खुश हूंँ आपके लिए। याद है आपको एक दिन हम लोग अकेले थे और आपने क्या कहा था? वो बात फांस सी चुभी थी मन में।"

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आज से आपके सपने हैं मेरे अपने…

शादी के बाद पर्व त्यौहार, बच्ची का होना, इसका पालन पोषण कुछ भी मैं इंजोय नहीं कर पाई, अपनी नौकरी के दवाब में, इसलिए मैंने नौकरी छोड़ दी...

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भाभी, मेरी सोने की चूड़ियां आप पहनेंगी…

"अभी का समय इन बातों का नहीं है, अभी ये चूड़ियां डाल देते हैं, जल्दी सोने की चूड़ियां बनवा देंगे", सुंनदा की भाभी ने मामला निपटाना चाहा।

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सात फेरों का छठा वचन याद है ना आपको…

"कोई नहीं... आप निकलिए वरना लेट हो जाएंगे आफिस के लिए", श्वेता असहज होती हुई बोली क्योंकि पड़ोसी भी बाहर निकल आए थे।

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मेरी बहू मुझसे बात नहीं करती है…

काम वो करती, तारीफें सासु माँ ले जाती और तो और जब ऑफ़िस से धर्मेश आते तो हर काम में बहू के साथ साथ हो जाती, मानों उसकी मदद कर रहीं हों।

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सब मिल जाएंगे लेकिन तेरे जैसा कोई न मिलेगा…

जी कड़ा करते हुए जया ने प्रिया से बात करनी चाही तो प्रिया ने साफ इंकार कर दिया, जैसा जया को पूर्वानुमान था।

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ऐसा लगता है अब भगवान है ही नहीं…

पर उसकी धूर्तता का कच्चा चिट्ठा उस सुबह खुला, जब हमारे पड़ोस में रहने वाली दीदी की सबसे अच्छी सहेली और ये, दोनों एक साथ गायब मिले।

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बदलाव सभी चाहते हैं पर बदलाव का हिस्सा नहीं बनना है…

अब हर पेशा अच्छा माना जाता है, अपनी सोच में बदलाव लाना होगा। बदलाव सभी चाहते हैं पर उस बदलाव का हिस्सा कोई भी नहीं बनना चाहता ।

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अब मेरे पास खोने को बचा ही क्या है…

उसे लगा ये उसकी आज़ादी का फरमान है। किसी भी डर से आजादी, शारीरिक मानसिक प्रताड़नाओं से आज़ादी। यही आज़ादी उसकी सबसे बड़ी मजबूती बनेगी।

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कभी नहीं बनने देगी अपना प्रतिरूप

हमेशा खुद को ही सही समझती, सिद्ध करती। ऐसा बिल्कुल नहीं था कि उसके अंदर प्रेम का बिरवा नहीं था। बस उसने उसे पोषण से वंचित रखा था, लहलहाने नहीं दिया था।

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इस कलयुग में भी कन्हैया है

निखिल का शक निर्मूल नहीं था और एक दिन वही हुआ जिसका उसे अंदेशा था। परन्तु निखिल ने अपनी बुद्धिमत्ता और त्वरित गतिविधियों से रश्मि को बचा लिया।

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उम्मीद पर टिकी हैं साँसों की डोर..

वो जानती है कि तन से जख्मों के निशान मिटा नहीं करते, पर मन पे पड़े ज़ख्मों के निशान शायद अकूट प्रेम, समर्पण, पश्चाताप के एहसास और वक्त मिलकर पोंछ  देते हों।

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क्या शादी के बाद आप इस जेठ-बहु की जोड़ी को अपनाएंगे?

इस शादी के बाद विशाल सर मेरे जेठ हो जाएंगे और एक जेठ और बहु के नाच गान को हमारा समाज क्या परिवार भी स्वीकार नहीं करेगा।'

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