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तुम्हारे साथ भी ऐसी कई घटनाएं होंगी। अगर शर्मिंदगी महसूस हो, झिटक देना। कभी कैंटीन में दोस्तों संग चाय/खाना गिर जाए, रंजिश तज देना।
बहुत शिद्दत से एक बेटी मांगी थी। और तुम आ गईं। और देखते-देखते तुम कालेज की बड़ी समझदार छात्रा बन गईं। इन दो-तीन महीनों में तुम्हारी बातें (बक-बक) मुझे मेरे कालेज की याद दिलाती है।
सालों पहले मैं भी तुम्हारी तरह थोड़ी झिझक, डर, अविश्वास को एक आत्मविश्वासी चेहरे के पीछे छिपाए होस्टल पहुंची थीं। फिट-इन करने की जद्दोजहद में, कमज़ोरी को छुपाने के भरसक प्रयास में। पर जो अंदर डर बन धंसा रहता है, वह कभी न कभी धप्पा कर ही देता है और फिर शर्मिंदगी। ओह, कितने नादान होते थे रिज्न्स।
फिसल के क्लास के सामने गिरे, ‘खराब लग गया’। क्लास से गेट आउट, ‘सब क्या सोचते होंगे?’ कम मार्क्स, ‘मम्मी-पापा नाराज़ तो नहीं होंगे?’ वो तो मेरी दोस्त हैं, ‘उससे क्यों ज्यादा बात कर रही है?’ एक्जाम है, ‘कैंटीन नहीं जाना!’ वो लड़का/की कितना ज्यादा ‘शो-आफ़’ है!
और फिर जैसे-जैसे हम क्लासमेट्स से दोस्त बनते हैं, पता चलता हम सब कितने इम्पर्फेक्ट हैं। सब अपने-अपने हिस्से की लड़ाई लड़ रहे होते हैं। खुद से, समाज से, परिवार से। और एक-दूसरे को अजीबोगरीब कारण से पसंद भी करते हैं। काश मैं भी उस जैसी/जैसा पतली, लंबी , गोरी, बिंदास, पढ़ाकू, डांसर, गायिका, गिटारिस्ट…फलाना ढ़िमकाना होती/होता। मुझे तो कई लोग उनके बोलने के अंदाज से पसंद थे, आज समझ आता है क्यों।
और कहानी, किस्से, यादें जुड़ते जाते हैं, इन द बैक ऑफ योर मांइड। दोस्तों का एक किस्सा है। दो लड़के, एक लड़की। एथनिक डे था। वही, साड़ी-कुर्ता का दिन। तो ये तीनों बैंक के सामने खड़े हो बात कर रहे थे। तभी एक ने कहा, “पजामा की डोरी दिख रही।” और उस लड़की ने अपना नाड़ा चेक किया। वो तो साड़ी में थी, नाड़ा तो उस तीसरे दोस्त का दिख रहा था। और हंसने लगे वो दोनों। तब इस बात पर युद्ध हुआ था शायद। आज उन तीनों को याद कर हंसी आती है।
तुम्हारे साथ भी ऐसी कई घटनाएं होंगी। अगर शर्मिंदगी महसूस हो, झिटक देना। कभी कैंटीन में दोस्तों संग चाय/खाना गिर जाए, रंजिश तज देना। नोट्स इक्सचेंज न हो पाए तो दोस्ती पर कौमा न लगाना। लड़ाई-झगड़ा से ज्यादा दिन तक मन खट्टा मत करना। मन-मुटाव दोस्ती के बीच आएगी, पर दूर करने के प्रयास मत छोड़ना। और जो चेप/चापलूस/धूर्त टाईप हो, उससे बचने की कोशिश करना।
और ऐसा नहीं है, यह सब कुछ महीनों में बुद्धि में समा जाएगा। मैंने तो साल लिये थे। तुम भी वक्त लो, खुद को भी दो। अपने उपर ज्यादा रुष्ठ न हो, तनाव से निकलना सीखो। लक्ष्य साध लो और चलो। मुस्कुराओ, हंसो और खुले मन/दिल से जो अलग लगे उसे समझो। ठीक लगे तो ज़रूर अपनाओ।
एण्ड टेक ए चिल-पील। इस नई राह की बहुत बधाई। जब भी हमारी (मैं और पूरा परिवार) ज़रूरत हो तो हम यहीं हैं। तुम्हारे पास, तुम्हारे साथ।
: XiPhotos from Getty Images Signature, Canva Pro
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