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ये किस्सा ना जाने कितने ही घरों में घटित हो रहा होगा…

नक्काशी की माँ जहाँ खाना बनाने का काम किया करती थी, अब वही परिवार से कुछ पैसा आ जाया करता था खर्चे के लिए। दिन और हालात दोनों गंभीर थे।

नक्काशी की माँ जहाँ खाना बनाने का काम किया करती थी, अब वही परिवार से कुछ पैसा आ जाया करता था खर्चे के लिए। दिन और हालात दोनों गंभीर थे।

नक्काशी 10 साल की थी जब उसके पिता ने उसे पहली बार सिग्रट से जलाया था। पिता को शराब पीते कई बार देखा था। माँ को मार खाते भी कई बार देखा था पर उस दिन खुद को झुलसते नक्काशी पहली बार देख रही थी। यह उसके लिए अकल्पनीय और देहला देने वाली घटना थी।

घर का माहौल कुछ ऐसा था कि माँ बहुत बीमार रहती थी जिस कारण खाना नक्काशी ही बनाती थी। एक छोटा भाई था 3 साल का, नंगे पैर भागा फिरता। नक्काशी कभी उसे संभालती और कभी माँ को। पिता को काम करते कभी देखा नहीं था, ना ही नक्काशी जानती थी कि पिता ने पहले कभी काम किया भी या नहीं।

नक्काशी की माँ जहाँ खाना बनाने का काम किया करती थी, अब वही परिवार से कुछ पैसा आ जाया करता था खर्चे के लिए। दिन और हालात दोनों गंभीर थे। ज़रूरतें ज्यादा और पैसा तो जैसे आते ही आँख से ओझल हो जाता था। डर था कभी मालकिन ने पैसा देना बंद कर दिया तो क्या होगा ? या कभी पिता ने मारते मारते पैसा छीन लिया तब क्या होगा?

दिन निकल रहे थे कि एक दिन माँ को तेज़ बुखार आया। हर बार बुखार आता और 3 दिन में चला जाता लेकिन इस बार बुखार जैसे जिस्म में बस गया हो। 7 दिन बीत चुके थे और माँ की चीखें नक्काशी के कानों को जकड़ रहीं थी। कहाँ जाएँ, किसे बुलाए, किसके साथ जाएं, कुछ समझ नहीं आ रहा था। माँ तो जैसे चारपाई पर दम तोड़ने का इंतज़ार कर रही थी। उन्ही में से एक दिन पिता झूमता हुआ आया और नक्काशी की माँ जो बुखार में तप रही थी उस पर बरस पढ़ा। लग रहा था आज तक का सारा बैर एक ही बार में मार-मार कर निकाल देगा।

एक तरफ छोटी सी नक्काशी अपने पिता को रोकने की कोशिश कर रही थी तो दूसरी तरफ माँ जोर जोर से चीख रही थी। नक्काशी को सुनाई दिया कि पिता मारते-मारते जोर से चिल्ला रहा था, “इसमें भी वही कीटाणु है यह हम सबको लगा देगी। इसे मार के ख़तम कर देता हूँ। इसी कीटाणु की वजह से देश बंद हुआ है और मुझे इसके साथ सड़ना पड़ रहा है। इससे पहले यह हमें कीटाणु दे, मैं इसे ही मार दूंगा।”

यह सुन नक्काशी सन्न रह गई। पीछे की तरफ मुड़ी और वहां से एक कील लगा डंडा उठा लाइ और पिता से बोली, “तुमने अब अगर माँ पे हाथ उठाना बंद नहीं किया तो इसी कील तो तुम्हारे अंदर गाड़ दूंगी।” पिता नक्काशी को देख हैरान था। उसकी हैरानी में अपने शरीर के लिए दर्द और डर दोनों दिखाई दे रहा था। वह जानता था कि 12 साल कि नक्काशी यह कदम उठा सकती है क्यूंकि यहाँ सवाल उसकी बीमार माँ का था। अगले 2 मिनट में ही घर में सन्नाटा था।

माँ मर चुकी थी। पिता घर से निकल चुका था। और घर में रह गए थे नक्काशी और उसका 3 साल का भाई।

यह एक काल्पनिक किस्सा है जो ना जाने कितने ही घरों में घटित होता है। नक्काशी का स्कूल, भाई की पढ़ाई, घरेलु हिंसा, गरीबी तो ऐसे मुद्दे हैं जिन पर अब सवाल भी दुःख देते हैं क्यूंकि इन हालातों में कोई बदलाव नहीं है।

नक्काशी की माँ की मौत के लिए कौन ज़िम्मेदार है? हिंसा या गरीबी? यह कैसे पता चलेगा कि नक्काशी की माँ की बिमारी का कारण कोई गंभीर समस्या थी या वह वायरस जिसकी वजह से पूरा देश बंद है? क्या देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली इसका जवाब दे पाएगी? अगर बिमारी का कारण वायरस था तो अब नक्काशी, उसके 3 साल के भाई और उसके पिता को क्या सुविधा की ज़रूरत है जिससे वो अपनी ही नहीं बल्कि आस पास के लोगों के संक्रमण को भी रोक सकें? अगर इस तरह के परिवारों को वो सुविधा मुहैया नहीं हो पा रही है तो ज़िम्मेदार कौन है?

मूल चित्र : Canva

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