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हम महिलाएं, घर और बाहर की जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाती हैं, मगर तब भी अगर घर या ऑफिस में एक दिन का भी अवकाश मांग लें तो शंका का पात्र बन जाती हैं।
पिछले दस वर्षों से शिखा का नाम कार्यालय के मेहनती और ईमानदार कर्मचारियों में गिना जाता था। शिखा कार्यालय में विभागाध्यक्ष थी, और विभाग के अति आवश्यक कार्यों के कारण अपनी जिम्मेदारी को देखते हुए चाहकर भी अवकाश नहीं लेती थी। तब भी नहीं जब घर में पति और बच्चे बीमार हों। ऐसे में भी वह अपना घर का काम निपटा कर समय से कार्यालय जाना और अपना काम संपादित करना, नहीं छोड़ती थी।
खुद को कभी सर्दी जुकाम लग जाए तो भी शिखा को कार्यालय की चिंता लगी रहती। वह सोचती कि आज नहीं जा पाऊंगी, पर कार्यालय का समय होते ही उसके कदम खुद-ब-खुद ही घर से निकल पड़ते। शिखा के जैसे ही चार-पांच और ऐसे कर्मचारी थे जो नियमित कार्यालय के लिए प्रतिबद्ध थे, छुट्टियां खराब हो रहीं हैं इसकी चिंता किए बिना डटे रहते।
किंतु उसी कार्यालय में गत तीन माह से पदोन्नति द्वारा नये कुलसचिव नियुक्त हुए, जो आए दिन अवकाश पर रहते। कभी तीन दिन, कभी हफ्ता, तो कभी दस दिन भी। इससे बहुत सारी टिप्पणी, पंजिकाएं, और आवश्यक निर्णय उनके हस्ताक्षर व आदेश के प्रतिक्षा में अटके पड़े रहते।
सब कर्मचारी भी बहुत परेशान होते, पर अधिकारी को कोई क्या कह सकता है। ऐसे में शिखा ने उन महोदय से एक दिन निवेदन किया, “महोदय, मुझे पांच दिनों का अवकाश चाहिए, अपने गांव जाना है।”
इतनी सी बात पर वह अधिकारी महोदय शिखा पर पूरा फट पड़े, “पहले तो आप लोगों को नौकरी चाहिए, गिड़गिड़ाओगे कि बस एक सरकारी नौकरी मिल जाए तो 24 घंटे काम करेंगे। और नौकरी हाथ में आते ही छुट्टी चाहिए।”
शिखा तो हैरत से उनका मुंह देखती रह गई क्योंकि अभी कुछ माह पहले जब वो महोदय कुलसचिव नहीं थे तो ये सब बातें वो खुद के लिए कहा करते थे कि ‘अगर मैं एक बार कुलसचिव बन जाऊं फिर मैं अपना 100 प्रतिशत दूंगा, रात दिन एक कर दूंगा। आप सब देखना इस कार्यालय की तो दशा और दिशा ही बदल जाएगी।’
और अब ये वही श्रीमान हैं जो खुद अवकाश पर रहतें हैं और दूसरों को भाषण सुना रहें हैं। इसे कहते हैं एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी।
शिखा खिन्न मन से वापस आ रही थी, पर वह वापस मुड़ी और अधिकारी जी को कहा, “सर मेरा लीव लेने का रिकार्ड भी कभी देखा है आपने? पूरे डेढ़ साल के बाद सिर्फ पांच दिन की छुट्टी मांग रही हूँ, वो भी इसलिए कि गांव में माँ बीमार है। उसको देखने जाना है, कोई मस्ती करने के लिए अवकाश नहीं चाहिए मुझे जैसा कि दूसरे लोग लेते हैं।”
अब सकपकाने की बारी अधिकारी जी की थी, इशारा तो समझ ही चुके थे। थोड़ा घूरने के अंदाज में शिखा को उन्होने देखा तो वह निडर होकर बोली, “अगर अनुमति नहीं देनी है तो ना सही, पर यूं ही किसी पर उंगली उठाना ठीक नहीं है सर।”
और वह मन ही मन संतोष व आत्मविश्वास से वापस अपने कर्तव्य पालन में लग गयी।
कैसा लगा आप सबको ये ब्लाग, जो एक काल्पनिक कथा पर है?
हम महिलाएं घर और बाहर दोनों जगहों की जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाती हैं मगर तब भी अगर घर या आफिस में एक दिन का भी अवकाश मांग लें तो शंका का पात्र बन जाती हैं। घर में तो सबका मुंह बन ही जाता है, घंटा दो घंटा आराम कर लेने पर, कार्यालय में सब तुरंत यही सोचते हैं, ‘महिला हैं, इनके पास तो पचास बहाने हैं, दुखड़े सुनाकर, आंसू बहाकर, छुट्टी मांग लेंगी।’
अपनी राय अवश्य दीजिए।
मूल चित्र : Canva
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