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मैं अपने पति से लंबी थी और लोग हमारा मज़ाक उड़ाते थे, लेकिन…

बेटा वो समय ही ऐसा था। बेटियां अपने परिवार के निर्णय का प्रतिवाद नहीं करतीं थीं। वैसे भी मैं आत्मनिर्भर भी तो नहीं थी तुम्हारी तरह। उस पर मेरी ये लंबाई...

बेटा वो समय ही ऐसा था। बेटियां अपने परिवार के निर्णय का प्रतिवाद नहीं करतीं थीं। वैसे भी मैं आत्मनिर्भर भी तो नहीं थी तुम्हारी तरह। उस पर मेरी ये लंबाई…

“कौन शादी करेगा इससे? लड़की है या ताड़ का पेड़? देखो लेडी अमिताभ बच्चन! अरे पति को इससे सर उठाकर बात करना होगा। इतना लंबा लड़का कहां मिलेगा? माडलिंग क्यों नहीं करती? इतनी लंबाई का लड़की के लिए क्या काम? लड़के तो छोटी लड़कियां ही पसंद करते हैं! ऐसे ना जाने कितने जुमले मुझे रोज सुनने पड़ते थे चित्रा को, कभी परिवार से, कभी पड़ोस से कभी सड़क पे, कभी कहीं, तो कभी कहीं”, वंदना अपनी भतीजी को बता रही थी।

“और इसीलिए शायद आप उस बलिवेदी…हां हां बलिवेदी ही कहूंगी उसे मैं क्योंकि विवाह वेदी तो वो होती है जहां स्वेच्छा, आदर भाव और प्रेम से समर्पण का भाव हो। पर आपके साथ तो अन्याय हुआ। बुआ, सरासर अन्याय। आप चढ़ गईं उस बलि वेदी पर? लेकिन वेदी तक पहुंचना तो दूर, पापा वैसा रिश्ता भी लेकर आए तो मैं तो बगावत कर दूंगी खुलेआम”, चित्रा अपनी बुआ वंदना की शादी का एल्बम देख रही थी तो अचानक से बोल पड़ी।

“बेटा वो समय ही ऐसा था। बेटियां अपने परिवार के निर्णय का प्रतिवाद नहीं करतीं थीं। वैसे भी मैं आत्मनिर्भर भी तो नहीं थी तुम्हारी तरह। उस पर से मेरी ये लंबाई”, हिचकते हुए वंदना बोली।

“आत्मनिर्भर नहीं थी तो क्या हुआ बुआ? इंसान तो थी ना आप? फिर क्यों एक गाय बकरी की तरह बिना आपसे पूछे, बिना आपकी मर्जी जाने आपको ऐसे रिश्ते में बंधने से मजबूर कर दिया गया, जो कहीं से मेल खाता ही नहीं था? रही बात लंबाई की, तो लंबे लड़कों का अकाल पड़ा हुआ था उस समय क्या? ये तो साफ-साफ अनदेखी हुई आपके साथ बुआ”, चित्रा आक्रोश में थी।

“इसमें वंदना का नहीं तेरे पापा का दोष है चित्रा। दो बेटियां ब्याहने के बाद बाबूजी इतने थक गए कि वंदना की जिम्मेदारी उन्होंने तेरे पापा पर डाल दी। अपनी नौकरी और रिश्ता ढूंढने में सामंजस्य बिठाते हुए उन्होने रिश्ता देखना शुरू किया। इधर बाबूजी भी जल्दी जल्दी की रट लगाए थे, मानो बेटी की शादी ना होकर कोई ट्रेन हो जो छूटी जा रही हो। सब कुछ तो ठीक ही था पर वंदना की हाइट हर जगह आड़े आ जाती। पांच फीट आठ इंच से बड़ा लड़का होता तो नौकरी और परिवार सही नहीं मिलता। नौकरी और परिवार अच्छा होता तो लड़के की ऊंचाई कम होती।

आखिरकार तेरे फूफा जी से रिश्ता तय हुआ। सच्चाई तो बस तेरे पापा जानते थे क्योंकि लड़के को केवल उन्होंने ही देखा था। पर हमें बताया गया कि लड़के की लंबाई वंदना के बराबर है। सब खुश थे, धूमधाम से शादी की तैयारियां हुई।

पर होश तो सबके तब उड़े जब जयमाल का वक्त आया। लड़का वंदना से खासा छोटा दिख रहा था। बेचारी वंदना गठरी सी झुक गई थी, पिता और भाई की इज्जत की खातिर। थोड़ी बहुत हलचल तो दोनों पक्षों में हुई पर उस वक्त अगर बारात द्वार से आकर लौट जाती तो अनर्थ ही हो जाता।बाबूजी समधी के पैरों में लटक गए। अंततः उन्हें भी मानना पड़ा। उनके पास भी कोई उपाय नहीं था।

मैंने तो अकेले में बुलाकर बहुत समझाया तेरे पापा को। पर मेरी एक ना चली, उन्होंने अपनी लाचारी बेबसी जताकर वंदना से भी माफी मांग ली। पर क्या माफी से इसकी बेमेल जोड़ी सुधर जाती?” चित्रा की मां उमा जो बहुत देर से बुआ भतीजी की बातें सुन रही थी ने आकर बोला।

“भाभी, चित्रा, मैंने तो अपने होंठ ही सिल लिए थे ब्याह के बाद। ससुराल में भी सबने खुब सुनाया, बोझ होगी बाप भाई पर तभी तो देखा नहीं ठीक से। तेरे फूफा भी बुझे बुझे से रहते, उन्हें भी लगता कि उनके साथ धोखा हुआ है।एक कमरे में रहकर भी हम अजनबी थे एक दूसरे की खातिर।

बाहर निकलती तो लोग मुंह दबाकर हंसते। एक तो पहले ही मैं शांत थी धीरे-धीरे और सिमटती गई खुद में और एक समय तो ऐसा आया कि मुझे मानसिक चिकित्सा की जरूरत पड़ गई। उसके बाद से तेरे फूफा में गजब का बदलाव पाया मैंने। वो ना केवल अपनी हीन-भावना से बाहर आकर मेरा बहुत ख्याल रखने लगे बल्कि अब लोगों को जवाब भी देने लगे।

लोग अलग नजरों से देखते तो कहते, ‘अरे भाई ऐसे क्यों देख रहे हो? आने वाली जेनरेशन लंबी हो इसलिए लंबी दुल्हन की है।’ तो किसी को कहते, ‘अरे गाने तो बड़े मज़े लेकर देखते हो, जिसकी बीबी लंबी उसका तो बड़ा नाम है और हमें आश्चर्य से क्यों भाई?’

उनके यू-टर्न से मेरा भी खोया आत्मविश्वास लौटने लगा और मैं भी अपने आप को इंसान समझने लगी। धीरे-धीरे हमारा जीवन तो सामान्य हो गया। पर लोगों की नजरें और उनमें उभरते प्रश्नचिन्ह नहीं बदले।

फिर एक बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई प्रिया का जन्म। बहुत सारी जटिलताओं के कारण मुझे बिस्तर से ना उतरने की ताकीद कर दी गई। तब मोबाइल वगैरह का तो चलन था नहीं, तो मैंने संगीत सीखने के अपने दबे हुए शौक को उजागर किया और धीरे-धीरे बाद में, तुम्हारे फूफाजी के सहयोग से मैंने इस शौक को रोजगार में भी बदल लिया। भले ही हम दिखने में एक दूसरे के लिए बेमेल रहे लेकिन एक समय के बाद मानसिक रूप से मेरे साथ हमेशा खड़े होकर तुम्हारे फूफा जी ने मुझे और मेरे जीवन को संवार दिया”, वंदना बता रही थी।

“हां और आज भी जब आप किसी स्टेज शो में जाती हैं तो शुरुआत उसी गाने से करती हैं जो कहीं ना कहीं आपकी जिंदगी से जुड़ी है। विद्यापति के उस गाने से, पिया मोरा बालक हम तरूणी गे”, उमा ने जोड़ा।

“अगर मैं नहीं गाती तो फरमाइश आती है। शायद दूसरे का दु:ख सुनना और मजे लेना दुनिया की आदत हो चली है”, वंदना बोलकर व्यंग्यात्मक ढंग से मुस्कुरा दी।

दोस्तों, हमारे समाज के लिए बेमेल विवाह कोई नई बात नहीं है पर पति-पत्नी मानसिक रूप से एक दूसरे को स्वीकार भी कर लें, तो भी समाज उन्हें बार-बार उन्हें इस बात का एहसास दिलाता और प्रश्न उठाता ही रहता है। आप क्या कहते हैं?

इमेज सोर्स: ePhotocorp from Getty Images via Canva Pro (for reptresentational purpose only) 

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