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अब हटेंगे तुम्हारे श्रम कानून, अब हटेंगे तुम्हारे मानवाधिकार। अब छीना जाएगा तुमसे मज़दूर होने का अहंकार, क्या पता नहीं था- अहंकार सिर्फ इंसानों कि जागीर है ?
वाह रे मज़दूर तेरी क्या औकात है,
ज़िंदा है तो बंधुआ है, मर गए तो राख है।
आज के अखबार में तुम्हारी खबर छपी है,
बड़े किस्मत वाले हो,
छाए दिन रात हो।
सुना है बोझ बड़ा देते हो,
राज्यों का माल सुखा देते हो।
ज़रा सी इमारतों कि नीव क्या डाल ली,
खुद को इंसान बोलने लगते हो।
क्या? क्या पूछ रहे हो- इंसान कौन है?
अच्छा सवाल है- इंसान कौन है?
अरे वही जो प्लेन में आये थे,
प्लेन में आ कर घर में आराम फरमाए थे।
तुम्हारे घर का पता नहीं,
रोटी कपड़ा तुम पर कभी जचां नहीं।
मुरझाया सा शरीर है,
पैसा जेब में होता नहीं।
देखो उन इंसानो को,
सब तिजोरी में इकट्ठा करते हैं,
एपिडेमिक आया तो सुख चैन से घर में सोते हैं।
तुम्हारी गलती है,
तुम्हारी गलती है कि घर नहीं है,
घर होता तो तिजोरी होती,
तिजोरी होती तो पैसा होता,
पैसा होता तो तुम भी आराम करते,
बस इतना सा करने से तुम भी इंसान बनते।
ना ना ना गलती की है तुमने,
खुद को इंसान समझने की।
सजा भुगतनी होगी,
ज़िंदगी कि उलटी गिनती अब तुम्हें गिननी होगी।
अब हटेंगे तुम्हारे श्रम कानून,
अब हटेंगे तुम्हारे मानवाधिकार।
अब छीना जाएगा तुमसे मज़दूर होने का अहंकार,
क्या पता नहीं था- अहंकार सिर्फ इंसानों कि जागीर है ?
जो घर में रहते हैं,
जिस घर में तिजोरियां होती हैं।
बोला था, समझाया था कार खरीदनी चाहिए,
बड़े निकले सड़क पे घर जाने को।
हमें क्या मतलब कहाँ सोते,
पर ऐसे रेल पटरी पर नहीं सोना चाहिए,
अरे! थोड़ा मालगाड़ियों का भी सोचना चाहिए,
जाना पढ़ गया ना तुम्हें कुचल के।
बोला है समझाया है,
ऐसे सड़क पर मत पड़े मिला करो,
तुम्हें कुचल देने को हमें मत मजबूर किया करो।
पता नहीं – राज्यों का सामान जाता है माल गाड़ी में,
उन घरों के लिए,
जिन घरों में तिजोरिया हैं।
अभी भी समय है,
सुधर जाओ।
खुद को इंसान बोलने कि भूल मत करते जाओ,
औकात में आ जाओ।
औकात में आओगे तो यह शोषण बुरा नहीं लगेगा।
शोषण बुरा लगने का समय नहीं है श्रमिकों,
मानवाधिकार का रोना रोने का समय नहीं श्रमिकों,
श्रम कानून के बारे में आवाज़ उठाने का समय नहीं है श्रमिकों,
क्यूंकि
इंसानों के घर और कारोबार बनने हैं,
जिन घरों में तिजोरियां रखी जाएंगी।
मूल चित्र: Unsplash
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