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शादी है, कपड़े नहीं जिसे रोज़ बदला जाए…

एक बार प्रेम-विवाह और फिर तलाक के बाद हमारी छिछालेदरी करवा के उसका मन नहीं भरा जो अब फिर एक नया राग लेकर बैठ गई है।

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एक बार प्रेम-विवाह और फिर तलाक के बाद हमारी छिछालेदरी करवा के उसका मन नहीं भरा जो अब फिर एक नया राग लेकर बैठ गई है।

“बात कुछ बनी क्या? क्या बोले वो लोग? कुछ पाज़िटिव हुआ या फिर वही?”

दिनेश जी के घर में प्रवेश करते ही बिना चाय पानी पूछे सीमा ने प्रश्नों की बौछार कर दी। बदले में दिनेश जी ने सिर्फ ना में सर हिला दिया, तो सीमा का मन और जोश दोनों ठंडा हो गया। घर का माहौल तो ऐसा लगता मानो किसी की मौत हो गई हो।और ये कहानी पिछले तीन महीनों से चल रही थी। दिनेश और सीमा की दो बेटियां हीं थीं।

बड़ी ऋतु ने अपने स्कूल टाइम अफेयर से शादी की थी। हालांकि दोनों ने आत्मनिर्भर होने के बाद सोच समझकर शादी की थी, पर बचपन का प्यार पचपन तक टिक ना पाया। दो साल होते-होते बात कोर्ट के दरवाजे तक पहुंच गई और दोनों परिवारों के ना चाहते हुए भी दोनों का संबंध विच्छेद हो ही गया।

फिर क्या था, ऋतु ने कह दिया था कि अब वो फिर से शादी ब्याह के झंझट में ही नहीं पड़ेगी, और मां-बाप का बेटा बनकर रहेगी। ऋतु ने अपनी कंपनी भी बदल ली और नए शहर में सेटल हो गई।

दोनों बहनों ऋतु और प्रिया में छह साल का अंतर था। प्रिया नौकरी की तैयारी कर रही थी। नौकरी लगना और फिर शादी उसमें खासा वक्त था और प्रिया को लेकर वो लोग पूरी तरह निश्चिंत थे। पर वो ऋतु को लेकर हमेशा परेशान जरूर रहते क्योंकि वो अकेली रहती थी। ऐसे मानसिक हालातों से गुजरी थी और आगे पहाड़ सा जीवन पड़ा था तो मां बाप की चिंता लाजमी थी।

खैर, समय तो बीत ही रहा था। अब जब उस घटना के चार साल बाद, पूरी तरह सेटल होकर जब प्रिया ने शादी के लिए हामी भरी और दिनेश जी सीमा ने रिश्ता देखना शुरू ही किया कि ऋतु ने फिर एक विस्फोट किया।

उसने कहा, प्रणव, उसका कुलीग उसे बहुत पसंद है, और वो भी उसे पसंद करता है, यहां तक की प्रणव की फैमिली को भी उसके तालाकशुदा होने से कोई प्राब्लम नहीं है। वो दोनों चार साल से जान रहे हैं एक दूसरे को, अब जल्द ही विवाह के बंधन में बंध जाना चाहते हैं।

अब तो घर में भूचाल सा आ गया। दिनेश जी तो गुस्से से आग-बबूला हो गए।

“शायद इसीलिए बड़े बुजुर्ग कह गए थे कि बच्चों को अधिक स्वतंत्रता भी नहीं देनी चाहिए। कहां कहती थी अब शादी ही नहीं करूंगी और तुरंत मन बदल लिया। एक बार प्रेम-विवाह और फिर तलाक के बाद हमारी छिछालेदरी करवा के उसका मन नहीं भरा जो अब फिर एक नया राग लेकर बैठ गई है। अरे आजकल के बच्चों के लिए शादी ना हो गई कपड़े हो गए। जब मन किया पहन लिया जब मन किया दूसरा बदल लिया।”

“आप शांत हो जाइए, बच्ची है, मैं समझाऊंगी उसे।”

“कब तक बच्ची रहेगी सीमा..हम बूढ़े होने चले हैं और उसका बचपना नहीं गया अभी तक?”

बेचारी प्रिया! मां-बाप के सुख दुख की साथी। कभी मां-बाप को समझाती तो कभी बहन को। अंततः दोनों पक्षों में सामंजस्य बिठाते हुए ये तय हुआ कि पहले प्रिया की शादी हो जाए फिर दिनेश जी और सीमा ऋतु के पास रहकर प्रणव से मिलेंगे, उसे परखेंगे फिर तय करेंगे कि शादी करनी है या नहीं।

अब प्रिया की शादी में ऐसे तो कोई परेशानी नहीं आनी थी, पर ऋतु के तलाक की बात आती तो बात बनते बनते बिगड़ जाती और बात छुपने वाली तो थी नहीं जो छुपती। इसी चक्कर में पूरे घर का माहौल खराब हो रखा था।

दिनेश जी की तबीयत भी खराब चलने लगी थी, तो प्रिया ने अपने आफिस से आठ दिन की छुट्टी लेकर तय किया कि मां बाप को लेकर ऋतु के पास चलते हैं। वहां स्वास्थ्य सेवाएं अच्छी हैं। दिखा सुनाकर ले आएंगे, फिर शायद ऋतु से मिलकर भी कुछ मन बदले उनका। हालांकि दिनेश जी ने एक सिरे से इंकार कर दिया, पर पत्नी और बेटी के आगे उनकी एक ना चली।

ऋतु एयरपोर्ट आई थी सबको लेने। दिनेश जी ने उससे बात भी नहीं की।

अगले दिन ऋतु के चार पांच कुलीग दिनेश जी और सीमा से मिलने आए। सीमा की नजर उनमें प्रणव को ढूंढ रही थी। सब लगभग एक ही एजग्रुप के थे और सबकी एक्टिविटी भी एक सी ही थी। किसी ने ना अपना नाम बताया ना दिनेश या सीमा ने पूछा तो वो समझ भी ना पाए प्रणव कौन है, पर सारे बहुत ही अच्छे थे। खुब हंसने बोलने वाले, मजाकिया, महफ़िल ही जमा दी सबने। शाम को आए और रात को डिनर करके ही गए।

बहुत दिनों बाद दिनेश, सीमा और प्रिया इतने दिल खोलकर हंसे बोले थे। देर रात तक नींद ना आने की शिकायत करने वाले दिनेश जी दस बजते बजते सो गए।

अगले दिन दिनेश जी का चेकअप था तो सीमा और प्रिया को जाना भी ना पड़ा। कल वाले दो लड़के फिर आ गए और ऋतु के साथ जाकर दिनेश जी का चेकअप करा लाए। लौटती में तीनों ने दिनेश जी को अपना आफिस टूर भी करवाया।

बड़े प्रसन्नचित होकर लौटे दिनेश जी। सीमा और प्रिया दिनेश जी को पहले की तरह हंसता बोलता देख काफी खुश थी। दिनेश जी और ऋतु के मध्य भी अबोले की दीवार ढहने लगी थी।

अगले दिन सुबह सुबह दिनेश जी की सारी रिपोर्ट्स लेकर उनमें से एक बंदा आया। ज्यादा कुछ नहीं निकला था, पर दवाईयां नियमित लेनी थीं। उस बंदे ने बड़ी तसल्ली से सारी चीज़ें समझाई दिनेश जी को। शाम को पास के योगा सेंटर और पास के ही दर्शनीय स्थलों में ले जाने की बात कह वो ऋतु के साथ आफिस के लिए निकल लिया।

शाम में उसके साथ एक दूसरा बंदा भी आया। उन्होंने योगा सेंटर के साथ आसपास की सारी जगहों का टूर कराते हुए, सबको पास के एक अच्छे रेस्तरां में डिनर करा घर ड्राप कर दिया।

“ऋतु, बेटा ये तेरा नया आफिस और यहां के लोग बड़े अच्छे हैं। अब हम दूर भी होंगे तो तुम्हारी चिंता नहीं होगी। सारे बंदे अच्छे हैं। जितने लड़कों से मिले कह नहीं सकते कि फलां अच्छा है तो फलां उससे कमतर है।”

दिनेश जी के दिल की बात उनकी जुबां पर आ गई।

तभी सीमा का फोन बजा। उधर से उसकी बड़ी बहन थी, जिसकी जेठानी ने अपने बेटे के लिए प्रिया का रिश्ता मांगा था। सीमा ने सबसे विचार विमर्श कर इत्तिला करने की बात कही।

रिश्ता काफी अच्छा था, लड़का भी देखा भाला था। इनकार की कोई वजह ही नहीं थी। सबने आगे की बात और तैयारियों के लिए दो दिन बाद निकलने का प्रोग्राम बनाया।

अगले दिन निकलना था तो शाम को फिर सब मिलने आए। अब सीमा का सब्र टूट ही गया। वो पूछ ही बैठी, “बेटा, तुमसे से प्रणव कौन है? बता ही दो अब।”

क्षणभर को सब शांत हो गए।

“अंकल,आंटी! प्रणव कौन है, कैसा है ये मतलब नहीं रखता। जो बात महत्वपूर्ण है वो ये कि कौन इंसान कैसा है, ये उससे मिलने जानने के बाद पता चलता है। ऋतु का एक निर्णय गलत था तो इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं कि अब वो अपने जीवन के सारे निर्णय गलत ही लेगी। जिंदगी जब उसे एक और बार मौका दे रही है तो आपका भी तो एक और मौका देना बनता है ना?” उनमें से एक लड़का जो लगभग हर दिन उनसे मिल रहा था बोला।

“कहीं तुम ही तो…”

“हां, मैं ही प्रणव हूं और मैं आपको यकीन दिलाता हूं कि इस बार आपकी बेटी ने गलत निर्णय नहीं लिया है।”

दिनेश जी उठकर खड़े हो गए तो सबकी सांसें थम गई। उन्होंने प्रणव के पास पहुंच कर उससे कहा, “खड़े हो जाओ।”

किसी अनजानी आशंका से सीमा दिनेश जी को रोकने बढ़ीं तब तक प्रणव खड़ा हो चुका था। दिनेश जी ने आगे बढ़कर उसे गले से लगा लिया।

“सच कहा तुमने। इंसान गलत नहीं होता, निर्णय गलत होते हैं। और मुझे गर्व है तुम पर। जो लड़का मेरी बेटी की गल्तियों की सफाई दे सकता है, वो कैसे गलत हो सकता है। मैं जल्द ही आऊंगा बेटे, आपके मम्मी पापा से मिलने।”

सबके सहमे हुए चेहरों पर फिर से मुस्कान ने जगह बना ली थी।

दोस्तों! जिंदगी हर कदम एक इम्तिहान है और बिल्कुल जरूरी नहीं है कि हर इम्तिहान हम पास कर ही जाएं। पर एक बार फेल हो जाने के बाद आगे इम्तिहान दिया ही नहीं तो आगे कैसे बढ़ेंगे हम?

आप क्या कहते हैं, अवश्य बताएं…

इमेज सोर्स: Anoop VS from Pexels via Canva Pro

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