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Young Writer
लोग अपने बच्चों को 'गुड टच-बैड टच' की परिभाषा बताते हैं मगर अब इस निर्णय के बाद शायद 'बैड टच' यौन हिंसा में आएगा ही नहीं।
रजनी चांडी का बोल्ड ओर कांफिडेंट फोटोशुट हर महिला के लिए प्रेरणादायक है, जिन्हें अपने मन की उड़ान भरने की इच्छा है।
पुरुषों में भी इनफर्टिलिटी या बांझपन की समस्या देखी जाती है इसलिए केवल महिलाओं को बच्चा न होने के लिए ज़िम्मेदार ठहराना गलत है।
घरेलू महिला और उसके कामकाजी पति दोनों की अहमियत एक समान है क्यूँकि महिलाएं घर में बिना पैसे के पुरुषों की तुलना में ज्यादा काम करती हैं।
राम गोपाल वर्मा के दिए गए बयान में कहा गया है कि उनके लिए लड़कियों के दिमाग से ज्यादा लड़कियों के शरीर ज्यादा मायने रखते हैं।
कन्या उत्थान योजना नीतीश सरकार की योजना है, जिसके तहत लड़कियों को बारहवीं और स्नातक कर लेने पर प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है।
अब संतानहीनता एक बड़ी परेशानी नहीं है क्योंकि आई वी एफ की जानकरी से लोग जागरूक हो रहें हैं और इस तकनीक से माता-पिता बन रहे हैं।
ऑनर किलिंग के मामले कोर्ट तक बहुत कम पहुंचते हैं, शायद इसलिए सरकार के लिए यह एक गंभीर विषय नहीं है, तो अब क्या होना चाहिए?
साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने अनेक ऐतिहासिक निर्णय सुनाए जो महिलाओं से संबंधित हैं और जिसे जानना हर एक के लिए ज़रुरी है। आइये जानें और...
शादी के बाद प्रियंका को जब पता चला तो वह स्वयं को ठगा हुआ महसूस करने लगी क्योंकि रवि से उसने यह उम्मीद कभी नहीं लगाई थी...
अगर तुम बिन ब्याही मां बनोगी तो लोग अनेक सवाल करेंगे। तुम मां बन भी जाओगी फिर उस बच्चे के पिता को कहां से लाओगी?
इस बार लाडली मीडिया अवार्ड की कुछ विजेताओं से हमारी बात हुई तो उन्होंने अपने लेखन के सफर और लाडली तक पहुंचने के खबर को हमसे साझा किया।
आईवीएफ ट्रीटमेंट से अब बिना सेक्स के मां बनना संभव है। तो जानिये इस पर विशेषज्ञों की राय और आज की लड़कियों का क्या सोचना है...
छत्तीसगढ़ के मड़ई मेले में जब महिलाएं एक पंक्ति में लेट गईं तो कई पुजारी और बैगा मंदिर में प्रवेश करने के लिए उनकी पीठ पर चढ़ गए।
एक ओर तो छठ पूजा के पर्व को प्रकृति का त्यौहार कहा जाता है, लेकिन उसमें परिवारवाद और मन्नत की पहुंच ने अपनी जगह बनाने का काम किया है।
छठ पूजा का प्रसाद ऐसी अनेक चीज़ों को शामिल करता है, जिससे शरीर को पोषक तत्व मिलते हैं, इसलिए इसका वैज्ञानिक महत्व भी बहुत ज़्यादा है।
बिहार चुनाव में इस बार महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत बढ़ना एक सुखद खबर है क्योंकि इससे महिला सशक्तिकरण का नींव को मजबूती मिलती है।
हाल ही में एक रिर्पोट में आया है कि कोरोना माहमारी के कारण 47 फीसदी कामकाजी महिलाएं काम के प्रेशर के कारण भावनात्मक परेशानी महसूस कर रही हैं।
केमिकल कैस्ट्रेशन क्या है और क्या नहीं है? और क्या इसका डर एक बलात्कारी को आगे बढ़ने से रोक पायेगा? क्या इतना काफी है? आइये डालें एक नज़र...
गांधी आज जितने गर्व से याद किए जाते हैं, उसमें बा का सबसे ज़्यादा योगदान है क्योंकि गांधी ने महान बनने की सीढ़ी बा के सहारे ही चढ़ी है।
नेहा राठौड़ 'बिहार में का बा' में बिहार में फैली बेरोज़गारी के साथ-साथ बिहार के हालात को गीत द्वारा प्रस्तुत कर रही हैं इस वायरल वीडियो में।
चुनावों में कई मुद्दों पर वादे होते हैं, लेकिन पीरियड्स, जो सिर्फ महिलाओं की समस्या समझी जाती है, कभी भी किसी ने अहम मुद्दा नहीं समझी?
मेरी इस पोस्ट के बाद कई महिलाएं मेरे इनबाक्स में आईं और उन्होंने साइबर अपराध से जुड़ी अपनी परेशानियों को साझा किया कि किस तरह से उन्हें परेशान किया जाता है।
एक ओर जहां कंडोम, आई पिल आदि पर पाबंदी है, तब सेक्स के विषय में कैसी चुप्पी होगी!!
'एक थप्पड़ से क्या हो जाता है, प्यार में तो ऐसी नोक-झोंक चलती ही रहती है', क्या सच में? आज मैं भी कहूँगी, 'जस्ट ए स्लैप, मगर नहीं मार सकता।'
आज तो हमारे संविधान में कई तरह की आज़ादी और लोगों के अधिकारों का ज़िक्र है मगर मैं पूछना चाहती हूँ, क्या उन अधिकारों को लोग आसानी से पा लेते हैं?
ब्रेस्ट आयरनिंग - लड़कियों की 'सुरक्षा' के नाम पर उनके स्तनों को जला डालना! हाँ, यह भयंकर रिवाज आज भी कायम है| जानिए प्रथा के नाम पर होने वाले एक और शोषण के बारे में|
'मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट’ बेहद सराहनीय है, पर, इसकी ग्राउंड रियलिटी अभी थोड़ी अलग है। इसका कुछ व्यापक असर हो, यह बहुत ज़रूरी है |
जीने के लिए, पलक की ही तरह, आइये, यही नजरिया अपनाएं-'जिंदगी प्यार का गीत है'-जहाँ, कभी उतार है, तो कभी, चढ़ाव। संगीत के सुरों के भांति।
लड़कियों को जानबूझकर छूना, उनसे टकराना, उन पर सीटी बजाना, अश्लील इशारे करना, गाड़ी चलाते वक्त जान बूझकर पीछा करना...
स्तन कैंसर और उसके लक्षण के प्रति जागरूक रहें। यदि शुरुआती दिनों में ही ब्रेस्ट कैंसर का पता लग जाए तो यह पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
जो आरोप अब निकले हैं #MeToo की वजह से, उनकी जाँच तो होनी हीं चाहिए ताकि हर उस इंसान का वह चेहरा सामने आए, जो उसने अपने प्रत्यक्ष चेहरे के पीछे छुपाकर रखा है|
लड़कियां भी इंसान होती हैं, कोई वस्तु नहीं, जिनका दान हो, पुरानी परंपराएं और कुछ पुराने शब्द भी अब हमें बदलने होंगे, कृपया हमारा कन्यादान न करें।
"माँ सोचने लगी अगर ये नाख़ून आज नहीं होते तो?" किसी भी माँ ने सपने में नहीं सोचा होगा कि उसकी बेटी के नाख़ून इस काम आ सकते हैं।
बेटा हो या बेटी, दोनों एक सामान हैं, "ये कहना गलत है कि हम बेटियों को बेटों की तरह रखते हैं"- दोनों जैसे चाहें वैसे रहें।
केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। जिसके साथ ही 800 वर्ष पुरानी प्रथा खत्म हो गई है, जिसमें 10 वर्ष की बच्चियों से लेकर 50 वर्ष तक की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने की सख्त मनाही थी अब तक।
धारा 377- जिस समाज में लोग आज भी इस विषय पर बात करने से हिचकिचाते हैं, क्या इसे वहाँ सामाजिक स्वीकृति मिलेगी? मन में उठते हैं ऐसे कई सवाल।
एक तरफ तो हम सांवले रूप वाले श्री कृष्ण और काली माँ की भक्ति करते हैं, दूसरी ओर हमें ही अपने सांवले या काले रंग से दिक्कत होती है? ऐसा क्यों?
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