कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
कहते हैं सब खुशमिजाज बुराई को करती नजर अंदाज सादा जीवन उच्च विचार सकारात्मकता जीवन का सार नकारात्मकता से रहती दूर अपनों का प्यार पाती भरपूर दोस्तो को समझती अपना नाम है मेरा अंशु शर्मा
बच्चों की ज़िद पूरी करते-करते, हम उन्हें बिगाड़ देते हैं! और यह बात! हमें जब समय बीत जाता है, तब समझ में आती है कि लाड़-प्यार एक हद में ही करना चाहिए!
घर के दोनों बच्चे अपने मां, पापा के प्यारे होते हैं, पर करीब वह हो जाता है जो उनका ध्यान रखता है, उनकी सुनता है, उनके सुख दुःख में साथ देता है।
कई बार दौड़ती भागती ज़िंदगी में हम अपनों के एहसासों को कहीं पीछे छोड़ आते हैं, जब वह वक़्त पीछे छूट जाता है, तो हमें निराशा के अलावा कुछ हाथ नहीं लगता।
गुस्से मे अनुज चला गया सभी को लेकर, वहाँ पता चला सभी का कोरोना टेस्ट पोजिटिव आया, स्वास्थ्य विभाग को जानकारी पहुँचा दी गयी, हास्पिटल से।
फैशन ही खत्म नहीं होते तुम्हारे! कोई पिक्चर-विक्चर नहीं जाओगे तुम, आज बहुत काम है। कोफ्ते बनाने को बोल रहे हैं तुम्हारे पापा और वो तो आज बनेंगे ही।
आपकी नजर में पत्नी की, पत्नी की परिवार का ध्यान रखना जोरू का गुलाम हो गया? और पत्नी जो पति और उसके परिवार वालों के लिए करती है, वो फर्ज!
मनुष्य जीवन में कभी किसी का दोस्त बन जाता है और कभी दुश्मन, मगर प्यार के अटूट बंधन और आलिंगन जो प्रेम से किया गया हो, मन में पड़ी सारी गाँठे खोल देता है।
शादी से पहले मैं वैभव लक्ष्मी के व्रत रखा करती थी और आस्था इतनी हो गई थी कि कल्पना शक्ति में भी एक बूढ़ी औरत लाठी के साथ दिखाई देती थी।
"कल से मेरा आफिस है, तो समय कम होगा। घर के काम में ज्यादा हाथ नहीं बटा सकती हूँ। इसिलिए एक खाना बनाने वाली को बुलाया है।"
मेरा तीन साल का बेटा साहिल खो गया है, अब तक मिल नहीं रहा। एक महीने पहले काम वाली उसको पार्क में घुमाने ले गयी थी, और साहिल कहीं चला गया।
सही ही कहा है कि प्यार और सही समय पर थोड़ा सा झुकना, सब बदल देता है। जहां गुस्सा बातें खराब करता है, वहीं दूसरी ओर प्यार सब मनवा भी लेता है।
आपने सुना तो होगा कि एक और एक ग्यारह होते हैं, जब खुद से काम न बने, तो किसी और के सहयोग से आगे बढ़ा जा सकता है, बस यही प्रस्तुत करती है ये ख़ूबसूरत कहानी।
ना कोई लड़की अपने घर को पराया मान सकती है और ना उसके माँ-पिता अपनी बेटी को दूसरा समझ सकते हैं, वो उनके कलेजे का टुकड़ा थी और रहेगी।
अब गौरी को लगने लगा कि अब तुषार, माला का ध्यान रख रहा है तो कहीं उससे दूर तो नहीं चला जायेगा। तुषार समझाता कि इस समय माला और बच्चे को उसकी ज़्यादा ज़रुरत है।
पहले पूरानी बातों को सब नज़र अंदाज़ करते थे, पर अब सबको पता चल चुका है कि पूर्वज जो करते थे, वो शरीर की निरोगी काया के लिए महत्त्वपूर्ण था।
तुम ये सब क्या करने लगीं? खुशी की एक प्लेट जब जाती थी तब ये हिरस, स्वार्थ, दिखावा कुछ नहीं था। खुशियों के त्योहार में बुराई-भलाई में लगी हो?
दिवाली की कहानियां इस दिवाली पटाखे और मिठाइयों के साथ अपनों के साथ सुनें और सुनाएं और समझें कि घर और मन को साफ़ रखने की क्या ज़रुरत है!
दुनिया मेरे रंग पर तरह-तरह की बात करती, दादी सिर पीट रही थी, पर मां और पिता जी की तो मैं ही राजकुमारी थी, सबसे प्यारी राजकुमारी!
छोटी-छोटी बातें अहम होने से बड़ी हो जाती हैं। समझाने वाले अच्छे दोस्त हों तो टूटे रिश्ते जुड़ जाते हैं, और वहीं भड़काने वाले हों तो रिश्ते टूटते देर नहीं लगती।
सुबह सबके जाने के बाद धरा रोली का ध्यान रखती और रात को घर जाती। माँ भी रात का खाना धरा के परिवार के लिए बना देती जिससे उसे घर में ना बनाना पड़े।
हमें लगता है, 'बड़े हमेशा ये ही कहते हैं', पर ये ही प्यार है। उन्हें भी बच्चों के साथ समय बिताना अच्छा लगता है। उनका समय बच्चों की बातों ही में बीतता है।
आज पता चला कि किसी भी बात को गम्भीर ना लेने वाली ताई जी, अंदर ही अंदर कितनी परिपक्व हैं। ताई जी का एक नया रूप देखने को मिल रहा था।
आज जिसे भी देखो सोशल मीडिया पर दिखावे में फोटो डालता है। वो और ना जाने कितने दुनिया को दिखाने में लगे है कि देखो, हम कितना सुखी जीवन जी रहे हैं।
क्यों शादी के बाद भी रोली में बचपना दिखता था और राधा में सुशील बहु, जिससे पूरा घर संभालने की उम्मीद रहती? शादी के छः महिने तक राधा ससुराल ही रही, कुछ रस्में चल रही थीं, कुछ तीज, त्यौहार भी थे। वैसे तो राधा ने अपने घर में ज़्यादा काम नहीं किया था, पर ससुराल […]
हम वापस आ गए, पर समझ नहीं आ रहा था, यह सही था या गलत। हाँ, यह ज़रूर समझ आ रहा था कि दोनों की ख्वाइशें पूरी हो गई थीं।
नैना ने कहा वो नेत्रहीन है, पर सोचने के लिये दिमाग है। सारी ग्रन्थियाँ, और स्वाद, आवाज़, स्पर्श, सब अच्छे से महसूस कर सकती है वह।
उम्मीद नहीं थी कि नील फोन पर अपनी पसंद की लड़की को चुनकर, उसके सामने रिश्ते का प्रस्ताव ले आएगा। सुजाता के लिये ये एक बहुत बड़ा धक्का था।
बचपन में मुझे कभी भी पिताजी ने महंगी आइसक्रीम नहीं दी। कभी भी इतने रूपये नहीं थे। और जब थे, तब भी नहीं दिलायी।
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