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upadhyay sneha

मै भारतीय सभ्यता और संस्कृति में विश्वास करने वाली , भारतीय नारी हूँ , अपनी आप बीती और अनुभव आप सबसे साझा कर रही हूँ ..

Voice of upadhyay sneha

हमारे यहां तो सिर्फ लड़के पैदा होते हैं…

वह घर में हो रही सब नकारात्मक चीजों के लिए खुद को जिम्मेदार समझने लगी। बेमन से खाना बनाती, खिलाती, और अपनी बच्ची को संभालती। 

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बस मैं जॉब न करूँ, सब यही तो चाहते थे…

छोड़ो ये नौकरी करने का चक्कर, आराम से घर में रहने और सोने को मिलता है तो, मुझे समझ नहीं आता कि तुम औरतें नौकरी क्यूँ करना चाहती हो?

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क्या आपको भी दोस्तों के बीच हिंदी बोलने में शर्म आती है?

लेखन में रूचि के कारण उसके बहुत से लेख, कहानी और कविताएं पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके थे, आस पास के क्षेत्रों में उसकी पहचान सक्रिय लेखिकाओं में थी।

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आप शिखा की तरह हैं या उसके बॉस की तरह?

हम महिलाएं, घर और बाहर की जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाती हैं, मगर तब भी अगर घर या ऑफिस में एक दिन का भी अवकाश मांग लें तो शंका का पात्र बन जाती हैं।

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अगर लगन सच्ची हो तो कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

श्वेता का बचपन से एक ही सपना था और संकल्प भी कि, 'मैं जॉब करूं, वो भी एक अच्छी गवर्मेंट जॉब'  और इसके लिए वह जी तोड़ मेहनत करती रही।

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एक दिया दिल में जलाओ प्यार का

यूँ तो घरों के बाहर दिए जलाकर हम हर बार अँधेरा दूर करते हैं चलिए इस दिवाली दिल में प्यार का दिया जला कर नफरत के अंधेरों को दूर करें ! 

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आपको अपने घर में तो बेटियां नहीं चाहियें फिर ये कंचक पूजन का ढोंग क्यों

मेरी सास का भी एक ही बेटा है और मेरा भी एक बेटा और आगे तुम्हारा भी एक बेटा हो इसलिए, शुरूआत में ही जांच करवाकर, बच्चा पैदा करने में ही होशियारी है।

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दुर्गा माँ की पूजा और लड़कियों के पैदा होने पर शोक, बंद करें ये ड्रामा!

सविता समझ ही नहीं पा रही थी कि ये सपना था या सच, आंखों से झर-झर आंसू गिरने लगे। बड़ी पोती दौड़कर देखने आई तो उसे गले से लगाकर रो पड़ी।

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शांति प्रिय संवेदनहीन लोग

एक दिन कुछ शांतिप्रिय संवेदनहीन लोगों ने सुनियोजित तरीके से विष भरा अन्न खिलाकर उन पिल्लों को हमेशा के लिए सुला दिया

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