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ज़िंदगी
रेशम की डोर – क्या एक औरत को अपनी ज़िंदगी के फ़ैसले लेने का कोई हक़ नहीं?

माला सफ़ेद के अलावा दूसरे रंग भी पहनना चाहती, कभी कभी उसका मन छोटी सी बिंदी लगाने को करता, परन्तु समाज की बेड़ियाँ को तोड़ना मुश्किल लगता था।

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यदि पैसा सब कुछ नहीं है तो इसके कारण करीबी रिश्तों में दूरियां क्यों?

माँ आप ही बताओ मुझे कुछ चाहिए तो मैं किसके पास आऊँगा? आपके पास ना? तो आपको कुछ चाहिए तो आप अपनी मम्मी से ही मांगोगे ना?

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ज़िंदगी इक सफर है सुहाना यहां कल क्या हो किसने जाना…ओड्लई ओड्लई ओहू…

जब तक जीवन है तब तक कोई ना कोई मुश्किलें आती रहेंगी। इन्ही में से कुछ लम्हे चुरा के मुस्करा लो, ज़िंदगी कबूल करो और अपना लो। एक बार मुस्कुरा दो यार!

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उफ़्फ़! जब अपने ही लिए गए निर्णय खुद पे भारी पड़ने लगें…

अब गौरी को लगने लगा कि अब तुषार, माला का ध्यान रख रहा है तो कहीं उससे दूर तो नहीं चला जायेगा। तुषार समझाता कि इस समय माला और बच्चे को उसकी ज़्यादा ज़रुरत है। 

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कभी हौसला नहीं हारने वाली बुलंद, अपने ही जैसी एक मिसाल बन तू

एक स्त्री के अपने सपनों को पूरा करने, अपनी शर्तों पर जीवन जीने और अपनी मुश्किल बीमारी और हालात से जूझकर भी हार ना मानने की कहानी। 

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माँ-बाप बनने के लिए सिर्फ अपना बच्चा ही क्यों, बच्चा गोद लेना भी तो एक विकल्प है!

छवि और अनंत की शादी को पांच साल हो गए थे, पर वो माँ नहीं बन पा रही थी और जब डॉक्टर ने दोनों की जांच कराई तो पता चला कि अनंत कभी पिता नहीं बन सकता।

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