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कम्युनिटी प्रस्तुत
बुढ़ापे में बहु ही साथ देगी

"हाँ! मीनल तू सही कह रही है पर हमने भी तो अपने जमाने में बहुत काम किए हैं । आजकल की लड़कियां तो कुछ करना ही नहीं चाहती हैं । "

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एक दिन ज़िन्दगी का

चलो, उन बंद पड़ी यादों को आज थोड़ा आज़ाद किया। शुक्रिया! उनका जिन्होंने साथ दिया, जो न चल सके साथ उनको हमने बहुत और कई बार याद किया।

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मासिक पीरियड में पेड टाइम-ऑफ पॉलिसी

महीने के उन दिनों के मुश्किल पड़ाव में घर और काम को एक समान समय देना पूरे  जोश के साथ वह भी इतने दर्द में बहुत बड़ी बात होती है।

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किस्मत और तुम

कैफ़ियत इश्क़ की वह ऐसी थी धड़कनों को मिल गई जुबां जैसी थी ,लबों पर हल्की सी हंसी और चिलमन से झांकती आंखें हमारी बयां कर रही थी...

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वो हंसते मुस्कुराते दोस्त, ना जाने तुम कहाँ खो गए!

जब घर लौटती हूँ और पुरानी एल्बम खंगालती हूँ, साथ बिताए एक-एक पल मन में फिर से जीती हूँ... वो मिल कर टिफ़िन खाना मुझे सब याद आता है!

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कागज़ की कश्ती की कैसी होती है हस्ती?

बहती हुई किस्मत को बना अपनी संगिनी, कागज़ की कश्ती की क्या होती है हस्ती? जुदाई भूल कर अपनी यह कागज़ की कश्ती बनती है बचपन की सखी सच्ची

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