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Smita Saksena

Hi, I am Smita Saksena. I am Author of two Books, Blogger, Influencer and a Freelance Content Creator. I love to write Articles, Blogs, Stories, Quotes and Poetry in Hindi and English languages. Initially, it all started as a creative outlet, where I tried to compile my thoughts in an interesting way of chronicling and expressing ideas, thoughts and inspirations, my feelings, life lessons and sometimes my pain too and believe me, writing is a kind of healing therapy to my inner self. When started blogging/ writing with multiple platforms, brands, leading Newspapers and Magzine, the results were amazing…and the kind of support and appreciation I got from my Readers, Followers, Family and Friends was really tremendous. My goal is to be better than how I was yesterday ,I want to improve myself a little bit more, want to enrich my life with positivity and goodness...I am working on my story and hope to get success. Happy reading Smita Saksena

Voice of Smita Saksena

पसंद है उसे ख्वाबों की ताबीर को सच कर दिखाना…

खुद ही सीखा है उसने तूफानों में खुद को संवारना, पर फिर वो वो नहीं रह जाती इन सब बातों में, भूल जाती है ठहाके लगाकर हंसना खिलखिलाना।

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क्यों अपनी लड़की को लड़के के बराबर बना रही हो?

आदमी काम करने जाते हैं, मेहनत करते हैं, पैसा लाते हैं तो उनका पहला हक बनता है ना? औरतों को घर में रहना है तो बराबरी की कोई दरकार नहीं है।

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कभी हौसला नहीं हारने वाली बुलंद, अपने ही जैसी एक मिसाल बन तू

एक स्त्री के अपने सपनों को पूरा करने, अपनी शर्तों पर जीवन जीने और अपनी मुश्किल बीमारी और हालात से जूझकर भी हार ना मानने की कहानी। 

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हाँ, मैं माँ भी हूँ और स्त्री का एक पूरा अस्तित्व भी

अब हदें तोड़ने का जी करता है, मन की घुटन से बाहर निकल, दूसरों के बताए नहीं, ख़ुद के लिए, नये रास्ते ढूँढने का मन करता है। 

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खुश रहना हमारे खुद के ही हाथ है

अब हम छोटी लड़कियों जितने अल्हड़ तो नहीं रह गए हैं, पर इतने उम्रदराज़ भी नहीं हुए हैं कि ज़िन्दगी से बेज़ार हो जाएँ।

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क्यों स्त्रियों को एक समूचे अस्तित्व के तौर पर स्वीकारना इतना मुश्किल है

सम्मान दें और सम्मान पाएं, क्यूंकि मर्यादा का पालन सबको करना चाहिए, सिर्फ बहुओं या औरतों को ही नहीं। मर्यादा से ही समाज चलता है, ये न भूलें।

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ससुराल ऐसा भी होता है-पूर्वाग्रह ना पालें

नव्या दुल्हन के जोड़े में सजी माँ की बातें सुन रही थी-"ससुराल में जल्दी उठना, बड़ों से बहस ना करना, उल्टे जवाब मत देना, सभी कामों को अच्छी तरह करना।"

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कुछ कहना था मुझे आज तुमसे

"नहीं समझ पाओगे ये तुम, जानती हूँ मैं ये बात भी, टूटे धागे टूटकर जुड़े हैं कभी, ना हुआ, ना होगा कभी", फिर भी एक आस है, तुम्हारा इंतज़ार है। 

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यादें बचपन की

'क्यों नहीं लौटता मेरा बचपन, वही बेफिकर जीने का तरीका'- कभी न कभी हम सबने अपने बचपन को इसी तरह याद किया है, इसी तरह पुकारा है।    

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