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इस शादी के बाद विशाल सर मेरे जेठ हो जाएंगे और एक जेठ और बहु के नाच गान को हमारा समाज क्या परिवार भी स्वीकार नहीं करेगा।'
इस शादी के बाद विशाल सर मेरे जेठ हो जाएंगे और एक जेठ और बहु के नाच गान को हमारा समाज क्या परिवार भी स्वीकार नहीं करेगा।
एंड द अवार्ड गोज़ टू द मोस्ट प्राॅमिसिंग एंड डेडिकेटिड पेअर आफ द शो, स्वाति एंड विशाल! ए ग्रेट राउंड आफ एप्लाउज फाॅर दिस लवली पेअर!’
उदघोषणा होते ही पूरी दर्शक दीर्घा सहित सभी प्रतियोगी तक भी खुशी से झूम उठे। ऐसा आजतक के इतिहास में नहीं हुआ था कि दुसरी जोड़ियों के सपोटर्स भी वहांँ खुश हो रहे थे, नाच रहे थे झूम रहे थे। खैर जोड़ी भी तो ऐतिहासिक ही थी – स्वाति और विशाल की।
पत्रकारों का हुजूम जमा था, सब उनकी कहानी जानने को आतुर थे।
विशाल ने बोलना शुरू किया, “सबसे पहले तो तो मैं भगवान का शुक्रिया अदा करूंगा, जिस सफर की शुरुआत हमने की थी। उसके अंजाम को लेकर हम भी बहुत डरे हुए थे। उसको यहांँ तक इस ट्राफी तक लाने में सबसे बड़ा श्रेय भगवान को जाता है, जिन्होंने हमें ताकत दी। दूसरा श्रेय हमारे परिवार का है, जिन्होंने हमें ही उत्साह नहीं बल्कि खुद को भी हिम्मत दी और अपने आप को मजबूत बनाया सबका सामना करने, सबकी सुनने के लिए और सभी जज, यहांँ बैठ हर कदम हमारा हौसला बढ़ाने वाले दर्शक और मेरे प्रतियोगी दोस्त सब हमारी इस सफलता में बराबर के हकदार हैं।”
“हम स्वाति जी से जानना चाहेंगे, उनका ये सफर कैसा रहा और यहांँ तक पहुंचने के लिए वो कैसे कैसे दौर से गुजरीं”, एक पत्रकार ने स्वाति की ओर प्रश्न उछाला।
स्वाति पहले मुस्कुराई, फिर बोली, “छह महीने पहले की बात है, बचपन से डांस के प्रति अपने लगाव को एक पहचान दिलाने की ख्वाहिश लेकर मैं विशाल डांस स्कुल गई थी। विशाल सर के सिखाने के ढंग, बात व्यवहार का बहुत नाम सुन रखा था। दो महीने डांस सिखाने के दौरान इन्होंने ना केवल मेरी नृत्य विधा को परखा, बल्कि एक इंसान के तौर पर भी इतना देखभाल लिया कि अपने छोटे भाई का रिश्ता मेरे सामने रख दिया।” कहकर स्वाति चुप हो गई उसका गला भर आया।
विशाल ने बात को फिर आगे बढ़ाया, “मैंने दोनों परिवारों को मिलाया बातचीत की, दोनों पक्ष खुश थे। पर कहीं ना कहीं स्वाति मुझे थोड़ी दुखी दिख रहीं थीं। मैंने दोनों परिवारों को बिठाया और इनसे पूछा, कहीं इस शादी से इनको कोई दिक्कत तो नहीं? कहीं कोई और पसंद या फिर राकेश इनके पैमानों पर खरा नहीं हो।”
फिर स्वाति बोली, “जब विशाल सर ने सबके सामने मुझसे ये पूछा तो मेरा मन भर आया। मैंने कहा, विशाल सर का सानिध्य पाकर मुझे लगने लगा था कि मैं डांसिंग को अपना करियर बना सकती हूं। मुझे इनसे अभी बहुत कुछ सीखना था। मुझे राकेश बहुत पसंद हैं। मैं उन्हें भी खोना नहीं चाहती।पर मेरे मन में यही दुविधा है कि मुझे अपने डांस करियर को यही विराम देना होगा क्योंकि इस शादी के बाद विशाल सर मेरे जेठ हो जाएंगे और एक जेठ और बहु के नाच गान को हमारा समाज क्या परिवार भी स्वीकार नहीं करेगा।
पूरे कमरे में कुछ क्षणों के लिए सन्नाटा सा छा गया। तभी भाभी उठीं और मेरे करीब आकर मेरे आंँसू पोंछे और बोलीं, ‘बस इतनी सी बात देवरानी जी? आपको क्या लगता है, हमने ये बात नहीं सोची होगी? हम आपके बारे में नहीं सोचते?’
तभी राकेश आए और इस कंपीटिशन का फार्म मेरे हाथ में थमा कर बोले, ‘आज से ये सब फिक्र छोड़ कर आप डांस पर ध्यान दें। ये ट्राॅफी इस बार हमारे घर आनी चाहिए।’
सासू मांँ बोली, ‘बहु रिश्ते का नाम नहीं, भाव महत्त्व रखता है। तुम दोनों जेठ-बहु हो तो इससे डांस का क्या संबंध? ये बाहर तुम लोगों का प्रोफेशन है। रिश्ते में स्नेह और इज्जत ही सबसे बड़ी चीज है। तुम बेझिझक अपना करियर जारी रखो और हांँ जैसा राकेश ने कहा, ये ट्राॅफी हमारे ड्राँँईग रूम में सजनी चाहिए।’
पूरा माहौल हल्का हो गया। शादी के बाद तीन महीने की इस कड़ी मेहनत और हमारे पूरे परिवार के सहयोग समर्पण ने हमें यहां पहुंचाया है। और आज हम ये संदेश जरूर देना चाहेंगे कि रिश्तों के नाम पर कुर्बानी देना लेना बंद करें। रिश्ते नाम से नहीं निभते, परस्पर भाव से निभते हैं। आँखों मेंं अदब और दिल में इज्जत हो तो हाथों में हाथ डालने पर भी रिश्ते की मर्यादा जस की तस रहती है। जेठ-बहु स्वाति-विशाल इसका उदाहरण हैं।”
पूरा हाल तालियों से गुंजायमान हो गया।
चित्र साभार : RichLegg from Getty Images Signature via CanvaPro
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