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क्यों कभी मेरा हाथ बटाने की पहल तुम खुद नहीं करते हो? जबकि मैं अब बोझ नहीं हूँ तुम्हाराये तुम भी अब ख़ूब समझते हो...
क्यों कभी मेरा हाथ बटाने की पहल तुम खुद नहीं करते हो? जबकि मैं अब बोझ नहीं हूँ तुम्हारा ये तुम भी अब ख़ूब समझते हो…
तुमने कहा मैं बोझ हूँ, लो मैंने कमाना सीख लिया। कर दिया तुम्हारे बोझ को हल्का मैंने, लो अब तो कमाकर बनाना सीख लिया।
तुमने कहा मैं बोझ हूँ, लो मैंने कमाकर बनाना सीख लिया। अब क्या कमी है मुझमें, जो अपने से कम, मुझे समझते हो? हक़दार हूँ जिस सम्मान की, फिर क्यों देने से पीछे हटते हो?
ऑफ़िस घर दोनों में पिसती, फिर भी ना जाने क्यों सिर्फ़ तुम ही ‘थकते हो’ ऑफ़िस से घर आकर खाना बनाने की आशा, आज भी तुम ‘सिर्फ़ मुझसे ही रखते हो’ क्यों कभी मेरा हाथ बटाने की पहल तुम खुद नहीं करते हो?
जबकि मैं अब बोझ नहीं हूँ तुम्हारा, ये तुम भी अब ख़ूब समझते हो। फिर क्यों मेरा साथ देने से हर बार पीछे हटते हो? कहीं मेरी ज़िम्मेदारियों को बाँटने में तुम अपना अपमान तो नहीं समझते हो?
तुमने कहा मैं बोझ हूँ, लो अब तो कमाना सीख लिया मैंने। तुम्हारी हर ज़िम्मेदारी को बाँटना सीख लिया मैंने, तुम जो करते थे उससे कहीं ज़्यादा करना सीख लिया मैंने।
क्या मेरी इस ताक़त से तुम अब डरते हो? जो किया था शासन तुमने युगों युगों तक, क्या आज उसको खो देने से सिहरते हो? क्या इसलिए आज भी बिन बात तंज कसने से पीछे नहीं हटते हो?
तुमने कहा था कि मैं बोझ हूँ, लो अब तो कमाना सीख लिया मैंने। अब तो कमाकर खाना सीख लिया मैंने, अब तो आगे हूँ मैं तुमसे, फिर क्यों वो सम्मान वो प्यार जिसकी हक़दार हूँ देने से तुम पीछे हटते हो?
तुमने कहा था मैं बोझ हूँ, लो कमाना सीख लिया मैंने।
मूल चित्र : Screenshot from Short Film Juice, YouTube
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