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Shivangi Srivastava

I am a person who believes that happiness lies in enjoying little things in life. Love to read. At times prefer to write to pour my heart out on paper.

Voice of Shivangi Srivastava

बहुत हुआ! अब तू ही अपना संबल बनना…

उठो सखी बहुत हुआ। लोगों की ऐसी बातों से, ख़ुद को कभी न बोझिल करना।राह सही है डगर सही है,खुद ही अपना संबल बनाना।

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माँ, आप एक औरत होकर बेटी के होने पर दुखी हैं?

जब से उन्होंने बिटिया के पैदा होने की ख़बर सुनी थी तब से बस जोड़ना घटाना शुरू कर दिया था कि कितना खर्च होगा बच्ची की शादी में। 

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क्या मैं बिना सजे संवरे सुंदर नहीं लग सकती?

आखिर ज़रूरत ही क्या है इतना सजने संवरने की? क्या हम सामान्य रहकर सुन्दर नहीं लग सकते, ज़रूरी है इतना कुछ करना?

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क्या सच में परायी होती हैं बेटियाँ?

कभी माँ, कभी पत्नी, कभी बहन, कभी भाभी, हर रूप में खूबसूरती से ढल जाती हैं बेटियाँ।जाने फिर भी क्यूँ परायी कहलाती हैं बेटियाँ?

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मेरी यहां कुछ भी अहमियत नहीं है…

किसी को फर्क़ नहीं पड़ता, कि मुझे भी कुछ अच्छा लग सकता है। कितनी बार, कितनी बार अपनी इच्छाओं को मारा मैंने।

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एक टीस सी उठती है

जो औरों के बारे में सोच कर खुद की परवाह करना छोड़ दो, तो खुद की नजर से नजर कैसे मिला पाओगे अब।

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शादी के बाद सिर्फ मुझे ही बदलना पड़ता है, ऐसा क्यों?

हमारे देश में क्यूं ऐसा होता है कि सिर्फ लड़कियों को शादी के बाद इतनी बेड़ियों के जंजाल में जकड़ दिया जाता है? क्या ये कभी नहीं बदलेगा?

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पुरुषों की इस दुनिया में, कठपुतली सी मैं…

पुरुष प्रधान दुनिया में, ना आवाज़, ना कोई साज़, ना मेरा वजूद, ना अस्तित्व, तोड़-मरोड़ के जीवन जीती, आधे-अधूरे सपने सीती, कठपुतली सी मैं।

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अब तुम्हें अपनी दुनिया खुद बदलनी है…

कोई कृष्ण नहीं अब आयेंग, बाधा ख़ुद आप ही हरनी है, अपनी जाति की आज तुम्हें मर्यादा ऊंची करनी है, अब अपनी दुनिया बदलनी है।

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एक औरत की संवेदना!

खटकते, तड़पते,आहें भरते, क्यूँ किसी को याद नहीं आता, मैं भी एक जीती जागती इंसान हूं! मुझे भी तकलीफ़ उतनी ही होती है जितनी तुम्हें। 

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माना कि अभी मैं पूर्ण नहीं…

जो आज मुझे नहीं समझे, उनसे मैं क्या उम्मीद करूँ, मूरत मैं अभी अधूरी हूँ, पूरी होने की आस लिए। 

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