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हम किसको क्या समझायेंगे, सुनो द्रौपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे…

'सुनो द्रौपदी शस्त्र उठालो' क्यूँकि लगता है अब लड़कियों को अपनी सुरक्षा के लिए न सिर्फ संस्कार बल्कि हथियार भी साथ लेकर चलने की सीख देनी चाहिए।

‘सुनो द्रौपदी शस्त्र उठालो’ क्यूँकि लगता है अब लड़कियों को अपनी सुरक्षा के लिए न सिर्फ संस्कार बल्कि हथियार भी साथ लेकर चलने की सीख देनी चाहिए।

हाल ही में हाथरस में हुए दुष्कर्म के बाद लोगों में आक्रोश है। पीड़िता की माँ और पूरे परिवार के बयान भी अब सामने आ रहे हैं। और पूरा देश एक बार उसी यातना से गुजर रहा है जो लोगों ने 2012 में निर्भया दुष्कर्म के बाद महसूस किया था। इतने सालों में देश की ना सूरत बदली ना ही महिलाओं के लिए हालत! सिर्फ सियासत रची जा रही है। आये दिन कही न कही कोई न कोई दरिंदे किसी महिला के साथ दुष्कर्म कर रहे हैं।

देश की आम जनता से लेकर सेलेब्रिटीज़ इस पर अपना गुस्सा जता रहे हैं। इसी में एक्टर व्रजेश हीरजी ने अपने ट्विटर अकाउंट पर 2012 में आयी पुष्यमित्र उपाध्याय की एक कविता ‘सुनो द्रौपदी शस्त्र उठालो’ साझा की है जिसे लोग खूब पसंद कर रहे हैं।

व्रजेश हीरजी कहते हैं, “हमें शर्मा आनी चाहिए, गांधी जंयती के मौके पर क्या बढ़िया तोहफा पेश किया है गांधी जी की याद में। दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल, मेरे एक मित्र ने बहुत ही शानदार कविता भेजी है जिसे में सुनाना चाहता हूं।”

छोड़ो मेहँदी खडक संभालो,
खुद ही अपना चीर बचा लो,
द्यूत बिछाये बैठे शकुनि,
मस्तक सब बिक जायेंगे,
सुनो द्रौपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे।
कब तक आस लगाओगी तुम,
बिक़े हुए अखबारों से,
कैसी रक्षा मांग रही हो
दुशासन दरबारों से।
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचायेंगे
सुनो द्रौपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आयंगे।
कल तक केवल अँधा राजा,
अब गूंगा बहरा भी है
होठ सी दिए हैं जनता के,
कानों पर पहरा भी है।
तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,
किसको क्या समझायेंगे?
सुनो द्रौपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयंगे।

सुनो द्रौपदी शस्त्र उठालो कविता के एक एक शब्द अभी के हालातों से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं। जहां एक तरफ पीड़िता के परिवार के मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया था वहीं दूसरी और परिवार को अपनी बात रखने का मौका भी नहीं दिया गया है। सरकार ने पहले अपने आदेशों में विपक्षी नेताओं को हाथरस आने से रोका गया, वहीं मीडिया पर भी 7 दिन की पाबंदी लगा दी थी हालंकि अब उसे वापस ले लिया गया है। और अब तमाम नेताओ और मीडियाकर्मी का पीड़िता के घर पर ताँता लग गया है। लेकिन क्या इंसाफ़ मिलेगा?

बलात्कार को एक पॉलिटिकल वेपन की तरफ इस्तेमाल किया जा रहा है

इस केस को देखकर फूलन देवी और भंवरी देवी जैसे केस की याद आती है। शायद अगर दिल्ली, हैदराबाद, हाथरस केस की पीड़िता हमारे बीच होती तो वो इन महिलाओं की तरह ही अपने लिए इन्साफ लेकर रहती। सच में, अब बलात्कार को एक पॉलिटिकल वेपन की तरफ इस्तेमाल किया जा रहा है।

इन कठिन समयों में पीड़िता और उसके परिवार को मार्गदर्शन करने के बजाय प्रशासन के धमकी भरे विडिओ सामने आ रहे हैं। जिस तरह की कार्यवाही अभी चल रही है, ये न केवल उस एक परिवार को परेशान करती है, बल्कि एक संदेश दे रही है, जो आगे चलकर परिवारों को बलात्कार की रिपोर्ट करने से रोकेगी। अगर इस तरह से पूरे परिवार को खत्म करने की धमकी दी जाएगी, नेताओं की सियासत रची जाएगी तो आने वाले समय में शायद और केसेस रिपोर्ट करने में लोग कतराएंगे।

पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू और उत्तर प्रदेश के MLA सुरेंद्र सिंह के बयान

इन दिनों कई नेताओं और चर्चित चेहरों के बयान सामने आ रहे हैं। इसमें पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं कि, बलात्कार के मामलों में वृद्धि के पीछे देश में बढ़ती बेरोजगारी एक कारण है। वहीं उत्तर प्रदेश के MLA सुरेंद्र सिंह कहते हैं कि ऐसी घटनाएं सिर्फ तब ही खत्म हो सकती है जब सभी पैरेंट्स अपनी बेटियों को अच्छे संस्कार देंगे। इस तरह के बयान सिर्फ यही खत्म नहीं होते हैं। लेकिन इन्हें देखकर लगता है कि अगर इस तरह की सोच वाले लोग हमारे लिए काम कर रहे हैं तो वाक़ई हमारी लड़ाई लम्बी है।

हाथरस केस में अब मीडिया पीड़िता के घर पहुंच चुकी है और वही से परिवार वालों के कई मुख्य बयान सामने आये हैं। राजनीतिक दलों की खींचतान के बीच रविवार को पीड़िता के परिवार ने इच्छा जताई है कि मामले की जाँच सीबीआई को न दी जाए। वे सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत न्यायाधीश से पूरे मामले की न्यायिक जाँच करवाना चाहते हैं। पीड़िता की माँ ने कहा कि “आरोपी के समाज वाले हमें मरने की धमकी दे रहे हैं। मुझे बस अपनी बेटी के लिए इन्साफ चाहिए। मैंने अपनी बेटी को उस हालत में देखा है। मेरे दर्द के बारे में तो सोचो। मुझे बस इन्साफ चाहिए।”

इस बार इंसाफ़ कानून के साथ साथ आप भी करें

इंसाफ़ तो अब सबको चाहिए। और इस बार भी सिर्फ एक बच्ची के लिए नहीं बल्कि हर एक औरत के लिए इन्साफ चाहिए। और कैपिटल पनिशमेंट से ऊपर उठकर इंसाफ़ चाहिए। इंसाफ तब ही होगा जब माननीय पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू को सेक्स और रेप के बीच का अंतर समझ आएगा। ऐसे लोगों को समझना होगा कि सेक्स आपसी रज़ामंदी से होता है जबकि रेप में सिर्फ एक व्यक्ति अपनी सत्ता का इस्तेमाल करके किसी के साथ दुष्कर्म करता है। और यही हाथरस में हुआ था। और अगर देश में दिक्क़ते हैं तो उसका इलाज़ बलात्कार करना नहीं है।

अब इंसाफ़ तब होगा जब लड़कियों को अपनी सुरक्षा के लिए अपने साथ अच्छे संस्कार और हथियार दोनों साथ लेकर चलने की सीख दी जाएगी। तो इस बार इंसाफ़ कानून के साथ साथ आप भी करें क्योंकि सुनो द्रौपदी शस्त्र उठालो, अब कोई गोविंद नहीं आएंगे।

मूल चित्र : ePhotocorp from Canva Pro 

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Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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