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काले आकाश में चाँदी की भाँति चमकते हुए सितारे और उसपर चाँद का चमचमाता हुआ चेहरा कितना मनभावन लगता है। यह अतिश्योक्तिपूर्ण वातावरण मन को हर लेता है।
सितारों के आंगन में, चांद बेचैन था। बादलों को चीर के चांदनी के ओट से दबे पांव, छिप-छिपा कर आज, धरती से दिल खोल कर अपने दिल की बात जो कहनी थी।
ब्रह्माण्ड में कुछ दूरी पर अपलक निहारती, तारीखें मिटाती बस, एक मुलाक़ात की आस लगाए चांदनी को ओढ़ कर धरती भी व्याकुल घूम रही थी।
आज दूरी कम थी, चांद और चमकीला था धरती लहलहा रही थी। मतवाली हवाएं बादलों को दूर उड़ाएं लिए जा रही थी।
मौसम का बदला रुख़, बूंदों की फुसफुसाहट मीलों की दूरी संदेश वाहक की गर्म जोशी, सूरज से छुप न सकी।
भौंहें उसकी तन गई तेज उसका तेजस्वी हुआ। रफ्तार रोशनी हुई, पहरेदार सूर्य प्रबल हुआ।
आंखों में अंगार भर ओझल कर उसके पृष्ठ को प्रहरी बन खड़ा रहा। अंधेरा घना छा गया, चांदनी निहित हुई। चांद को ग्रहण लगा, धरती भी कुम्हला गई।
अनंत काल तक निरंतर क्षितिज की ओर टकटकी लगाए, पृथ्वी और चंद्रमा मिलन के एक लम्हे को जलधर की लहरों से मिन्नतें करते हैं।
उम्मीद से, अभाव में प्रेम है, प्रबल हैं।
मूल चित्र : Pexels
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