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जो बेफ़िक्री के पंख लगाए यहाँ वहाँ उड़ती फिरती थी,अब बच्चे के साथ हर पल घर में बंद हो जाती है।एक अल्हड़ सी लड़की जब माँ बन जाती है।
जो बेफ़िक्री के पंख लगाए यहाँ वहाँ उड़ती फिरती थी, अब बच्चे के साथ हर पल घर में बंद हो जाती है। एक अल्हड़ सी लड़की जब माँ बन जाती है।
एक अल्हड़ सी लड़की जब माँ बन जाती है,
मानो अपनी शरारतों को तहख़ाने के बक्से में बंद कर आती है।
जो रात भर सोकर भी सुबह माँ के उठाने पर नख़रे फ़रमाती थी,
आज वो रात भर जागकर भी घर में सबसे पहले उठ जाती है।
एक अल्हड़ सी लड़की जब माँ बन जाती है।
जो बेफ़िक्री के पंख लगाए यहाँ वहाँ उड़ती फिरती थी,
अब बच्चे के साथ हर पल घर में बंद हो जाती है।
रसोई में जो तीज त्योहार में कदम रखा करती थी,
वो अब हर पल रसोई में ही नज़र आती है।
जो दिखाती थी नख़रे हज़ार खाने पर,
आज वो कुछ भी खाकर काम चला जाती है।
जब एक अल्हड़ सी लड़की माँ बन जाती है।
ज़रा सी तकलीफ़ में जो हफ़्ते भर आराम फ़रमाती थी,
आज चढ़े बुख़ार में भी सबके लिए खाना पकाती है।
मूल चित्र: Filtercopy via Youtube
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