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अब हटेंगे तुम्हारे श्रम कानून, अब हटेंगे तुम्हारे मानवाधिकार। अब छीना जाएगा तुमसे मज़दूर होने का अहंकार, क्या पता नहीं था- अहंकार सिर्फ इंसानों कि जागीर है ?
नक्काशी की माँ जहाँ खाना बनाने का काम किया करती थी, अब वही परिवार से कुछ पैसा आ जाया करता था खर्चे के लिए। दिन और हालात दोनों गंभीर थे।
इस बीच काफी शुभचिंतक भी मिले जिनका मानना था कि मुझे फेसबुक को समय देना चाहिए जिससे मैं नेटवर्किंग कर सकूँ, पर मुझे ना तो नेटवर्क की चाह थी ना ही ज़रूरत।
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