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मैं अपनी बेटी की शादी रिश्तेदारी में नहीं करना चाहती…

जब नई देवरानी ने मालती की तारीफ की, तो देवर बोले, "मालती भाभी को अपनाकर भैया ने जो उन पर एहसान किया, भाभी उसी अहसान को चुका रहीं हैं..."

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जब नई देवरानी ने मालती की तारीफ की, तो देवर को कहते सुना, “मालती भाभी को अपनाकर भैया ने जो उन पर एहसान किया, भाभी उसी को चुका रहीं हैं और कुछ नहीं।”

“आप समझ क्यों नहीं रहे दिनेश जी, मैं नहीं चाहती मेरी बेटी वही सब भोगे जो पिछले छब्बीस साल से मैं भोगती आ रही हूँँ। ना मान ना सम्मान, सड़क पर रहते के इंसान सा, जिसके जो मन में आया सुना कर चला गया”, मालती बहुत गुस्से मेंं थी।

“मालती समझ तो तुम नहीं रही। छब्बीस साल पहले का जमाना अलग था। आज के हालात अलग हैं। तुम पढ़ी-लिखी थीं, वर्किंग नहीं थीं। मेरे परिवार वाले पुरानी सोच के पक्षधर थे और अमित के परिवार वाले आधुनिक और आजकल के खुले दिमाग के लोग हैं”, दिनेश जी ने अपना पक्ष रखा।

“मेरा पढ़ा-लिखा होना जैसे उस समय सबकी आँखों मे खटकता था, मेघा का वर्किंग होना खटकेगा, दिनेश जी। पता नहीं आपकी आँखों पर कौन सा चश्मा चढ़ गया है। लड़कों की कमी पड़ गई है क्या हमारी बेटी के लिये? आप लाख कुछ कर लें, मैं राजी नहीं होने वाली”, मालती ढृढ़ स्वर में बोली।

“मालती गांधारी तो तुम बन गई हो। अमित का इतना लायक होना, परिचित पढ़ा-लिखा परिवार होना, हर तरह से संपन्न होना और उससे भी ज्यादा दोनों को एक दूसरे को पसंद करना, ये सब कुछ नहीं दिखता?

नजर आता है तो बस इतना कि तुम्हारी भी परिचित में शादी हुई और फिर तुम्हारी जिंदगी नर्क हो गई। और वर्किंग होना क्यों खटकेगा भाई, उनकी बेटी तो खुद नौकरी शुदा है…कुछ भी सोचना है और नकारात्मक ही सोचना है। वाह मालती वाह!”

“मैं वो सब नही जानती। जब हमारी शादी हुई थी, डर तो तब भी था मेरे मन में कि पता नहीं आपके परिवार वाले मुझे मन से स्वीकारेंगे या नहीं और वही हुआ भी। पर उस समय हमारे परिवार मे  लड़कियों की राय नही मानी जाती थी। अपना नसीब मान कर मैनें सब स्वीकार कर लिया पर जिस मानसिक त्रासदी से मैं गुजरी, मैं अपनी बेटी को गुजरने नहीं दे सकती। बिल्कुल भी नहीं”, मालती ने कहा।

“तुमसे बात करना ही बेकार है, अपनी बात मनवाने के लिए तुम अपनी बेटी की पसंद से भी इंकार कर रही हो, जो गलत है। उसकी जिंदगी है, उसके फैसले का पूरा सम्मान करता हूँ मैं।”

“एक मिनट मेरी बेटी ने कोई फैसला-वैसला नहीं किया, वो बस उसे पसंद करती है। उसके साथ घुमी-फिरी नहीं है, उसके प्यार मेंं पागल नहीं हुई है। ठीक है बचपन से पारिवारिक फंक्शनों मे हम लोग मिले हैं, दोनों साथ में खेले कूदे हैं, पटती भी है दोनों की, मगर शादी का फैसला बचपने की बुनियाद पर नहीं रखा जाता, दिनेश जी।

और मैं जानती हूँ ये रिश्ता अगर आपकी बहन की ननद के बेटे का नहीं होता तो आप इतने पगलाए ना होते करने के लिए।”

“बस अब यही बचा था बोलने को, छोड़ो तुमसे तो बात करना ही बेकार है मालती”, शांत स्वभाव के दिनेश जी को भी आखिरकार गुस्सा आ ही गया और उठकर निकल गए।

शाम को मेघा आफिस से आई तो दोनों का उतरा चेहरा देखते ही समझ गई कि आज फिर महाभारत हुई है घर में। जबसे अमित की मम्मी का फोन आया है रोज यही चल रहा है। अमित का उसके प्रति और उसका अमित के प्रति झुकाव बचपन से ही रहा है। ऐसा नहीं कि दोनों के बीच प्यार है पर ऐसा भी नहीं है दोनों अगले को उस नजरिये से देखना चाहें तो ना देख पाएंँ।

जानती है पापा को समझाना आसान है पर मम्मी की मुश्किल वो समझती है। और मम्मी भी अपनी जगह पर बिल्कुल ग़लत नहीं, क्योंकि कुछ ऐसे ही संबंधों में पापा-मम्मी की शादी हुई थी, जिसमें पापा की इच्छा ज्यादा थी। हालांँकि दादा-दादी की चार बहुओं में सबसे योग्य, सुंदर, पढ़ी लिखी और अंत तक उनकी सेवा करने वाली मम्मी ही सिद्ध हुईं, पर मम्मी को कभी वो प्यार और इज्जत मिली ही नहीं जिसकी वो हकदार थीं।

इसीलिए मम्मी नहीं चाहती वही मेघा के साथ भी हो। सोचा जाए तो जाने-अनजाने मम्मी को पापा ने अपनी पसंद के तौर पर अपने परिवार पर थोपा था, पर यहांँ तो सामने से अमित की मम्मी ने रिश्ता भेजा है। वो अच्छी तरह से जानती है कि इन सबके बाद आज वो और उसका भाई जो कुछ भी है, उसमें मम्मी के त्याग और ढृढनिश्चय का बहुत बड़ा योगदान है। वो मम्मी को कुछ नहीं कहेगी। आज तक मम्मी ने जो किया है और आगे भी जो करेंगी उसमें उसका भला ही होगा। इतना विश्वास रखती है वो उन पर।

मेघा पापा के पास जाकर बैठी और बोली, “पापा, जब मम्मी नहीं चाहती तो आप क्यों जिद पर अड़े हैं? मेरे भविष्य के फैसले में मुझे आप दोनों की सहमति चाहिए। वैसे भी मेरी शादी की उम्र थोड़े ही बीती जा रही है। सो चिल डाउन, अब आप दोनों इस मुद्दे पर नहीं लड़ेंगे। चलिए मम्मी को साॅरी बोलिए और डिनर करने चलिए मुझे बहुत भूख लगी है।”

सबने खाना शुरू ही किया था कि मालती का फोन बजा, नंबर अमित की मांँ का था। मालती फोन उठाने में अनमना रही थी पर मेघा के कहने पर उठा लिया।

“कैसी हो बहनजी?” अमित की मांँ काफी खुश लग रही थीं।

“बस बढ़िया, आप सुनाओ।”

“हम भी बहुत बढ़िया जी। एक खुशखबरी देनी थी आपको। अमित को कंपनी की तरफ से पांँच साल के लिए विदेश भेज रहे हैं। हम लोग खुशी मना रहे थे तो अमित के पापा बोले, समधियाने भी बात करके खबर दे दो, खुश होने का हक उनका भी तो है। वैसे अमित ने बताया कि मेघा की कंपनी के ब्रांच वहां भी है तो वो चाहे तो ट्रांसफर ले सकती है।”

लाउडस्पीकर ऑन था, सब सुन रहे थे।

“बहन जी, यह तो सच में बहुत बड़ी खुशखबरी है। बहुत बहुत बधाई…पर बहन जी इतना बड़ा फैसला है, कुछ समय तो…”

“कोई नहीं जी बात कर लो आप आपस में। हमें आपका जो भी फैसला हो उससे दिक्कत नहीं।अगर मेघा यहां के करियर को छोड़कर वहां सेटल नहीं होना चाहेगी तो भी कोई बात नहीं। हम इंगेजमेंट करवा लेंगे शादी बाद में कर लेंगे, वैसे भी कौन सी दोनों की उम्र बीती जा रही है?

पर शादी करके दोनों बच्चे साथ चले जाते तो हमारे मन में तसल्ली रहती कि उन्नीस बीस होने पर दोनों एक दूसरे का ख्याल तो रख लेंगे। बहन जी, हम तो यही बात जानते हैं, ये बंगला, गाड़ी, दौलत शोहरत सबका उपभोग आदमी तभी कर पाता है जब पारिवारिक सुख शांति हो।

हमारे पूरे परिवार को मेघा बिटिया अपने स्वभाव और सरलता के कारण तो पसंद है ही। एक कारण आप जैसे सुलझे माता-पिता का होना भी है। आपकी बिटिया लायक है, हमारा बेटा लायक है, दोनों को रिश्तों की कोई कमी नहीं होगी पर जहांँ मन पहले से मिले हों वहांँ रिश्तों को मजबूती के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती।

वैसे चिंता ना करें तीन महीने बाद जाने की बात है, आराम से सोच समझकर जो सही लगे फैसला लें।”

फोन रखने के बाद मालती चुपचाप सी हो गई। दिनेश जी और मेघा ने भी ज्यादा कुरेदा नहीं। सब अपने अपने बिस्तरे में घुस गए। मालती की आँँखों में दूर-दूर तक नींद नहीं थी।

क्या वो जो सोच रही है वही सही है? दिनेश जी की मामी और मालती की बुआ एक ही थीं जिन्होंने दिनेश जी की इच्छा भांपते हुए अपनी ननद और भाई को रिश्ते के लिये मनाया था। दिनेश जी के माता-पिता को कमाऊ बेटे को लेकर अनगिनत अरमान थे। दान दहेज की इच्छा थी, अपनी पसंद से लड़की लाने की इच्छा थी जाहिर है वे लोग अनमने भाव से तैयार हुए।

फिर अपने आप को सिद्ध करने के लिए मालती सात साल तक ससुराल में ही रही। जेठ-जेठानी, दो देवर, एक ननद, सास ससुर के अलावा कोई ना कोई मेहमान आता-जाता रहता। मालती सोचती अपने अच्छे व्वहार और अपनत्व से एक दिन वो सबका मन जीत लेगी। जी जान लगाकर सारे काम करती, सबकी सेवा करती।

इसी बीच दोनों बच्चे भी हुए ननद की शादी हुई, सदा मालती एक टांग पर खड़ी रहती। जेठानी से भी सहयोग की अपेक्षा ना रख बड़ी बहन सा सम्मान देती रही, पर उसे ये एहसास तब हुआ कि उसकी सारी अच्छाई और तपस्या को पूरा परिवार उसका पश्चाताप समझ रहा है।

जब नई देवरानी ने मालती की तारीफ की, तो देवर को कहते सुना, “मालती भाभी को अपनाकर भैया ने जो उन पर एहसान किया, भाभी उसी को चुका रहीं हैं और कुछ नहीं।”

मन किया चिल्लाकर पूछूँ, ‘कैसा एहसान भैया? क्या मैं बेसहारा थी? क्या मैं अनपढ़ थी या बदसूरत थी, या फिर ठुकराई हुई थी? मेरे प्यार और भलमनसाहत को बजाय सराहने के आप इसे कौन सा रंग दे रहें हैं। बहुत हुआ अब और नहींं।’

अभी तक हर बार दिनेश जी मालती को अपने पास ले जाने की मनुहार करते तो मालती कहा करती अपने परिवार को भी तो थोड़ा वक्त दे लूंँ। इस बार दिनेश जी आए तो मालती ने अपना सारा सामान पहले से बांध रखा था। सास ससुर को जिस सेवा शुश्रूषा की आदत पड़ी हुई थी उनके लिए आज्ञा देना तो बड़ा मुश्किल था पर दिनेश जी के ये कहने पर कि बच्चे बड़े हो रहे हैं। पढ़ाई-लिखाई ना शुरू हुई तो आगे परेशानी बढ़ेगी पर वो निरूत्तर हो गए।

फिर तो मालती मेहमानों की तरह आने जाने लगी। हांँ, सास ससुर बीमार पड़े तो उन्हें अपने पास बुलाकर रखा और अंतिम सांँस तक उनकी सेवा की, क्योंकि उसे अपने फर्ज से कभी इंकार ना था पर जाते-जाते भी सास या ससुर किसी ने एक बार भी नहीं कहा कि मालती तू हमारी सबसे अच्छी बहु है।

इन्हीं सबकी डरी मालती ने शुरू से मन में ये धारणा बना ली थी कि वो कभी ना रिश्तेदारी में बेटी की शादी करेंगी ना हीं लड़के के प्रस्ताव पर।

लेकिन अब सब कुछ इतना मनोनुकूल होते हुए भी पता नहीं क्यों उसका मन नहीं मानता था। पर आज अमित की मांँ की बात सुनने के बाद उसके अंदर कुछ पिघलता सा लग रहा था। ना चाहकर भी झुकती जा रही थी। शायद उसका डर हारने लगा था इस बार!

‘कितनी अच्छी है अमित की मांँ। खुशी-खुशी बहु को बेटे के साथ भेजने को तैयार हो रही है। ना कोई मांग रखा ना कोई फरमाइश, हमारे संस्कार पर भरोसा दिखाया, ऐसे लोग होते हैं क्या सच में? होते हैं तभी तो दुनिया चल रही है।

अपने डर के रहते अगर कल को अगर अमित सा लड़का ना ढ़ूंढ पाई अपनी बच्ची के लिए तो क्या जीवन भर अफसोस ना रह जाएगा। क्या आधार है उसकी सोच का कि ऐसा हुआ तो ऐसा ही होगा…कबसे इतने तयशुदा पैमानों पर चलने लगी जिंदगी, ना भाई ना। इतना बड़ा रिस्क कम से कम अपनी बेटी के जीवन के लिए तो नहीं ले सकती वो।’

सुबह मेघा आफिस जाने लगी तो मालती ने कहा, “बेटा, जरा जल्दी आने की कोशिश करना। अमित और उसकी फैमिली को आज डिनर पर बुलाने का सोचा है।”

बैग समेटती मेघा और ब्रेकफास्ट करते दिनेश जी दोनों ठिठक गए।

“तुम दोनों ऐसे क्यों रिएक्ट कर रहे हो। ग़लत फैसला लें रही हूं क्या। रूको फिर से सोचती हूं”, मालती ने चुटकी ली।

“अरे नहीं मालती, मुझे तो भरोसा नहीं हो रहा”, दिनेश जी हड़बड़ा कर बोले।

“इतिहास खुद को हर बार दोहराए ये जरूरी तो नहीं…”, ये बात मेरे दिमाग में घुस गई है मेरे परिवार वालों…और हां अब सब तैयारी शुरू कर दो, बस तीन महीने बचे हैं”, कहकर मालती विवाह के गीत गुनगुनाने लगी।

दोनों बाप बेटी समझ गए थे कि मालती ने सच में खुशी खुशी ये फैसला लिया है और वो आज दिल से बहुत खुश हैं।

इमेज सोर्स : Still from the Ferns N Petals Ad, YouTube 

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