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मुझे लेख, कविता एवं कहानी लिखने और साथ ही पढ़ने का बहुत शौक है । मैं नवोदय विद्यालय समिति, क्षेत्रीय कार्यालय, भोपाल ( केन्द्रीय सरकार के अधीन कार्यरत एक स्वायत्त शासी संस्थान) की पूर्व कर्मचारी रही हूं । कार्यालयीन अवधि में हिन्दी दिवस के अवसर पर हिन्दी पखवाड़ा के तहत आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं जैसे निबंध, भाषण, वाद विवाद एवं कविता पाठ में हिन्दी अधिकारी एवं उपायुक्त महोदय द्वारा पुरस्कृत भी किया जा चुका है । एकता की जान है हिन्दी , भारत देश की अस्मिता है हिन्दी । हिन्दी दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए सभी समूहों पर अपनी लेखनी के माध्यम से अपने विचार प्रस्तुत करने का एक छोटा सा प्रयास कर रही हूं । सेवा में धन्यवाद प्रस्तुति ।
एक बेटे को खा गई। वह काफी नहीं था, जो राजीव के पीछे पड़ गई? मालूम है समाज और बिरादरी वाले तुम दोनों के बारे में क्या-क्या बातें करते हैं?
इतने में अनुपमा कमरे से बाहर आयी और उन दोनों के गले से लिपटकर बहुत जोर से रोने लगी, मानो जैसे बहुत दिनों बाद मन में समाया गुबार निकला हो।
"अनुपमा कितना रो ही रही थी। और तुझे पता है अनुपमा को पति का सानिध्य जरा भी नहीं मिल पाया उसे, क्योंकि उनकी नौकरी ही ऐसी थी।"
रूऑंसे मन से अनुपमा बोली, “ऐसा लग रहा है धंसी जा रही हूँ रिश्ते निभाते-निभाते। इन सामाजिक रिश्तों की बागडोर तोड़ी भी नहीं जा सकती न?
इस संसार में प्यार ही एक ऐसा शस्त्र है, जो अपने प्रेममयी प्रहार से समीप लाता है, जो जि़ंदगी जीने के लिए संजीवनी साबित होता है ।
आदिवासी कला केंद्र भोपाल में बोंड चित्रकार स्व. कलावती श्याम के चित्रों की प्रदर्शनी से साबित होता है कि हुनर की कितनी अहमियत है।
हर पल को सुखद बनाती, हर दर्द को मन में छिपाती। उस कोमल दिल को मैंने मां बनने पर पहचाना, मां की ममता को करीब से जाना। मां बहुत ही याद आए...
जीवन में कभी-कभी हमें अपनों के लिए ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं क्योंकि हम उनके लिए दुनिया में आए हैं। यही सकारात्मक सोच ही तो हमें अपनों के नज़दीक लाती है।
जीवन में आत्मविश्वास होना ज़रूरी है और इसे आसानी से विकसित किया जा सकता है। तो सेल्फ कॉन्फिडेंस बढ़ाने के टिप्स जानने के लिए आगे पढ़ें...
भाषा तो अपने विचारो को प्रकट करने का एक माध्यम है और सभी भाषाएं सीखनी भी चाहिए पर अपनी मातृभाषा का तिरस्कार करके बिल्कुल नहीं।
अपने जीवन को पूरी तरह से जिएं। मिली हुई हर चीज के लिए आभारी रहें और हर अवसर का आनंद लें। फिर देखिये खुशियां ही खुशियां है चारों ओर!
भूमिका मैंने देखी बचपन से ही हर नारी की, स्वयं को समझ जब आई वास्तविक ज़िंदगानी की। हर महिला जीवन करती हैं सिद्ध, पातीं हैं परमसिद्धि।
आज मुझ पर बारिश की वो बूंदें जो टिकी थीं, बालकनी की रेलिंग से ध्यान से निहारा तो, उसमें वो सब पिछला दृश्य आँखों के सामने नाचने लगा।
स्वरा ने अनुराग से कहा, "मैं न कहती थी तुमसे इस तरह से सबके साथ जो आनंद है त्यौहार का वह दुनिया के किसी कोने में नहीं।"
फिर वीडियो कांफ्रेंस समाप्त करते हुए बच्चे बोले मम्मी-पापा! हम सब तन से अलग-अलग होते हुए भी मन से हमेशा साथ-साथ हैं।
जब किसी भी रिश्ते की नींव शुरू से ही मजबूत होगी, तो रिश्ता भी हमेशा ही रहेगा जवां-जवां। हर रिश्ते को प्रेम रूपी माला में पिरोने के लिए आपसी संवाद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
रेवा जी हॉस्टल में रहकर नौकरी कर रही हैं और विशाल जी के साथ भी उनका परिवार यहाँ नहीं रहता तो वे यदि आपस में राज़ी हों तो दोनों को सहारा हो जाएगा।
अरे लड़कपन के प्यार को भी कभी निभाकर तो दिखाओ, केवल एक दूसरे का शारिरीक आकर्षण देखकर ही प्यार न करो और करो तो निभाना भी सीखो मेरे दोस्त...
एक बार फिर साथियों गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अपने मन के उद्गार इस कविता के माध्यम से प्रस्तुत करने की कोशिश की है ...
आखिरकर रघुनाथ और मीना द्वारा लता के साथ की गई भलाई का फल मीठा मिला...
इतने में रमा की पारी आती है, तो पहले बहुत जोर से हंसने लगती है और फिर एकाएक शांत होते हुए गाया... हमें और जीने की चाहत ना होती, अगर तुम ना होते ...
आप ही के दिये मार्गदर्शन पर निभा रही हूं दोनों कुल की भूमिका,आज मन में संजोई यादों को ताज़ा कर दिल से रो रही है आपकी कणिका।
एक कहानी आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ, निधि छोटी सी मासूम की कहानी और उसको और उसकी बहन को संबल देकर सशक्त बनाने में जुटी उसकी माँ।
परिवार और कैरियर दोनों ही में तालमेल बैठाती नारी का कौशल, कामयाबी के कदम चूमे, आर्थिक और मानसिक रूप से बनी आज आत्मनिर्भर...
आजकल ऐसी ही संस्थाएँ इस तरह से नाम रखकर लोगों को गुमराह करते हैं, इसलिये हम सबको सतर्क रहने की बहुत आवश्यकता है।
संदली जैसी कितनी लड़कियां इस आघात से जूझ रहीं होंगी, हमको उनकी आवाज़ को उजागर करना होगा और महिला शोषण के खिलाफ आवाज़ को बुलंद करना होगा।
युवा अक्सर अपने मन मुताबिक फैसला लेते हैं, लेकिन कुछ फ़ैसले ऐसे होते हैं जिनके लिए अपने परिवार वालों के साथ विचार-परामर्श करने में ही समझदारी है।
हर माता-पिता को चाहिए कि वे इस तरह से अपने बच्चों को सकारात्मकता के साथ समझाएँ कि सब अजनबी बुरे नहीं होते, सिर्फ उन्हें सही परखने की जरूरत है।
वर्तमान के दौर में माता-पिता से ये अनुरोध है कि अपने बच्चों को चाहे बेटा हो या बेटी घर या बाहर की सभी अच्छी-बुरी बातों से वाकिफ ज़रूर कराएं।
आज ज़रूरत है कि माता-पिता अपने बच्चों को आवश्यक रूप से समय देते हुए उन्हें प्रारंभ से ही अच्छा-बुरा, सही-गलत इत्यादि के बारे में नैतिक शिक्षा अवश्य दें।
वे लोग कैसे जानेंगे जो इंसानियत के पुतले बनकर, सिसकियों को नाटक कहते हैं, ऐसे लोगों से करती हूं निवेदन, हम हर उस शख्स का करें उत्साहवर्धन!
धूप-छांव के उतार-चढ़ावों को, पार करते हुए आशारूपी दीपक हो, प्रज्वलित तेजमयी प्रकाश की लेकर आस, 2020 का खुशनुमा स्वागत हो खास!
टेंशन फ्री परीक्षा! जी हाँ पाठको, आज मैं आपके और आपके बच्चों के लिए कुछ ऐसे ही सुझाव लेकर एक बार फिर हाज़िर हुई हूँ! तो आइये पढ़ें आगे!
पिताजी ने किरण को समझाया, "ये तो समय का फेरा है। किसी का ऐसे मजाक नहीं उड़ाना चाहिए, क्या पता वक्त कब किस तरफ करवट बदल ले?"
अपने बहु-बेटे या बेटी-दामाद के विवाह होने के बाद ज़िम्मेदारियों और अपेक्षाओं पर खरे उतारने के पूर्व उनको एक दूसरे को समझने का अवसर अवश्य ही प्रदान करें।
ठीक ही कहा शेखर ने नीलिमा से कि यही हमारे समाज की विडंबना है कि दुःख में अपना सहारा खुद ही बनना पड़ता है और जब मुसीबत की घड़ी गुज़र गयी न फिर काहे का गम?
मैं आपको ऐसी कहानी से वाकिफ करा रही हूं जो आपकेे हौसले की उड़ान को और भी बुलंद कर देगी, कहानी सच्ची है, केवल पात्राेें के नाम परिवर्तन कियेे गये हैै।
हमारे मैनेजर ने एक ही बात बोली, 'पति-पत्नी का रिश्ता जन्मों-जन्मों का होता है, जब प्यार दिल से किया है तो यह रिश्ता भी दिल से निभाना दोनों।'
अगर आप सब कुछ छोड़ कर अपने मोबाइल फ़ोन में ही खोए रहते हैं तो आप इसके गुलाम बन गए हैं और इस एडिक्शन से छुटकारा पाने के लिए आपको काउंसलर की ज़रुरत है।
प्रथम पाठशाला में जो प्रारंभिक शिक्षा और संस्कार सिखाए जाते हैं वह हमारे कुशल व्यक्तित्व में समाहित होते हैं और वह ज्ञान कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है।
हम बच्चों की ज़िंदगी की तुलना अपनी ज़िंदगी से कभी नहीं कर सकते और न ही अपेक्षा कर सकते हैं। इस नए परिवेश में जीना आज उनकी आवश्यकता हो गई है।
सखियां सोच रही थी कि शीतल से जब भी हम मिलते है तो ऐसी उदास नहीं रहती, चेहरा भी काला दिख रहा और ऑंखो में लाली छाई है, देखकर लग रहा है मानो कितना रोई हो।
पर जिंदगी में राहें कभी खत्म नहीं हुआ करतीं, हर अंधेरे के बाद एक नई रोशनी अवश्य ही जन्म लेती है, मेरे सपने ने जीवन की प्रकाश रूपी राह चुन ली है।
जब तक आपके साथ रह रहे हैं, हम बहन-भाई को, आपके प्यार एवं स्नेह के ऑंचल तले खुशनुमा माहौल में क्षणिक जीने दो ये प्यार भरे पल
एक सुंदर वीणा जो मन में तान छेड़ती, लगता है दोस्त अपने बारे में बात कर रहे, इसका ही मतलब है, दोस्ती!
मेरी यादों के बसेरे में एक बात अवश्य ही जुड़ गई दोस्तों, ज़िंदगी जीने का नाम है, मुर्दादिल क्या ख़ाक जिया करते हैं।
आज के दौर में ऐसी महिलाएँ भी हैं, जो समाज की भलाई के लिए कुशलतापूर्वक कार्य करने में सक्षम हैं, यह तारीफे काबिल तो है ही, साथ ही आश्चर्यजनक भी।
इस समाज में बांझपन के लिए क्या अकेली औरत ही दोषी है? साथ ही साथ यह भी सोचा जाना चाहिए कि क्या औरत ही औरत की दुश्मन हो सकती है?
गांव ग्वाडिया की महिलाओं के आपसी सहयोग से परिस्थितियों में परिवर्तन लाने की कोशिश यूँ कामयाब रही।
अन्याय सहना भी एक घनघोर अपराध है, जिससे हमें ही बाहर निकलना होगा, प्रकाश रूपी इस शक्ति को हमें ही अपनी पूरी ताकत से, सब जगह जगमगाते हुए फैलाना होगा।
इतनी तन्मयतापूर्वक कार्य करने के बाद भी आप संतुष्ट नहीं हैं। आपको सिर्फ काम से ही मतलब है और घरवालों को पैसा से।
दोनों की समागम भावनाओं से होगी रस बरसात, बुनियादों का कर त्याग हमें करना कुरितियों का हनन, गर तुम निभाओ साथ मेरा सुखद होगा ये नवजीवन
सुबह हुई नहीं कि सबकी फरमाइशें शुरू हो गईं। किसी को चाय तो किसी को स्पेशल कुछ। किसी को न दीपू से मतलब और ना ही रागिनी की नौकरी से।
हे नारी ज़िंदगी की हर प्रताड़ना को अंदर से निकाल, तू बाहर निकल स्वच्छंद बना अपनी पहचान, एक मिसाल कायम कर बन परिवार व देश की ढाल।
हम नवचेतन युग के नवयुवक हैं मां, ये दहेज प्रथा कब तक चलेगी? इस पर अंकुश लगाने के लिए हमें ही कदम बढ़ाना होगा।
ससुराल में पहला दिन'-ये शीर्षक पढ़कर मुझे अहसास हुआ कि ये दिन, किसी भी नई बहु के लिए एक परीक्षा से कम नहीं।
इन सबके पश्चात बाबुल, आएगा ज़िंदगी का तीसरा-अंतिम पड़ाव, अंतिम पड़ाव ना समझ, बढ़ाऊंगी आगे कदम, मिलेगी नई दिशा, क्योंकि यह जीवन ही है, सदैव नारी की परीक्षा
काश कि हर महिला यह समझ पाती कि वह सिर्फ एक देह नहीं बल्कि बुद्धि, बल, विवेक का भंडार भी है। देह समाहित है हम में, हम देह में नहीं।
अपने बच्चों को उनके अरमानों को पूरा करने का एक मौका अवश्य दीजिए, तभी वे आत्म-निर्भर बनकर जिंदगी की परीक्षा में पूर्ण रूप से पास हो सकेंगे।
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