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पुरुषों की इस दुनिया में, कठपुतली सी मैं…

पुरुष प्रधान दुनिया में, ना आवाज़, ना कोई साज़, ना मेरा वजूद, ना अस्तित्व, तोड़-मरोड़ के जीवन जीती, आधे-अधूरे सपने सीती, कठपुतली सी मैं।

पुरुष प्रधान दुनिया में, ना आवाज़, ना कोई साज़, ना मेरा वजूद, ना अस्तित्व, तोड़-मरोड़ के जीवन जीती, आधे-अधूरे सपने सीती, कठपुतली सी मैं।

पुरुष प्रधान इस दुनिया में,
कठपुतली सी मैं।
ना आवाज़ ना कोई साज़,
कठपुतली सी मैं।

ना मेरा वजूद ना अस्तित्व,
कठपुतली सी मैं।
तोड़ मरोड़ के जीवन जीती,
कठपुतली सी मैं।

आधे अधूरे सपने सीती,
कठपुतली सी मैं।
चाहें सब मैं गाय सी रहूँ,
कठपुतली सी मैं।

जो मैं बोली बद्तमीज़ हूँ,
कठपुतली सी मैं।
सहती जाऊं, गूंगी बनकर,
कठपुतली सी मैं।

दर्द बहुत हैं आंचल में मेरे,
कठपुतली सी मैं।
कोई ना समझा, कोई ना समझे,
कठपुतली सी मैं।

जो पढ़ जाऊँ, मुकाम बनाऊँ,
कठपुतली सी मैं।
कहें घमण्डी, कुसंस्कारी,
कठपुतली सी मैं।

यही है गाथा, यही कहानी
कठपुतली सी मैं!

मूल चित्र : Photo Grapher via Pexels

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Shivangi Srivastava

I am a person who believes that happiness lies in enjoying little things in life. Love to read. At times prefer to write to pour my heart out on paper. read more...

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