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कम्युनिटी प्रस्तुत
तेरे आने से…

तेरे ना आने से कुछ भी नहीं बदला बस रातें करवटों में गुज़री दिल को दिलासा देते,रात भी आई थी तारों भरी चादर के साथ पर....

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कंफर्ट जोन से निकलेंगे तभी तो कुछ सीखेंगे

जीवन के लिए एक सीख भी मिली कि ज़रा से अनकंफर्ट के सामने घुटने टेक कर उस संतुष्टि की अनुभूति से वंचित नहीं रहना है।

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ओस की बूंदें

यादें मेरी कभी ओस की बूंदों सी,तारों पर मोती बन सताएंगी तुम्हें।कभी घास पर ही मसल दी जाएंगी,मिटकर भी मज़ा दे जाएंगी तुम्हें।

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कुछ लम्हों में ज़िन्दगी!

इस ज़िन्दगी से गिले कम हो जाते हैं, ख्वाबों से दोस्ती हो जाती है। उन लम्हों में खुद को पा जाते हैं और कमी कम हो जाती है।

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ना कोमल थी, ना कमज़ोर हूं!

सच है दूसरों से अपेक्षाएं रखते रखते हम खुद की उपेक्षा करने लगते हैं और परजीवी से बन जाते हैं, तो अपेक्षाएं रखनी ही है तो खुद से ही क्यों नहीं? जो पूरी हो तो सुखद ना पूरी हो तो सबक।

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क्या होते हैं दिव्यांग महिला खिलाड़ियों के संघर्ष?

फिर खेलकूद जैसे गैर ज़रूरी चीजों से जुड़ने के लिए ज़्यादातर भारतीय औरतों को किसी भी ओर से कोई प्रोत्साहन और सुविधा आसानी से नहीं मिलती है ।

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