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मदर मिल्क बैंक से मिल सकता है हर नवजात शिशु को माँ का दूध!

एक नवजात बच्चे के लिए मां का दूध उतना ही जरुरी होता है। इसलिए वर्तमान भारत में लगभग 20 से ज्यादा मदर मिल्क बैंक संचालन किया जाता है।


एक नवजात बच्चे के लिए मां का दूध उतना ही जरुरी होता है। इसलिए वर्तमान भारत में लगभग 20 से ज्यादा मदर मिल्क बैंक संचालन किया जाता है।


माएं हमारा हमेशा बहुत ख्याल रखती हैं इसलिए मांओं के लिए केवल एक दिन नहीं बल्कि मां का हर दिन होना चाहिए।

9 माह की सुखद पीड़ा सहकर हमें बाहरी दूनिया से रुबरु कराने वाली मां एक बच्चे के लिए संसार ही होती है, क्योंकि अपने गर्भ के भीतर भी मां एक संसार ही लेकर चलती है, जिसमें आने वाले समय में वह अपना भविष्य ढ़ूंढ़ती है। 

एक बच्चा अगर अपनी मां से अलग हो जाता है, या दूर हो जाता है, तब उसे मां की कमी अंदर ही अंदर कचोटती रहती है। ऐसे में अगर कोई नवजात जन्म लेने के बाद ही अपनी मां को खो दे, तब उस बच्चे की मार्मिक दशा लेखन से भी परे है। वह बच्चा समझ ही नहीं पाएगा कि उसने अपनी दूनिया खो दी है। 

माएं करें अपना दूध डोनेट मदर मिल्क बैंक में

वर्तमान परिवेश की बात अगर करें, तो कोरोना काल ने ऐसी अनेक जिंदगियों को अपना ग्रास बना लिया है, जिसमें नयी-नयी बनी माएं भी शामिल हैं, और उन मांओं के बच्चे जिनका रुदन कोरोना के हाहाकार के तले दब गया है।

हाल ही में एक टि्वटर पर एक ट्वीट के बाद सफूरा जरगर ने अपने दूध की पेशकश की थी कि बच्चे को अगर अब भी जरुरत है, तब वह अपना दूध डोनेट कर सकती हैं। 

एक नवजात बच्चे के लिए मां का दूध उतना ही जरुरी होता है, जितना एक व्यस्क इंसान के लिए भोजन। मगर कोरोना की त्रासदी के कारण जहां एक ओर अन्य संसाधनों की कमी देखी जा रही है, वहीं मां के दूध के बिना भी बच्चे तड़प रहे हैं। ऐसे में यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि नवजात बच्चों को मां का दूध अर्थात ब्रेस्ट मिल्क कैसे उपलब्ध कराया जाए। 

भारत में संचालित ब्रेस्ट मिल्क बैंक

भारत के अनेक हिस्सों में मानव जनित मिल्क बैंक का संचालन किया जाता है। डॉ. जयश्री मोंडकर को एशिया का पहला ‘मानव दूध बैंक’ संचालित करने का श्रेय जाता है। लोकमान्य तिलक म्युनिसिपल जनरल हॉस्पिटल मुंबई में इस बैंक की नींव वर्ष 1989 में डॉ अर्मिदा फर्नांडिस द्वारा रखी गयी थी। एशिया के सबसे पहले ह्यूमन मिल्क बैंक ‘स्नेहा’ को अब ‘सायन मिल्क बैंक’ के नाम से जाना जाता है।

वर्तमान में इस बैंक में लगभग 40 से ज्यादा वैसी महिलाएं शामिल हैं, जो अभी अपने बच्चों को स्तनपान करवा रही हैं। साथ ही अन्य बच्चों के लिए भी दूध की व्यवस्था कर रही हैं। 

दिल्ली में भी नवजात बच्चों को मां का दूध उपलब्ध कराने के लिए मिल्क बैंक का संचालन किया जाता है। साल 2016 में दिल्ली में ग्रेटर कैलाश के फोर्टिस ला फेम हॉस्पिटल ने स्वयं सेवी संस्था ब्रेस्ट मिल्क फाउंडेशन के साथ मिलकर दिल्ली में पहला मां के दूध का बैंक खोला था।

इस बैंक का नाम अमारा है, जहां से बच्चों के लिए दूध लिया जा सकता है। इस बैंक के शुरुआती दो महीनों में ही 80 लीटर से ज्यादा ब्रेस्ट मिल्क इकट्ठा किया गया था। 

राजस्थान के कई हिस्सों में मदर मिल्क बैंक

राजस्थान के उदयपुर जिले के आरएनटी मेडिकल कॉलेज स्थित शासकीय पन्नाधाय महिला चिकित्सालय के एक हिस्से में स्वयंसेवी संस्था ने ‘दिव्य मदर मिल्क बैंक’ की स्थापना की थी। साथ ही जयपुर के जेके लोन अस्पताल में राज्य सरकार और नॉर्वे सरकार की भागीदारी से ‘जीवनधारा’ नामक मदर मिल्क बैंक खोला गया है। यह राज्य का पहला सरकारी और उत्तर भारत का दूसरा मां के दूध का बैंक है।

वर्तमान में भीलवाड़ा, टोंक, भरतपुर, चुरु, अलवर, बूंदी, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा, बारां, राजसमंद, करोली, जालौर, सवाईमाधोपुर, बाड़मेर, धौलपुर और ब्यावर में ब्रेस्ट मिल्क बैंक का संचालन किया जाता है।   

केरल का पहला ब्रेस्ट मिल्क बैंक

साल 2021 की फरवरी में केरल का पहला मां के दूध का बैंक शुरू किया गया। इसे रोटरी क्लब ऑफ कोचीन ग्लोबल के सहयोग से स्थापित किया गया है।

राज्य सरकार के अनुसार लगभग 3,600 बच्चे एक साल में जन्म लेते हैं, जिनमें से ही बच्चों की कंडिशन और मां की कंडिशन के अनुसार उनके लिए दूध की व्यवस्था की जाती है। 

तमिलनाडु में लगभग 23 मां के दूध बैंक का संचालन किया जाता है। चेन्नई के आरएसआरएम हॉस्पिटल, रोयापुरम, गवर्न्मेंट मेटेरनिटी हॉस्पिटल (IOG), एगमोर , विजया हॉस्पिटल, वाडापलानी, में ब्रेस्ट मिल्क बैंक का संचालन किया जाता है। 

6 महीने तक मां का दूध

वर्तमान भारत में लगभग 20 से ज्यादा ब्रेस्ट मिल्क बैंक संचालन किया जाता है। जो महिलाएं अपना दूध डोनेट करना चाहती हैं, पहले उनकी जांच की जाती है। उसके बाद माएं इलेक्ट्रिक मशीन द्वारा अपने दूध निकालती हैं, जिसे बैंक में 62.5 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान पर 30 मिनट तक पाश्चुराइज करने के बाद 4 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर ठंडा किया जाता है।

उसके बाद हर डिब्बे से एक मिलीलीटर दूध का नमूना माइक्रो लैब में टेस्टिंग के लिए भेजा जाता है। रिपोर्ट निगेटिव आने पर इसे शून्य से 20 डिग्री नीचे के तापमान पर बर्फ के गोले के रूप में बैंक के फ्रीजर में संग्रहित कर लिया जाता है, जिसके बाद यह 6 महीने तक प्रयोग किया जा सकता है। शिशु की आवश्यकता अनुसार उसे समय-समय पर पिलाया जाता है।

हालांकि कोरोना के कारण जिन बच्चों ने अपनी मांओं को खोया है, उनके लिए यह एक बेहतर विकल्प है। कुछ लोगों के मन में शंका हो जाती है कि दूध डोनेट करने से उन्हें अपने बच्चे के लिए दूध की कमी हो जाएगी। लेकिन जरुरत अनुसार दूध डोनेट करने में कोई परेशानी नहीं होती है।

हाल के समय को देखते हुए ज्यादा से ज्यादा मांओं को आगे आना चाहिए और बच्चों की सिसकियों को शांत करना चाहिए क्योंकि एक मां के लिए सच्चा सुख शायद बच्चों की भूख को शांत करना भी होता है। 

मूल चित्र: Keira Burton/Pexels

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