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आपके लिए पराई सिर्फ आपकी पत्नी है और कोई नहीं…

"क्यों ना निकालूं बाल की खाल? जिंदगी क्या बार बार मिलती है। ब्याह के बाद की स्वतंत्रता और आनंद तो मिला नहीं, बंधन और जिम्मेदारियां भर भर के मिलती रहीं।"

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“क्यों ना निकालूं बाल की खाल? जिंदगी क्या बार बार मिलती है। ब्याह के बाद की स्वतंत्रता और आनंद तो मिला नहीं, बंधन और जिम्मेदारियां भर भर के जरूर मिलती रहीं।”

“क्या-क्या करवाएगी ये हमारी बिटिया हमसे पता नहीं। ना हमारी उम्र का सोचती है, ना शरीर के बारे में!” जाॅगिंग करती और हांफती सुरूचि पति राजेश से कह रही थी।

“मैडम, हमारे शरीर और उम्र दोनों की चिंता है उसको, तभी तो भेजती है हमें सुबह-सुबह उठाकर”, राजेश सामान्य थे।

“आप तो चुप ही रहो प्लीज़…और कुछ आता है आपको तरफदारी के अलावा? बीते कल तक अपने घर वालों की और आज कभी बेटी की तो कभी बेटे की। एक सब से पराई तो मैं ही हूँ आपके लिए”, कहकर पार्क में ही पड़े एक बेंच पर बैठ गई सुरूचि।

“तो आप ही कहां जाने देतीं है ताने देने का एक भी मौका? अरे वो तो समय ही ऐसा था। बहुएं ब्याह के बाद ससुराल में ही रहती थीं। सारी जिम्मेदारियां निबटाने तक मैं कैसे अपनी जिम्मेदारियों से इंकार कर बागी बन जाता? वो भी घर का बड़ा बेटा! और फिर दोनों बहनों की शादी और भाई की नौकरी के बाद तो लाया था ना अपने साथ तुम्हें?” राजेश भी आज फैसले के मूड में था।

“हां, पूरे नौ साल बाद! दो बच्चों के साथ अपने पास लाकर तो बहुत बड़ा एहसान किया था ना आपने? और आपको क्या लगता है मुझे पता नहीं है कि आपने मुझे शहर ले जाने की बात की थी या आपके पिताजी ने? वो भी इसलिए कि पीछे से वो और माता जी भी शहर में अपनी तबीयत दिखाने आते जाते रहे और उन्हें रहने खाने में दिक्कत ना हो”, सुरूचि ने मुंह बनाते हुए कहा।

“बात तुम्हारे शहर आने की थी ना? तुम आम खाती ना पेड़ गिनने की क्या जरूरत? और हां अगर मान लिया पिताजी की मंशा यही थी तो गलत क्या था? हम नहीं आते जाते अपने बच्चों के पास क्या? बाल की खाल निकालना तो कोई आपसे सीखे मैडम”, राजेश ने हाथ जोड़ते हुए कहा।

“क्यों ना निकालूं बाल की खाल? जिंदगी क्या बार बार मिलती है। ब्याह के बाद की स्वतंत्रता और आनंद तो मिला नहीं, बंधन और जिम्मेदारियां भर भर के जरूर मिलती रहीं। अपने लिए, अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं, शौक के लिए समय ढूंढती रही और आस देखती रही, अच्छा ये हो जाए फिर, अच्छा वो हो जाए फिर…पर…वो “फिर” तो कभी आया ही नहीं जीवन में”, आवेश में बोलती सुरूचि का स्वर धीरे धीरे धीमा पड़ गया।

“अरे भाई! इसमें इमोशनल होने की क्या जरूरत है? अब तो है ना हमारे पास समय और अब तो मैं भी वहीं करता हूं ना जो तुम कहती हो।  मैंने तो कहा था ना तुमसे रिटायरमेंट के बाद मैं और मेरा सारा समय सिर्फ तुम्हारा”, राजेश ने समझाया।

“हुंह? वर्षा जब कृषि सुखाने।अब तो शरीर ही साथ नहीं देता और ना ही मन। पता नहीं कैसे लोग कहते थे, बुढ़ापे में घुमेंगे, तीर्थ करेंगे। समतल जमीन पर सांसें फूलती हैं, कहां पहाड़ चढ़ेंगे? हाइपरटेंशन और शुगर के कारण हर जगह सौ परहेज। अब तो समय से नींद और खाना बस इसी की कवायद चलती रहती है दिन रात। और अब दिन-ब-दिन तो शरीर और गिरेगा ही ना”, सुरूचि अंदर से दुखी थी।

“अरे सात बजने को है चलो। रम्या सोच रही होगी मम्मी पापा कहां रह गए। वो आफिस को लेट हो जाएगी”, राजेश ने अचानक से कहा और दोनों उठकर घर की तरफ चल दिए।

“फिर कहासुनी हुई आप दोंनो की?” रम्या ने सुरूचि का मुंह देखते ही पकड़ लिया।

“क्या करूं बेटा? तुम्हारी मम्मी उन्हीं बातों को लेकर बैठ जाती हैं, जिनका अब कुछ नहीं हो सकता। हां हुई थीं मुझसे गलतियां, पर अब उनको बदला तो नहीं जा सकता ना? मैं करूं भी तो क्या? मेरे दर्द और तकलीफों को तो समझा ही नहीं किसी ने आज तक?” राजेश के स्वर में बेबसी थी।

“मैं समझाऊंगी पापा आज मम्मा को, आप टेंशन ना लो”, रम्या ने मुस्कुराकर कहा।

दोपहर बारह बजे रम्या ने आफिस से फोन कर सुरूचि को शाॅपिंग के लिए तैयार रहने कहा, वो हाफ टाइम की छुट्टी लेकर आने वाली थी।

शाॅपिंग के बाद दोनों मां बेटी काॅफी शाप में काॅफी पीने बैठे तो सुरूचि पूछ बैठी, “नमन से बात हुई बेटा तुम्हारी कल? कैसा है वो? कुछ आने का प्लान बना?”

“कहां आने का प्लान मम्मा? कंपनी शायद एक साल और बढ़ा दे उसकी ट्रिप। कल भी रो रहा था फोन पर”, रम्या दुखी होकर बोली।

दरअसल रम्या का पति नमन पिछले डेढ़ साल से कंपनी की तरफ से फाॅरेन ट्रिप पर भेजा गया था। जाना तो रम्या भी चाहती थी, पर फैमिली अलाउड नहीं थी वहां। फिर रम्या के भी आफिस की जिम्मेदारी थी तो ना चाहकर भी दोनों अलग अलग रह रहे थे।

“क्या नमन रो रहा था?” सुरूचि ने आश्चर्य से पूछा।

“बहुत! अक्सर रोता है, उदास हो जाता है। उसे भी कहां अच्छा लगता है मुझसे, अपने परिवार से दूर रहना, पर नौकरी है, जिम्मेदारी है। भविष्य अच्छा करना है, तो रहना ही पड़ेगा ना मम्मा”, रम्या ने कहा।

“हां, पर मैं तो सोचती थी…”

“जानती हूं, यही ना कि एक दूसरे से दूर रहने का कष्ट सिर्फ औरत को होता है। वो अकेली होती है, रोती है, उदास होती है। पर नहीं मम्मा पुरुषों की भी भावनाएं तो होती हैं। ये बात अलग है वो जाहिर नहीं करते, या उन्हें जाहिर करने का हक ही नहीं दिया जाता। और जो परुष अपनी भावनाओं की गहराई समझते हैं, वे अक्सर दूसरों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचते। बाकी का पता नहीं नमन तो ऐसा ही है।”

“आप ही सोचिए न। मैं जब ज्यादा अकेलापन महसूस करने लगी तो आप लोगों को बुला लिया। कभी नमन के माॅम डैड आ जाते हैं, पर नमन कितना अकेला है वहां। डेढ़ साल में मात्र आठ दिनों के लिए आया है एक बार। और तो और सोचिए उसे बच्चों से कितना प्यार है, पर हम अब तक बच्चा प्लान नहीं कर पाए क्योंकि नमन अपने बच्चे का हर पल जीना चाहता है”, रम्या धुन में बोलती जा रही थी।

सुरूचि को याद हो आया, राजेश भी तो रम्या से बेहद जुड़े थे। उसे छुट्टियों के बाद छोड़कर जब जाते तो आंखें डबडबा उठती थी उनकी। जब छुट्टियों में आते तो हर खाने को इतना स्वाद लेकर खाते और तारीफ करते मानों कितने दिनों बाद खाना खाया हो। उसके साथ बैठते तो टकटकी लगाए ताकते रहते उसे, मानों अकेलेपन के दिन और रातों के लिए आंखों में भर लेना चाहते हों उसे।

चिट्ठियां नहीं पोथी लिखकर भेजा करते, जिन्हें पूरी तरह पढ़ने में उसे चार दिन लग जाते और उसकी यदा कदा भेजे जाने वाली छोटी सी चिट्ठी के लिए आकर उससे लड़ाई भी करते। वो कितना समझाती कि उसे एक पल की फुर्सत नहीं लेकिन…

और ये आजकल के बच्चे कितने समझदार हैं, एक दूसरे को कितनी अच्छी तरह समझते हैं। रम्या तो खुद से ज्यादा नमन के लिए सोचकर दुखी है।

“कहां खो गई मम्मा?” रम्या ने सुरूचि को झकझोरा।

“कुछ नहीं बेटे। अपने अतीत में चली गई थी। कितनी गलत थी मैं भी। बस अपना पक्ष सोच सोचकर लड़ती रही राजेश जी से। उनके बारे में तो सोचा ही नहीं?” सुरूचि खोई हुई सी बोली।

“कोई नहीं मम्मा! आप तो जानती हैं, एक दूसरे के बिना, हर पति-पत्नी की लाइफ डिफिकल्ट होती है। आप कह देती हैं, पापा कह नहीं पाते ठीक से। आप तो पापा को जानती हैं कितना ख्याल रकते हैं आपका और मेरा। हम उनकी दुनिया हैं। उन्हें आपकी उतनी ही कद्र है जितनी आपको उनकी।”

घर लौटती सुरूचि को जल्दी से दिन भर से उदास राजेश जी के पास जाकर माफी मांगनी थी और वादा करना था कि अब वो पुरानी बातें उठाकर उनसे कभी नहीं लड़ेंगी। उन्हें भी तो दर्द हुआ होगा…जिसे वो शायद समझ नहीं पाई थी। अब आगे की ज़िन्दगी उनके लिए बाहें पसारे इंतज़ार कर रही थी…

इमेज सोर्स : Still from Tanishq ad, Pehla Heera For Your Daughter In LawYouTube

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