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राम गोपाल वर्मा के दिए गए बयान में कहा गया है कि उनके लिए लड़कियों के दिमाग से ज्यादा लड़कियों के शरीर ज्यादा मायने रखते हैं।
सिनेमा जगत को समाज का आईना कहा जाता है क्योंकि वह समाज की सच्चाई को दिखाता है। हालांकि समाज में केवल सच्चाई दिखाने मात्र से ही बदलाव नहीं आ जाता है। फिल्मी दग्गजों के लिए जितना फिल्म बनाना आसान होता है, उतना उसे स्वीकारना मुश्किल।
राम गोपाल वर्मा के हालिया बयान से यह जाहिर भी होता है। उनके दिए गए बयान में कहा गया है कि उनके लिए लड़कियों के दिमाग से ज्यादा लड़कियों के शरीर ज्यादा मायने रखते हैं। उन्होंने आगे कहा कि दिमाग का कोई जेंडर नहीं होता। यह लड़के और लड़कियों दोनों के पास होता है मगर लड़कियों के शरीर ज्यादा मायने रखते हैं, क्योंकि उन्हें सेक्स ऑब्जेक्ट के नज़र से देखा जाता है।
हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब राम गोपाल वर्मा ने ऐसे बयान दिया हो क्योंकि इससे पहले भी उन्होंने कई विवादास्पद बयान दिए हैं। एक बार उन्होंने अपने ट्वीट के जरिये कहा था, “किसी को आकर्षित करने के लिए एक महिला का शरीर, सुंदर और ध्यान खींचने वाला होता है।” राम गोपाल वर्मा ने मिया मालकोवा की फिल्म के पोस्टर के साथ ट्वीट किया था, “मैं सच में विश्वास करता हूं कि इस दुनिया में एक औरत के शरीर से ज्यादा सुंदर और याद रखने योग्य कोई जगह नहीं है।”
जेंडर और शरीर के नाम पर महिलाओं के लिए ऐसे विवादास्पद बयान समाज को एक गलत दिशा में मोड़ते हैं। महिलाओं को केवल शरीर का ढांचा मात्र देखा जाता है, जिस कारण लोगों की मानसिकता नहीं बदल रही है। दिमाग और दिल का वास्ता भले ही होता होगा मगर महिलाओं के देह में संसार देखने का नज़रिया सरासर गलत है। महिलाएं अपने दिमाग से बेहद मजबूत होती हैं, जिसके अनेक उदाहरण हमारे आसपास ही देखे जा सकते हैं मगर सुर्खियों में बने रहने के लिए बयानबाजी करना और महिलाओं के शरीर पर कमेंट उनके गिरे हुए मानसिक स्वास्थ्य को दर्शाता है।
राम गोपाल वर्मा के ट्वीट से साबित होता है कि उन्होंने महिला के शरीर में ही सबकुछ देखा है, जैसे एक स्त्री का देह उसका देश होता है। गरिमा श्रीवास्तव अपने किताब ‘देह ही देश’ में कहती हैं कि “रोज़ रात को सफ़ेद चीलें हमें उठाने आतीं और सुबह वापस छोड़ जातीं। कभी-कभी वे बीस की तादाद में आते। वे हमारे साथ सब कुछ करते जिसे कहा या बताया नहीं जा सकता है। मैं उसे याद भी नहीं करना चाहती। हमें उनके लिए खाना पकाना और पसोरना पड़ता नंगे होकर। हमारे सामने ही उन्होंने कई लड़कियों का बलात्कार कर हत्या कर दी, जिन्होंने प्रतिरोध किया उनके स्तन काट कर धर दिए गए।”
यहां केवल एक स्त्री होने की सजा उन्हें मिलती है, जिसे शायद अनेक लोग नहीं समझते होंगे क्योंकि उन्हें स्त्रियों के देह में केवल वासना ही नज़र आती है। महिलाओं को केवल कॉमोडिटी के रुप में देखा जाता है, उन्हें एक ऑब्जेक्ट के तौर पर देखा जाता है।
बॉलीवुड को जितना खुले दिमाग का होना चाहिए, उतना वह केवल दिखाने के लिए रहता है जबकि हकीकत यह है कि उसे केवल पैसों और पब्लिसिटी की राजनीति करनी है। महिलाओं को ऑब्जेक्टीफाई करके लोगों द्वारा सुर्खियां बंटोरनी है, भले ही किसी महिला के शरीर को इसमें जोड़ा जाए, उससे फर्क नहीं पड़ता है। हालांकि बॉलीवुड से ऐसे बयानों का आना महिलाओं के प्रति संकिर्ण सोच और गिरी हुई मानसिकता का परिचायक है।
मूल चित्र : Imdb
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