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जो आज मुझे नहीं समझे, उनसे मैं क्या उम्मीद करूँ, मूरत मैं अभी अधूरी हूँ, पूरी होने की आस लिए।
माना कि अभी मैं पूर्ण नहीं,
माटी की बनती मूरत हूँ।
माना कि मुझमें साँस नहीं,
बस आती जाती हवा मात्र।
माना कि मुझमें धैर्य नहीं,
की बाँध सकूं अपना विश्वास।
माना सब कुछ अभी बिखरा है
माना अस्तित्व न निखरा है।
पर मत भूलो मैं हूँ अनंत
कोशिश करती, करती प्रयत्न
निखरेगी मेरी मूरत भी
सुधरेगी मेरी सूरत भी।
जो आज मुझे सम्मान नहीं
अपनी ताकत का ज्ञान नहीं
जैसे जैसे तप जाऊँगी
सूरत अपनी मैं पाऊँगी।
आएगा एक दिन वो ज़रूर,
जब तुम आओगे मेरे ठौर,
तब मूरत सी निखरी मैं भी,
कुछ मंद मंद मुस्काऊंगी।
मेरा भी अस्तित्व एक दिन,
सबके समक्ष आएगा,
ऐसा निखरा ऐसा सुधरा,
लोगों का धैर्य भुलाएगा।
जो आज मुझे नहीं समझे,
उनसे मैं क्या उम्मीद करूँ,
मूरत मैं अभी अधूरी हूँ
पूरी होने की आस लिए।
मूल चित्र : Muskan Sandhu
I am a person who believes that happiness lies in enjoying little things in life. Love to read. At times prefer to write to pour my heart out on paper. read more...
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