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A researcher, an advocate of equal rights, homemaker, a mother, blogger and an avid reader. I write to acknowledge my feelings. I am enjoying these roles.
मैंने बालों को समेट कर रखना शुरू कर दिया। खुली चोटी भी गुथ गई। अकेले में खुद को देख कर इतराती पर दुनिया के सामने हिम्मत नहीं होती।
तुम्हारे साथ भी ऐसी कई घटनाएं होंगी। अगर शर्मिंदगी महसूस हो, झिटक देना। कभी कैंटीन में दोस्तों संग चाय/खाना गिर जाए, रंजिश तज देना।
घरेलु हिंसा, मानसिक शोषण और एक ख़राब शादी, कोई भी चीज़ उन्हें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए किसी भी तीज त्यौहार पर व्रत करने से नहीं रोकती।
माँ, आईने के सामने, आज बाल बनाते, तेरी झलक, कुछ उतर आई थी, जवाब सरल था, मेरी हर बातों का, कि बच्चे आ जाते हैं, पहले! बस इतना ही, कह जाती थी!
काले आकाश में चाँदी की भाँति चमकते हुए सितारे और उसपर चाँद का चमचमाता हुआ चेहरा कितना मनभावन लगता है। यह अतिश्योक्तिपूर्ण वातावरण मन को हर लेता है।
मोहब्बत के वादे, सतरंगी ख्वाब और अधिकार की हकीकत, मेरा तिरस्कार, तुम्हारा परिवार, तुम्हारा समाज, तुम्हारी बातें, तुम, तुम बस तुम।
पैसे की चाह और एक गाड़ी आलीशान, इतने की ख्वाहिश की दंभ में चूर, उछाल कर पगड़ी धमकी स्वरूप 'दो या रहने दो' के भेड़ियों पर आज है समाज शर्मसार!
"नाज़-नज़र और रक्षा-कवच, तेरी तरह बस बन जाती माँ" - एक बेटी द्वारा अपनी माँ को समर्पित, जिसकी समता वह ख़ुद माँ बनने के बाद ही समझ पाई।
"जब सीख लिया तेरी सीख सेतू उड़ चला पंख तना पसार, झांका तो होता एक बार ही अरमानों की उठी थी बयार"- समय बड़ा बलवान है परंतु किसी के लिए नही रुकता।
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