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Anshu Saxena

मैं एक लेखिका एवं समाजसेवी हूँ । मैंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से रसायनशास्त्र में MSc किया है । मैंने कई वर्षों तक अध्यापन कार्य भी किया है। मुझे अपनी अनुभूतियों को कविताओं , कहानियों एवं लेखों के माध्यम से व्यक्त करना अत्यन्त प्रिय है । लेखन मुझे अात्मसंतुष्टि प्रदान करता है ।

Voice of Anshu Saxena

जिस रिश्ते में तुम्हारा सम्मान नहीं उसे छोड़ दो…

पलाश कह रहा है कि मैं मानसिक रूप से ठीक नहीं हूँ! मैं अपने माता पिता को ये बातें नहीं बता सकती, वे नहीं समझेंगे, मैं बिलकुल अकेली हूँ...

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दीदी, क्या आप भूल गईं उन्होंने आपके साथ क्या किया?

“अरे तुम बुरा क्यों सोच रही हो? अच्छा सोचो तो सब अच्छा ही होगा। अच्छा चलो अब तैयार हो जाओ, मोहिनी दीदी के यहाँ चलना है न…”

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जो मेरे पति ने मेरे साथ किया, वो मैं भूलना नहीं चाहती…

मैं दीदी से चुहल करते हुए बोली, “ये आप अभी भी ‘डॉक्टर साहब’ को ‘डागदर साहब’ क्यों कहती हैं? क्या आपको ‘डॉक्टर साहब’ बोलना कठिन लगता है?” अब तक मन मोहिनी (भाग – 4) में आपने पढ़ा – मैंने आश्चर्य से पूछा, “क्या आपने? आपने यह शिकायत अस्पताल में की है?” वे उसी तरह मुस्कुराते हुए बोले, […]

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लेकिन दीदी के पति के खिलाफ शिकायत किसने की?

मीता, तुम हमको हँसना बोलना, उठना बैठना, सब तौर तरीक़ा सिखा दो, तो सायद (शायद) डागदर साहब को हम थोड़ा सा खुस कर सकें।

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ग़लत दवाएँ देकर पापा माँ को पागल बना रहे हैं…

पराग को देखते ही मैं उसे पहचान गई। यह वही पराग था। उसने मुझे देखते ही अपनी नज़रें चुरा लीं और मुझे अनदेखा करने का नाटक करने लगा। 

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मेरे पति मुझे मारते नहीं हैं, वो बस थोड़ा हाथापाई…

उसकी बात सुनकर मैं चौंक पड़ी और मोहिनी जी से पूछ बैठी, “पलक क्या कह रही है दीदी ? क्या डॉक्टर साहब आप पर हाथ उठाते हैं?”

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मेरे पति मुझे पागल साबित करना चाहते हैं…

दरवाज़े पर मोहिनी जी खड़ी नज़र आईं।मेरे दिमाग़ ने मुझे एक बार चेताया कि मैं दरवाज़ा न खोलूँ परन्तु फिर मुझे तुरन्त ही पतिदेव की बात याद आ गई।

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फ़िल्म शेरनी दहाड़ती है समाज के कई मुद्दों पर भी!

एक कामकाजी महिला  को अपने घर व बाहर किन परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता है, विद्या ने इसका सटीक उदाहरण फ़िल्म शेरनी में प्रस्तुत किया है।

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और उसने अपनी मनपसंद पीली साड़ी पहन ली…

"चिल्लाना बंद कीजिये! संस्कार देने की ज़िम्मेदारी माता पिता दोनों की होती है, अकेली माँ की नहीं। आपने कभी माँ को बराबरी का दर्जा नहीं दिया।"

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वेब सीरीज़ महारानी: जो औरत अपना घर चला सकती है वो सरकार भी चला सकती है

जिन्हें यह लगता है कि पति के हाथों की कठपुतली बनना ही प्रत्येक पत्नी का कर्तव्य है, वे वेब सीरीज़ महारानी न ही देखें तो बेहतर है।

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फ़िल्म द ग्रेट इंडियन किचन में आप खुद से भी मिल सकते हैं…

एक मामूली स्त्री की कहानी द ग्रेट इंडियन किचन यह संदेश देने में सक्षम है कि हर किसी को स्वअस्तित्व की लड़ाई स्वयं ही लड़नी पड़ती है। 

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वेब सीरीज़ रामयुग रामायण को एक नई रोशनी में पेश करती है!

रामयुग की सीता कहीं भी कभी भी अश्रु नहीं बहातीं। वे अपने पति श्री राम चन्द्र जी को नाम लेकर सम्बोधित करती हैं, स्वामी या आर्यपुत्र कहकर नहीं।

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उनकी उम्र और कंधे के उस लाल निशान को देख मैं सिहर उठी…

वे हिचकी लेते हुए अपने हाथ की दो उँगलियाँ दिखाती हैं, अर्थात उनके पति और बेटे दोनों ने। मैं उन्हें गले से लगाती हूँ और कहती हूँ, "पुलिस...कम्प्लेन?"

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चिनार के दरख़्त

सरसराती हवा से उड़ते पत्र के पन्नों को चैताली ने पेपरवेट से दबा दिया और एक बार फिर उसकी नज़रें निखिल की सुन्दर लिखावट पर ठहर गईं...

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क्यों समाज को नहीं स्वीकार निरंकुश और बेख़ौफ़ सी स्त्रियाँ?

स्त्रियों ने स्वयं ही ओढ़ लिए हैं सारे बंधन, कभी मर्यादा के नाम पर, तो कभी यूँ ही रस्मों रिवाजों के नाम पर लगा लिए हैं कड़े पहरे अपने निरंकुश विचारों पर !

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नमस्कार की एक मुद्रा : ईश्वर से आशा की आभा या एक विनती

मैंने जीवन भर ईश्वर से शिकायत की उन्होंने मुझे बेटा क्यों नहीं दिया पर मैं भूल गया था ईश्वर ने तुम बेटियों के रूप में एक नहीं चार लाठियाँ दी हैं।

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कविता

कविता शब्द का अर्थ सिर्फ यह नहीं के ताल और तुक मिले कविता का अर्थ है "निचोड़" किसी भी भाव का निचोड़ जो आपकी मनोभावना को प्रदर्शित आप अपने भाव के अनुरूप अपने शब्दों को एक लय में बाँध देते हैं 

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मैंने अपने मुक़द्दर से लड़कर जीतना सीखा है…

इश्क़ ने हम सबको कभी न कभी, किसी न किसी रूप में छुआ है - ज़माने ने उठाये जब मेरी मोहब्बत पर सवाल, मैंने इश्क की रवायतों में बस दहकना सीखा है!

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पत्नी के अधिकार इतनी आसानी से कैसे भूल सकते हैं आप?

क्या हुआ जो तू पैसे नहीं कमाती? तू बाकि काम संभालती है ना? तेरे पति के पैसे पर, उनकी कमाई पर तेरा क़ानूनी हक़ है। वे तुझे घर छोड़ने के लिए नहीं कह सकते।

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ये ज़िंदगी तो एक मृग मरीचिका है, जो दिखे, सिर्फ उसे ही सच न मानें!

"अक्सर जो दिखता है, वैसा होता नहीं। बिलकुल किसी मृग मरीचिका की तरह", मैं मन ही मन बुदबुदायी, "जो मिला है, जैसा मिला है, उसी में संतुष्ट होना सीखो!

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रेशम की डोर – क्या एक औरत को अपनी ज़िंदगी के फ़ैसले लेने का कोई हक़ नहीं?

माला सफ़ेद के अलावा दूसरे रंग भी पहनना चाहती, कभी कभी उसका मन छोटी सी बिंदी लगाने को करता, परन्तु समाज की बेड़ियाँ को तोड़ना मुश्किल लगता था।

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इस दिवाली आप भी किसी की ज़िंदगी में उम्मीद का दीपक जलाने का संकल्प लें!

इस दीवाली मैंने, सरला भाभी के निराशा भरे जीवन में उम्मीद की रोशनी जलाने का संकल्प कर लिया है और अब मेरी उद्विग्नता, मानसिक शांति में परिवर्तित हो चुकी है।

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क्या सिर्फ़ मेरा पहनावा मेरी आधुनिक सोच की निशानी है?

कहाँ तो केतकी सोच रही थी कि गुलाबी शिफ़ॉन की साड़ी में देख, रोहन उसे निहारता रह जायेगा और उसकी तारीफ़ों के पुल बाँध देगा परन्तु रोहन...

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सबको खुश रखने की ज़िम्मेदारी अगर बहु की है तो उसको खुश रखने की ज़िम्मेदारी आपकी है!

आज मेरा मन किचेन में जाने का नहीं है, रविवार को तो मेरी भी छुट्टी है, और एक दिन तो मुझे भी आपकी तरह पूरा आराम करने का हक़ है।

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मेरी हिंदी की गूँज विदेशी धरती तक – हिंदी मेरा अभिमान

हमारे जीवन में हमारी भाषा हिंदी का वही स्थान है जो ब्रम्हाण्ड में सूर्य का है, अर्थात हिंदी बोलने वालों की पूरी दुनिया हिंदी के इर्द-गिर्द ही घूमती है।

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जीने की राह – अतीत की काली परछाइयों से निकल और आगे बढ़

राघव ने कई बार सुम्मी से मिलने की कोशिश की, परन्तु सुम्मी के पास समय नहीं है। वह अतीत की काली परछाइयों से निकल, जीवन पथ पर बहुत आगे निकल चुकी थी।

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एक निर्णय ज़िंदगी की राह बदलने का

थोड़ी देर पहले ही उसने रोहित को किसी दूसरी महिला के साथ स्कूटर पर जाते देखा था। वह महिला रोहित के साथ ऐसे बैठी थी मानो वह उसकी पत्नी हो।

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जीवन की साँझ और एक अनजाना सा अक्स

अपना अक्स आइने में देख मैं अचानक चौंक पड़ी। अपना अनजाना सा अक्स आइने में देख मैंने एक निर्णय लिया और फिर अन्य कामों में संलग्न हो गई।

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बेड़ियाँ तोड़ मुझे मिला आगे बढ़ने का हौसला

आपने ही मुझे ग़लत बातों से लड़ने का पाठ पढ़ाया। आपने ही मुझे आगे बढ़ने का हौसला दिया। आपके ही कारण मैं अपने पाँव में जकड़ी बेड़ियाँ तोड़ पाई।

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आँखों ही आँखों में कटी, नहीं भूलती वो रात

"आप सभी लोग बिलकुल परेशान न हों। आप अपना सामान साथ लीजिये और हमारे घरों में चल कर आराम करें। भोजन भी हमारे साथ ही हो जायेगा।"

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