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तुम कुछ नहीं करतीं…का हिसाब लगाती है सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

घरेलू महिला और उसके कामकाजी पति दोनों की अहमियत एक समान है क्यूँकि महिलाएं घर में बिना पैसे के पुरुषों की तुलना में ज्यादा काम करती हैं।

घरेलू महिला और उसके कामकाजी पति दोनों की अहमियत एक समान है क्यूँकि महिलाएं घर में बिना पैसे के पुरुषों की तुलना में ज्यादा काम करती हैं।

घर में काम करने वाली महिलाओं के श्रम को पहचानना ज़रूरी है। उनके काम के जरिए घर की आर्थिक हालात को मजबूती मिलती है और देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है।

अकसर लोगों को महिलाओं के काम की कद्र नहीं होती और अगर महिला घर के काम करे, तब एक महिला को घर की मुर्गी के बराबर समझा जाता है। पुरुष समेत पूरा परिवार एक महिला के हाथों की बनाई रोटी खाता है और कहता है, “तुम्हें रोटी बनाने के सिवा आता ही क्या है…”  एक महिला की मेहनत और उसके प्यार की लोगों को कद्र नहीं होती मगर अब सुप्रीम कोर्ट के बयान के बाद लोगों को पता चलेगा कि एक महिला के कामों को कम आंकना समझदारी की बात नहीं बल्कि बेवकूफी है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी जानिए

सुप्रीम कोर्ट ने एक केस की सुनवाई के दौरान बड़ी टिप्पणी की है, जिसमें उसने कहा है-

घरेलू महिला और उसके कामकाजी पति दोनों की अहमियत एक समान है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि महिलाएं घर में बिना पैसे के पुरुषों की तुलना में ज्यादा काम करती हैं। जस्टिस रमन्ना ने कहा है कि इसी तरह एक दिन में महिलाएं घर के सदस्यों की देखभाल के कामों में 134 मिनट स्पैंड करती हैं जबकि पुरुष महज 76 मिनट ही खर्च करते हैं। एक मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह टिप्पणी की और लोगों को अपने बयान से सोचने पर मजबूर कर दिया।

कोर्ट ने दिया रिपोर्ट का हवाला

जस्टिस रमन्ना ने आगे कहा कि साल 2011 की जनगणना के अनुसार करीब 16 करोड़ महिलाएं घरेलू कामकाज में व्यस्त रहती हैं क्योंकि यही उनका मुख्य व्यवसाय है। वही केवल करीब 57 लाख के करीब पुरुष जनगणना में बतौर व्यवसाय घेरलू कामकाज से जुड़े हैं।

जस्टिस रमन्ना ने अपने फैसले में नैशनल स्टैटिकल ऑफिस की रिपोर्ट का भी हवाला दिया है। ‘टाइम यूज इन इंडिया 2019’ नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि औसतन महिलाएं एक दिन में करीब 299 मिनट घरेलू काम करती हैं, जिसके लिए उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता है बल्कि पुरुष औसतन 97 मिनट ही घरेलू काम में खर्च करते हैं।

बिना पैसों का श्रम

महिलाएं औसतन 16.9 प्रतिशत बिना पैसे लिए घरेलू कामकाज करती हैं जबकि 2.6 प्रतिशत घर के सदस्यों की देखभाल में लगाती है। वही पुरुषों का यह औसत 1.7 प्रतिशत और 0. प्रतिशत है।

साथ ही ग्रामीण इलाकों की महिलाओं के लिए भी कोर्ट ने कहा है कि ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के उपर मवेशियों की जिम्मेदारी भी होती है। एक महिला के श्रम को अहमियत देना बेहद आवश्यक है क्योंकि महिलाएं घर के कामों के द्वारा ही जीडीपी में अपना योगदान देती हैं। एक होममेकर का नैशनल इनकम फिक्स करने से ही उनकी कामों को मान्यता देना अहम होगा।

रोजा लक्जमबर्ग ने कहा था, ‘जिस दिन औरतों के श्रम का हिसाब होगा, इतिहास की सबसे बड़ी धोखाधड़ी पकड़ी जाएगी। हजारों वर्षों का वह अवैतनिक श्रम जिसका ना कोई क्रेडिट मिला, ना मूल्य।’ हम जब भी श्रम की बात करते हैं तो मर्द का ख्याल आता है। कभी महिला के लिए श्रम शब्द को सार्थक समझते ही नहीं जबकि महिला द्वारा ही सबसे ज्यादा श्रम किया जाता है, जिसे हम घरेलू कामों की संज्ञा से नवाजते हैं। महिलाओं के घरेलू काम के जरिये ही अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है क्योंकि महिला के घर संभालने मात्र से ही अनेक कार्य संपन्न होते हैं।

कोर्ट की इस टिप्पणी से महिलाओं के श्रम का मोल लोगों को समझ आएगा कि एक महिला सबसे कठिन परिश्रम करती है और लोगों की देखभाल करती है।

मूल चित्र : menonstocks from Getty Images Signature via Canva Pro

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