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अपनी बेटियों को सहना नहीं ‘अब बस’ कहना सीखाएं

आप में से कितनों ने अपनी बेटियों को ये कहा, "वो तुमसे प्यार करते हैं, केयर करते हैं, तुम्हारी सुरक्षा चाहते हैं इसलिए ये सब करते हैं।" 

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आप में से कितनों ने अपनी बेटियों को ये कहा, “वो तुमसे प्यार करते हैं, केयर करते हैं, तुम्हारी सुरक्षा चाहते हैं इसलिए ये सब करते हैं।” 

अगर आप रोज सिर्फ एक लोकल न्यूज़पेपर भी पढ़ते हैं तो महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा का हाल आपको पता ही होगा। ऐसा एक भी दिन नहीं गुज़रता जब ये ख़बरों का हिस्सा नहीं होती। छेड़छाड़, बलात्कार, घरेलू हिंसा, बाल विवाह, ज़बरदस्ती शादी करवा देना, साइबर क्राइम, मर्डर, नवजात बच्चियों को गर्भ में ही गिरा देना या यूँही कहीं सड़क के किनारे छोड़ देना, आदि।

हाँ, ये लिस्ट खत्म नहीं होगी क्योंकि मुझे तो हर दिन एक से एक नए तरीके से हिंसाओं की खबरें पढ़ने को मिलती हैं। ये सब मुझे बहुत विचलित करते हैं लेकिन इनसे से भी ज़्यादा कुछ और है जो मुझे सोचने पर मजबूर कर देते हैं।

अच्छा, आप पहले जान लीजिये इस पोस्ट को लिखने की वजह! 25 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस (इंटरनेशनल डे फॉर द एलिमिनेशन ऑफ़ वायलेंस अगेंस्ट वीमेन) है। इस के तहत 16 दिनों तक जागरूकता अभियान चलाया जाता है। इसी में ये मेरे हिस्से की कोशिश है।

ये भी हिंसा ही है जो अक्सर कोई समझ भी नहीं पाता

हाँ, तो मैंने कभी इमोशनल एब्यूज की खबरें नहीं पढ़ी। मेरे दिन का एक बड़ा हिस्सा न्यूज़ स्क्रॉल करने में बीतता है, फिर भी ऐसी कोई खबर नहीं दिखी! आपने पढ़ी क्या?

मैंने कभी नहीं पढ़ा कि किसी महिला ने अपने पति, परिवार या किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ इमोशनल एब्यूज (भावनात्मक शोषण) या एक अम्ब्रेला टर्म कहूँ तो गैसलाइटिंग के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई हो। हाँ ये भी हिंसा ही है जो अक्सर कोई समझ भी नहीं पाता।

आपके साथ नहीं हुआ तो इसका मतलब ये नहीं कि ऐसा नहीं होता

अब हो सकता है आप कहें कि ऐसा होता ही नहीं होगा। लेकिन ऐसा होता है और ये एक तरह का मेन्टल ट्रॉमा है जो इंसान को अंदर से खोखला कर देता है। कुछ सालों पहले तक इसके बारे में मुझे भी नहीं पता था। लेकिन जब मैंने ये बिहेवियर पैटर्न अपने बेहद करीब महिला के साथ देखा तो मुझे ये समझ आया।

ये एक इंडिपेंडेंट महिला ही हैं जिनकी ज़िंदगी शादी के बाद इमोशनल एब्यूज़ करने वाले पार्टनर की वजह से बिलकुल अलग हो गयी। एक ऐसी लड़की जो नाईट शिफ्ट्स में काम किया करती थी आज वो रात 10 बजे बाद एक कॉल आने से भी घबरा जाती है। एक ऐसी लड़की जिन्होंने बिना रोक टोक वाली ज़िंदगी जी थी वो आज अपने पति की परमिशन के बिना किसी से नहीं मिलती…और भी बहुत कुछ है! लेकिन आज के लिए बस!

आप में से कितने लोगों ने अपनी बेटियों को सहन और एडजस्ट करने में पीएचडी कराई?

ये सब हुआ कैसे? जब उन्हें शुरू में ये सब समझ ही नहीं आया कि ये भी एक वायलेंस है जो उन्हें कमजोर बनाता जा रहा है। वो किसी से कुछ नहीं कहती और बस सहन करती गयी। और जब समझ आया तो उनके हिसाब से बहुत देर हो चुकी थी। अब वो कहती हैं मेरी जॉब भी अब मेरे पास नहीं है और मैं अपनी बेटी को कैसे बड़ा करुँगी। अब अपने पापा पर बोझ नहीं बनना चाहती और सोसाइटी का क्या!

काश इनकी ज़िंदगी में भी वो ‘अब बस!’ वाला पल आ जाए…।

खैर!

प्यार है या इमोशनल एब्यूज?

मुझे लगता है कभी-कभी प्यार और इमोशनल एब्यूज के बीच की लाइन इतनी ब्लर होती है कि इसे विक्टिम समझ ही नहीं पाते। इसीलिए ये जानना बेहद ज़रूरी है कि इमोशनल एब्यूज कहाँ से शुरू होता है और प्यार कहाँ खत्म होता है।

इमोशनल एब्यूज तब होता है जब कोई दूसरे व्यक्ति को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। उदाहरण के लिए, अगर आपके पार्टनर के कॉल करने पर आपका फ़ोन बिजी आये या आप उनसे चेट नहीं कर रहे है और ऑनलाइन हैं, ऐसे में वे आपसे सवाल-जवाब करें, शक करें या सोशल मीडिया साइट्स, ईमेल और अन्य अकाउंट्स पर पासवर्ड जानने की मांग करें तो ये प्यार नहीं है।

ये आमतौर पर तब होता है जब सामने वाला इनसिक्योर हो। ऐसे में सबसे पहले वे आप पर खुद का कंट्रोल करते हैं। वे ये भूल जाते हैं या समझने की कोशिश नहीं करते कि ये कितना हानिकारक है।

कई मामलों में ये ‘मेल ईगो’ या जानबूझकर भी किया जाता है, ताकि आप उनके दबाव में रह सकें।

इमोशनल एब्यूज के कई और भी लक्षण होते हैं, जैसे : बिना कारण बताये चिल्लाना, जल्दी गुस्सा होना और आपको हर बात के लिए दोषी ठहराना। आपके खाने-पीने, रहने, कपड़े आदि पर टॉन्ट करना, दूसरों के सामने आपको नीचा दिखाना, हाथ उठाना, आपके अपनों को शिकायत कर देने की धमकी देना या छोड़ने की धमकी देना, किसी से मिलने, बात पर करने पर रोक-टोक करना आदि।

हम अक्सर इसके शिकार हुए हैं, बिना एहसास किए।

महिलाएं ऐसे रिश्तों में बंधी रहती हैं, आखिर क्यों?

अक्सर महिलाओं को यही सिखाया जाता है कि वो तुमसे प्यार करते हैं, केयर करते हैं, तुम्हारी सुरक्षा चाहते हैं इसलिए ये सब करते हैं। या फ़िल्मी भाषा में कहूँ तो, ‘ये तो उनका प्यार है।’ लेकिन मुझे जिस रिश्ते में घुटन महसूस होती है, जहां मैं खुद को जकड़ी हुई महसूस करूँ, वो प्यार तो नहीं होगा न? लेकिन फिर भी महिलाएं ऐसे रिश्तों में बंधी रहती हैं। आखिर ऐसा क्यों?

ऐसा इसलिए क्योंकि एक औरत को रिश्ते निभाना ही तो सिखाया जाता है। अब ज़िंदगी तो वहीं बितानी है वर्ना कहाँ जाओगी?

लेकिन अब और नहीं। जागिए! अपनी बेटियों को ये सब मत सिखाइये। कभी किसी को एक ऐसे रिश्ते में रहने के लिए मजबूर मत कीजिये जहां उनकी भावनाओं की कद्र न हो। मैं जानती हूँ इसकी कीमत क्या है।

यकीन कीजिये, इस छिपी हुई हिंसा को सरल शब्दों में कहना आसान है, लेकिन जिन लोगों ने इसका सामना किया है वे जानते हैं कि यह बहुत ही जटिल समस्या है।

इसे लिखते हुए मुझे बहुत हेल्पलेस महसूस हुआ। अगर आपके साथ कुछ ऐसा हो रहा है, और आप इसे पढ़ रही हैं तो प्लीज़ ऐसे रिश्ते से बाहर आ जाइये! आप बेहतर डिज़र्व करती हैं!

बस खुद पर विश्वास और दो शब्द, ‘अब बस!’

इमेज सोर्स:  Still from Short Film The Photowall,YouTube

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About the Author

Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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