कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

Mamta Pandit

मेरा नाम ममता है और अपनी सभी सामाजिक जिम्मेदारियां, पढ़ाई, नौकरी,शादी और बच्चे पूरी करने के बाद में खुद की तरफ लौटी हूँ। बहुत देर से सही मुझे ये एहसास हुआ की सबसे पहले मेरी स्वयं के प्रति भी कुछ जिम्मेदारी है और इसी जिम्मेदारी को निभाते हुए में पुनः लौटी हूँ अपने पहले प्यार लेखन की तरफ, और और इस दुनिया में लौटकर जो सुकून मिला वो शब्दों से परे है। अच्छा हिंदी साहित्य पढ़ते और लिखते रहना चाहती हूँ और ये भी चाहती हूँ कि हर औरत समझे स्वयं के प्रति अपनी जिम्मेदारी और जीवन के चाहे किसी मोड़ पर ही सही,कुछ पल को ही सही वो लौटे वहां जहाँ उसकी आत्मा बसती हो, जहां उसे सुकून मिलता हो। यकीन मानो जो नज़र आती हूँ , सब धोखा है ये जो शब्दों में बिखरा हुआ है यही मेरा वजूद है ममता पंडित

Voice of Mamta Pandit

प्रकृति को सहेजना है आने वाली पीढ़ियों के लिए…।

अपनी जड़ों की तरफ लौटने का वक़्त आ गया है। अब और देर नहीं कर सकते। इस सुंदर प्रकृति को सहेजना है अपने लिए व अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए।

टिप्पणी देखें ( 0 )
क्या बड़े महलों में बंद रहेगी असली महारानी?

बड़े बड़े इन महलों में बंद, बुलबुलें झटपटाती हैं, क्या किसी के लिए लड़ेंगी, आपबीति नहीं कह पाती हैं, आपबीति नहीं कह पाती हैं...

टिप्पणी देखें ( 0 )
कल की पीछे छोड़ मैं आज कुछ करना चाहती हूँ…

नहीं थूक पाई, भीड़ भरी बस में उस आदमी पर, जिसके हाथ लगातार उसके आगे खड़ी औरत के जिस्म को छू रहे थे, तब बोलना चाहिए था, कुछ करना चाहिये था...

टिप्पणी देखें ( 0 )
ये कर्तव्य की चाबियाँ हैं या एक कैद…

रसोई से शयनकक्ष तक, घुमाती रही, कर्तव्यों की चाबियां। लगाती रही ताले अपने आदतों, अरमानों पर, प्रगति के पायदानों पर...

टिप्पणी देखें ( 0 )
नहीं मिलता जब तक इंसाफ, कोई चूल्हा नहीं जलेगा…

वहशी खुले घूम रहे, जब यूं गली गली, हमारे सम्मान की चिता, यहां हर रोज़ जली। कह दो जब तक, नहीं मिलता इंसाफ, कोई चूल्हा नहीं जलेगा।

टिप्पणी देखें ( 0 )
क्लीन स्लेट फ़िल्मज़ की फ़िल्म बुलबुल कई महत्वपूर्ण सवाल उठाती है …

क्लीन स्लेट फ़िल्मज़ की फ़िल्म बुलबुल एक डरावनी फ़िल्म है, बिल्कुल, लेकिन उस से भी अधिक भयावह है समाज का घिनौना सच आज भी दिखता है। 

टिप्पणी देखें ( 1 )
वसुधैव कुटुम्बकम्

वसुधैव कुटुम्बकम् यह शब्द कितना मज़बूत लगता है, वास्तव में मनुष्य ने उसको अधिक कमज़ोर बना दिया है, जिसका अंत दुखदायी हो सकता है। 

टिप्पणी देखें ( 0 )
समाज का सच बिना किसी फ़िल्टर के दिखाती है सीरीज़ पाताल लोक

सीरीज़ पाताल लोक के तीन लोकों की महिलाओं की अलग परिस्थियां और संघर्ष हैं, फिर भी ये महिलाएं अपनी शर्तों पर जीवन जीती हैं, बिना किसी ग्लानि के।

टिप्पणी देखें ( 0 )
एक गलती ने, एक डर ने उसके किसी प्यारे की जान ले ली …

एक डर ने उसके दादू को छीन लिया और वह यही सोच रही थी अगर वो डॉक्टर बन भी गयी तब भी डर नामक बीमारी का इलाज कैसे ढूंढ पाएगी? 

टिप्पणी देखें ( 0 )
घर पर हैं तो आप खुशनसीब हैं क्यूंकि आप अपनों के करीब हैं…

ऊपर वाले का शुक्रिया अदा कीजिये कि इस मुश्किल समय में आप अपनों के करीब हैं। लेख को पढ़कर आप भी मानेंगे कि हम घर पर हैं और खुशनसीब हैं ।

टिप्पणी देखें ( 0 )
चक्रव्यूह : तुम अभिमन्यु नहीं अर्जुन हो इस महाभारत की

औरत का पूरा जीवन एक युद्ध ही है, और इसमें रचा है एक चक्रव्यूह, जिसमें धकेलते तो उसे सब हैं, लेकिन बाहर निकलने का रास्ता उसे कोई नहीं बताता। 

टिप्पणी देखें ( 0 )
विराली मोदी : इच्छाशक्ति से जीवन की लड़ाई जीत कर अपनी दुनिया बदल डाली

विराली मोदी कहती हैं कि जीवन की हर लड़ाई आपको अकेले लड़नी होती है, आपको बैसाखी की तरह आसपास सहारे मिल जाते हैं लेकिन फिर भी चलना आपको ही है। 

टिप्पणी देखें ( 0 )
फ़िल्म थप्पड़ ने मुझसे कहा, “अब अपने रंग में ढल जाओ!”

हम में से ज़्यादातर महिलाएं अपनी ही ज़िंदगी किसी और की पसंद के हिसाब से जीना शुरु कर देते हैं और हम उसमें सहजता महसूस करते हैं।

टिप्पणी देखें ( 0 )
ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा दस साल बाद भी मेरी फेवरेट फिल्म है…

दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेकर चल रहे हो तो ज़िंदा हो तुम! बीते दशक की सबसे बेहतरीन और यादगार फिल्मों में से एक ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा...

टिप्पणी देखें ( 0 )
खनक – एक नई जगती उम्मीद!

"कितने नादान हो कि जानते भी नहीं कि लांघ कर तुम्हारी सारी लक्ष्मण रेखाओं को...ध्वस्त कर तुम्हारे अहं की लंका, कब से घुल चुका है वो उल्लास इन हवाओं में..."

टिप्पणी देखें ( 0 )
सुनो मैं भारत की बेटी बोल रही हूँ क्यूंकि अब तो मेरा ज़माना है…

किसी राजनीतिक विषय पर जब औरतें बात करती हैं तो यही कहा जाता है, "तुम्हें क्या? तुम अपना घर-बार सँभालो और अपने काम से काम रखो।"

टिप्पणी देखें ( 0 )
कर्म को धर्म मानने वाली, हमारी संस्कृति में कई सवालों के लिए जगह नहीं होनी चाहिए

जब आप किसी अस्पताल पहुँचते हो तो क्या धर्म देखकर डॉक्टर चुनते हो? उस पल बस आप यही चाहते हो कि डॉक्टर कोई भी हो, बस इलाज ठीक हो जाये।

टिप्पणी देखें ( 0 )
क्यूंकि डर के आगे वो हैं-उनके इस जज़्बे को मेरा सलाम

ये कौम अलग ही मिट्टी की बनी हुई है, इसलिए डर के आगे है, साहस, सहनशीलता, गर्व और आत्मविश्वास के साथ इस डर से लड़ता हुआ इनका व्यक्तित्व।

टिप्पणी देखें ( 2 )
सुनो-टूटी गुड़िया की पुकार

रोज़ कहीं से एक टूटी गुड़िया चिल्लाती है, मेरे गुनहगार को फाँसी क्यों नहीं दी जाती है? क्या उत्तर देंगे हम इन मासूमों के सवालों का?

टिप्पणी देखें ( 0 )

The Magic Mindset : How to Find Your Happy Place

अपना ईमेल पता दर्ज करें - हर हफ्ते हम आपको दिलचस्प लेख भेजेंगे!

Women In Corporate Allies 2020

All Categories