कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

एक ‘नहीं’ की कीमत जान गंवाकर चुकानी पड़ी? क्यों लड़कियों की आज भी कोई मर्जी नहीं है?

संदली जैसी कितनी लड़कियां इस आघात से जूझ रहीं होंगी, हमको उनकी आवाज़ को उजागर करना होगा और महिला शोषण के खिलाफ आवाज़ को बुलंद करना होगा।

संदली जैसी कितनी लड़कियां इस आघात से जूझ रहीं होंगी, हमको उनकी आवाज़ को उजागर करना होगा और महिला शोषण के खिलाफ आवाज़ को बुलंद करना होगा।

“तुम कब तक यूँ अकेली रहोगी?” लोग उससे जब तब यह सवाल कर लेते हैं और वह  मुस्कुरा कर कह देती है, “आप सबके साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूं?”

कुछ तो हुआ है संदली के साथ

उसकी शांत आंखों के पीछे हलचल होनी बन्द हो चुकी है। बहुत बोलने वाली वह लड़की अब सबके बीच चुप रह कर सबको सुनती है जैसे किसी अहम जवाब का इंतजार हो उसे। जानकी ने दुनिया देखी थी, उसकी अनुभवी आंखें समझ रहीं थीं कि कुछ तो हुआ है जिसने इस चंचल गुड़िया को संजीदा कर दिया है, लेकिन क्या?

मैंने उससे बातचीत करने की कोशिश की

“संदली! क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूं?” प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।

“ज़रूर आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है?” मुस्कुराती हुई संदली ने खिसक कर बैंच पर उनके बैठने के लिए जगह बना दी।

“कैसी हो? क्या चल रहा है आजकल?” जानकी ने बात शुरू करते हुए पूछा।

“बस आंटी वही रूटीन, कॉलेज-पढ़ाई”, संदली ने जबाब दिया। “आप सुनाइये…”

“बस बेटा, सब बढ़िया है। आजकल कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं।” चश्मे को नाक पर सही करते हुए जानकी ने कहा।

“अरे वाह! क्या सीख रही है इन दिनों?” संदली ने कृत्रिम उत्साह दिखाते हुए कहा जिसे जानकी समझ कर भी अनदेखा कर गई।

जानकी को मन ही मन ऐसा लगा कि संदली उसकी मसखरी कर रही है, ‘अब इस उम्र में क्‍या सिखेंगी?’ पर उसे क्‍या पता सीखने की कोई उम्र नहीं होती। वो वैसे ही बहुत दुखी लग रही थी बेचारी!

कुछ तो गम है, जो तुम ज़हन में छिपाये बैठी हो

संदली प्रतिदिन बगीचे में घूमने आती और साथ में जानकी भी। अब दोनों में अच्छी-खासी दोस्‍ती हो गई, देखकर लगता मानों आपस में अपने अकेलेपन के एहसास को कम रही हों। ऐसे ही एक दिन बातों-बातों में जानकी ने संदली से कहा, “बेटी मैंने तुम्‍हें जिस दिन पहली बार देखा न! तब से न जाने मुझे ऐसा क्‍यों लग रहा है कि तुम अपनी जिंदगी में खुश नहीं हो! कुछ तो गम है, जो तुम ज़हन में छिपाये बैठी हो। ऊपर से हंसती हो पर मन ही मन दुःखी हो। तुम चाहो तो अपना गम मुझसे साझा कर सकती हो, मन हल्‍का हो जाएगा तुम्‍हारा।”

बातें सुनकर संदली फफक-फफक कर रोने लगी

इस तरह से अपने मन की बातें सुनकर संदली फफक-फफक कर रोने लगी! मानों बरसो बाद किसी सदमे के कारण रूके हुए उसके दर्द भरे अश्रु मोती रूप में छलक रहे हों। फिर आंसुओं को अपने आंचल से पोछते हुए और उसे प्‍यार से सहलाते हुए जानकी ने शांत कराते हुए पानी पिलाया।

फिर कुछ देर रूककर गहरी सांस लेते हुए संदली बोली, “आंटी आपने अनजान होकर भी मेरे दर्द भरे दिल के अहसासों को चेहरा देखते ही कैसे पढ़ लिया? यहां तो मेरे अपनों ने पागल समझकर अनदेखा कर दिया।”

जानकी ने कहा, “मैंने जब से अपने अकेलेपन को दूर करने के लिये लेखन के क्षेत्र में कदम रखा है, तब से लोगों के दिलों के ज़ज्‍बातों को पढ़ने लगी हूँ और अगर कोई अपना सा लगता है, जैसे तुम, तो पूछ लेती हूँ। पति गुजर जाने के बाद अकेली ही हूँ इस दुनियां में और कोई संतान हुई नहीं। वे चाहते थे कि उनके जाने के बाद भी समाज-कल्‍याण करती रहूँ ताकि आत्‍मसंतुष्टि मिले! वही जिंदगी का सबसे अमूल्‍य धन है।”

संदली थोड़ा संभलकर आपबीती बताने लगी

आंटी के सकारात्‍मक अहसासों को सुनकर संदली थोड़ा संभलकर आपबीती बताने लगी, “आंटी, मेरा बचपन से ही अनाथ-आश्रम में ही पालन-पोषण हुआ और मेरी देख-रेख करने वाली वार्डन ने ही मुझे अध्‍ययन के लिये प्रेरित किया, सो कॉलेज तक पढ़ पाई!”

“उन्‍होंने मुझे मॉं का प्‍यार देने की पूरी कोशिश की। मुझे कॉलेज की पढ़ाई  हॉस्‍टल में रहकर ही पूरी करनी पड़ी। उस समय हॉस्‍टल में मेरी पहचान सुषमा नामक लड़की से हुई, जो मेरी रूममेट बनी। धीरे-धीरे हमारी दोस्‍ती प्रगाढ़ होती गई, साथ ही मे रहना, खाना-पीना, सोना, घूमने जाना और पढ़ाई करना इत्‍यादि। कॉलेज की पढ़ाई सफलता-पूर्वक पूर्ण करने के लिए हम दोनों ने कॉलेज के पश्‍चात कोचिंग-क्‍लास शुरू कर ली थी और साथ ही में प्रश्‍नपत्र भी हल करते। सुषमा के माता-पिता थे नहीं इस दुनिया में, उसके चाचा उच्‍च स्‍तरीय पढ़ाई के लिये कॉलेज में दाखिला दिलवाकर हॉस्‍टल छोड़ गए और हम दोनों का एक जैसा स्‍वभाव होने के कारण हमारा दोस्‍ताना हर तरफ छाने लगा।”

“एक दिन हम दोनों मस्‍त गाना गा रहे थे, ‘बने चाहे दुश्‍मन जमाना हमारा, सलामत रहे दोस्‍ताना हमारा‘ और उस दिन कोचिंग-क्‍लास का अवकाश था, पर पता नहीं अचानक सुषमा को किसी राघव ने फोन करके कहा कि कोचिंग में सर ने बुलाया है। मैंने कभी इस राघव का नाम तक नहीं सुना था आंटी और न ही सुषमा ने कभी बताया। काश! बताया होता, तो मैं उसकी कुछ सहायता कर पाती।”

बंदुक की गोली का निशाना बनी!

अगले ही पल आंटी कहकर संदली कुछ पल के लिए ठहर गई!  जानकी ने, थोड़ा पीठ सहलाई और फिर संदली बोली, “जैसे ही सुषमा कोचिंग-क्‍लास के सामने पहुँची आंटी वैसे ही राघव के बंदुक की गोली का निशाना बनी!  मैं फोन पर खबर सुनते ही सिहर सी गई और जैसे-तैसे समीप के प्राईवेट अस्‍पताल में ही तुरंत उपचार हेतु भर्ती कराया, परंतु डॉक्‍टरों की तमाम कोशिशें नाकामयाब रहीं, मेरी सखी की जान बचाने में। इस गहन समय में हमारे साथ कोई भी नहीं था आंटी!”

“शायद पहले से ही योजना थी राघव की, उसको निशाना साधने के लिए सुषमा का सिर ही मिला, गोली इतने अंदर पहुँच चुकी थी कि जिसके कारण उसे बचाया नही जा सका और देखते ही देखते अगले पल मेरी प्‍यारी सखी मुझे अकेला छोड़कर दूसरी दुनिया में चली गई। मुझे बाद में पता चला कि राघव उसे शादी करने के लिये जबरदस्‍ती कर रहा था और सुषमा के नहीं में जवाब देने के कारण यह हरकत की। मेरा दिल दहल जाता है। इस बात का काश मुझे पता होता तो… आज भी मैं उस प्‍यारी सखी को भुला नहीं पाई हूँ।”

क्‍या यह समाज हमारी विवशता का यूँ ही फायदा उठाता रहेगा

“बाद में पता चला कि गुनहगार को सात साल कैद की सजा सुनाई गई और उसके चाचा पूछताछ करने भी नहीं आए। मैं इस सदमे से अभी तक बाहर नहीं निकल पा रही हूँ आंटी! और मैं पूछती हूँ इस समाज से? क्‍या यह समाज हमारी विवशता का यूँ ही फायदा उठाता रहेगा? क्‍या मेरी सखी की जान इतनी सस्‍ती थी कि उसके बदले इस खौफनाक हत्‍या की सजा सिर्फ 10 साल कैद? क्‍या हम लड़कियों की कोई मर्जी नहीं है कि कुछ अपनी मर्जी से कर सकें?”

“एक नहीं जवाब देने की कीमत मेरी सखी को अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ी, क्‍या सही है यह? क्‍यों हमारे देश में कानून व्‍यवस्‍था इतनी कच्‍ची है कि उसकी कीमत निर्भया जैसी या सुषमा जैसी लड़कियों की कुरबानियों के पश्‍चात भी कोई सख्‍त कानून लागू नहीं कर पा रही कि जिससे इस तरह की घटना घटित ही न होने पाए और कोई भी व्‍यक्ति किसी भी तरह का जुर्म न कर पाए।”

संदली की कहानी सुनकर जानकी ने उसे गले लगाया और कहा आज से हम दोनों मिलकर अपना अमूल्‍य योगदान  सामाजिक-सेवा में अवश्‍य देंगे, और अन्‍य लोगों को साथ जोड़ते हुए बड़ा समूह  बनाकर अपनी सकारात्‍मक आवाज अवश्‍य उठाएंगे ताकि हमारी भारत सरकार भी यह पुकार सुनकर सही न्‍याय करने के लिए विवश हो सके ।

आवश्यक टिप्पणी:
(कहानी का प्रारंभिक भाग आ. मेघा राठी जी लेखिका द्वारा दिया गया है, जो पिछले साल स्टोरी मिरर मंच पर आयोजित प्रतियोगिता ”पहला प्यार” में विजेता रह चुकी हैं । 

मूल चित्र : Unsplash 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

59 Posts | 229,836 Views
All Categories