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दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेकर चल रहे हो तो ज़िंदा हो तुम…बीते दशक की सबसे बेहतरीन, सफल और यादगार फिल्मों में से एक है ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’।
दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेकर चल रहे हो तो ज़िंदा हो तुम.. नज़र में ख़्वाबों की बिजलियाँ लेकर चल रहे हो तो ज़िंदा हो तुम..
ये पंक्तियाँ पढ़कर आपके ज़ेहन में फरहान अख़्तर की तस्वीर उभर आई होगी और अगर मेरी तरह आपने भी ये फिल्म तीन-चार बार देखी है, तो हो सकता है आपको उनकी ख़राश भरी आवाज़ भी सुनाई दे।
फिल्म याद नहीं आ रही है तो आपकी जानकारी के लिए बता दूं, फिल्म है 2011 में आई ज़ोया अख़्तर द्वारा निर्देशित फिल्म ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’। बीते दशक की सबसे बेहतरीन, सफल और यादगार फिल्मों में से एक है ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’। यह एक ऐसी फ़िल्म है जो तीन दोस्तों के जिंदगी के ताने बाने के बहाने हमें जीवन जीने का तरीका सिखाती है।
कबीर (अभय देओल) की शादी होने वाली है और वह शादी से पहले अपने दो दोस्त इमरान (फरहान अख़्तर) और अर्जुन (ऋतिक रोशन) के साथ एक यात्रा पर जाना चाहता है। इस यात्रा पर हर दोस्त एक ऐसा खेल चुनता है जिसके बारे में बाकी दोनों दोस्तों को नहीं पता है और इस यात्रा में हुए करार के अनुसार उन्हें ये खेल या एडवेंचर करना ही है, वे मुँह नहीं फेर सकते।
प्रतीकों के माध्यम से फ़िल्म हमारे दिलों में छिपे हुए डर के बारे में बात करती है। क्या यह सच नहीं है की हम में से बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें फ़िल्म के किरदारों की तरह ऊंचाई, गहराई या कुछ और है जिससे डर लगता है। लेकिन हम हमारे भीतर के इस डर का सामना नहीं करना चाहते।
सुनने में अजीब लगता है लेकिन ये सच है कि हम ‘डर से डरते हैं’। उस डर को अपने ज़ेहन में पालते पोसते रहते हैं और वो कब विकराल रूप धारण कर लेता है हमें पता ही नही चलता। असलियत ये है हमें कोई धक्का देने वाला चाहिए, गहरे पानी में या फिर हर उस चीज़ की ओर जिससे हम भयभीत हैं।
जैसा कि आप फ़िल्म में देखते हैं कि बस एक क्षण लगता है उस रेखा को पार करने में जो वास्तव हमारे भय की काल्पनिक देन हैं । गहरे पानी से डरने वाला अर्जुन कुछ ही पलों बाद समुंदर में गोते लगा रहा होता है। वह इस गहराई को पाकर खुश है और उतना ही खुश है इमरान भी हजारों फुट की ऊंचाई पर, जो कभी ऊंची इमारतों से नीचे झांकते हुए भी डरता था।
अपने अंतिम भाग में फ़िल्म बात करती है हमारे सबसे बड़े डर यानी इस जिंदगी को खोने के डर की। किसी ने लिखा है कि ‘ज़िंदगी मौत की तरफ बढ़ते हुए सफर का नाम है’। हम सब इस अटल सत्य से वाकिफ़ हैं, फिर भी हम इसका सामना नहीं करना चाहते।
हमारी सारी तकनीकों का एक छिपा हुआ लक्ष्य है किसी तरह किस तरह हमारी औसत आयु कुछ वर्ष और बढ़ जाये। इतनी बार बताए जाने के बावजूद भी हम ज़िंदगी में पल जोड़ने की कोशिश में रहते हैं पलों में ज़िंदगी नहीं।
क्या हममें से कोई तैयार हो सकता हैं एक ऐसी दौड़ के लिए जिसमें बेलगाम खूंखार सांड आपके पीछे छोड़ दिए जाएंगे। आपको येन-केन-प्रकारेण बस अपनी जान बचानी है। सोच कर भी मुश्किल लगता है, मौत आपके पीछे भाग रही है और चुनौती है ज़िंदगी चुनने की।
इस फ़िल्म में यही कुछ पलों की ज़िंदगी और मौत की जंग उसके किरदारों के आने वाले जीवन की कहानी बदल देती है।
कबीर अपनी सगाई और मंगेतर का दिल तोड़ कर अपने लिए वो ज़िंदगी चुनता है जो वो चाहता है न कि वो जो उस पर थोपी जा रही थी। इमरान अपनी डायरी में लिखी कविताओं की किताब छपवाने को तैयार है। अब उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि लोग क्या कहेंगे और अर्जुन जो पैसे कमाने की दौड़ मैं अपने प्यार को कहीं छोड़ आया था फिर उसकी तरफ लौटता है।
सार यही है कि किसी भी डर, धारणा या कुंठा की बेड़ियां जो हमें इस जीवन रूपी उत्सव को मनाने से रोकती उन्हें हमें काटना है। हमें वो ज़िंदगी चुननी है, छीननी है और फिर जीनी है जो हम चाहते हैं। हमें ये समझना है आखिरी मंज़िल की ओर बढ़ता हमारा ये सफर इतना शानदार होना चाहिए की जब मौत भी हमें लेने आये तो वो खुद हमारी ज़िंदादिली पर शर्मिंदा हो। फ़िल्म की कहानी में और भी कईं पहलू हैं, किंतु सबका मिलाजुला सार यही है कि ये जिंदगी एक बार मिली है…इस खुल के और जी भर के जियो।
जब भी आप स्वयं को निराशा या असंमजस के क्षणों में घिरा पाएं एक बार यह फ़िल्म अवश्य देखें मुझे यकीन है आपको सही उत्तर, उम्मीद और जीवन को एक उत्सव की तरह जीने का हौसला मिलेगा।
हवा के झोकों के जैसे आज़ाद रहना सीखो तुम एक दरिया के जैसे लहरों में बहना सीखो.. हर एक लम्हे से तुम मिलो खोले अपनी बाहें हर एक पल एक नया समां देखे ये निगाहें.. जो अपनी दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेकर चल रहे हो तो ज़िंदा हो तुम….
नोट : फ़िल्म के कुछ चुनिंदा अंश YouTube पर व पूरी फ़िल्म AmazonPrimeVideo पर उपलब्ध हैं।
मूल चित्र : YouTube
एक शख़्स
इस बार जो बच पाओ तो हर हाल में ज़िंदा रहना
यादों का पिटारा
ज़िंदा है तू !
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