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क्या मीराबाई चानू की जीत से लड़कियों को न सिर्फ़ सम्मान बल्कि अनेक राज्यों से आई इन बच्चियों के प्रति लोगों की मानसिकता में बदलाव आएगा?
दो दिन से समाचार पत्रों की सुर्ख़ियों में भारतीय वेटलिफ़्टर मीराबाई चानू छाई हुई हैं और छाना भी चाहिए क्योंकि मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में भारत को पहला रजत पदक जो दिला दिया है।
पूरे देश से उन्हें निरंतर बधाइयाँ मिल रही हैं। ओलंपिक की शुरुआत में ही साइखोम मीराबाई चानू ने वेटलिफ्टिंग में भारत के लिए रजत पदक हासिल किया है। उन्होंने 49 किलोग्राम भार में यह पदक जीता है। शायद इस लेख के आते-आते भारत के खाते में कुछ और पदक आ जाएँ।
इस लेख में मीराबाई चानू की उपलब्धि से अधिक इन राज्यों की बच्चियों के बारे में बात करुँगी क्योंकि एक जीत का नाम तो बहुत होता है पर वह क्षणिक ही होता है कुछ दिन बाद जब ओलंपिक समाप्त होंगे सब मीराबाई को भी भूल चुके होंगे और उनके जैसे हजारों खिलाड़ियों को भी।
खिलाड़ी देश की शान को बढ़ाते हैं और पूरे देश के सभी राज्यों के सभी खिलाड़ियों को समान सुविधा बिना किसी लिंग भेद के या असमानता के मिलनी ही चाहिए पर क्या उत्तर पूर्व के राज्यों से आने वाले खिलाड़ियों को सच में सभी सुविधा मिलती हैं? क्या देश की इन बेटियों को हमारे दूसरे राज्यों अनगिनत कठिनाइयों और भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता?
मीराबाई चानू उत्तर पूर्व राज्यों की उन हजारों लड़कियों में से एक हैं जो अपने राज्यों में छोटी छोटी सुविधाओं के लिए तरस जाती हैं और अपने सपनों को पूरा करने अपने राज्यों को छोड़ती हैं।
उन्हें शिक्षा और रोजगार के अवसर की तलाश में दिल्ली जैसे बड़े और संपन्न राज्यों में आना ही पड़ता है। देश की राजधानी दिल्ली में ऐसे हजारों बच्चे अपने खेल, शिक्षा, व्यापार आदि क्षेत्रों में उज्ज़वल भविष्य की तलाश में आते हैं और लड़कियों की संख्या भी बड़ी होती है।
यदि हम भारत के इन उत्तर पूर्वी राज्यों के परिवारों को ध्यान से देखेंगे तो पाएँगे कि यहाँ मातृसत्तात्मक प्रधान परिवार अधिक पाए जाते हैं। उत्तर भारत के पारंपरिक समाज की अपेक्षा में इन राज्यों की संस्कृति बहुत खुलापन लिए हुए होती है या हमें लगता है क्योंकि कहीं न कहीं उत्तर भारत में पितृसत्तात्मक संस्कृति प्रधान होती है।
जब इन राज्यों की लड़कियां बिलकुल विपरीत परिवेश में इन बड़े शहरों में आती हैं तो उन्हें न जाने कितनी ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। दिल्ली या देश के अनेक बड़े शहरों के बारे में यह खबरें सामने आती ही रहती हैं कि वहाँ उत्तरपूर्व की लड़कियों से अनेक बार दुर्व्यवहार किया जाता है।
पिछले कुछ वर्ष के आँकड़े देखेंगे तो न सिर्फ़ लड़कियाँ बल्कि लड़कों को भी परेशान किये जाने के समाचार प्रकाशित होते रहते हैं। कुछ ही दिन पूर्व हमने एक वीडियो देखा था जिसमें कुछ छिछोरे लड़के पूर्वोत्तर राज्यों की लड़कियों को छेड़ रहे थे।
लड़कियों के अनुसार, जब वो रात में हौज़ खास इलाके में खड़ी थीं तो कुछ लड़कों ने उन्हें रोका और उनसे उनकी रात भर की कीमत पूछी। ऐसी एक नहीं अनेक घटना होती ही रहती हैं। 2019 में इन्हीं राज्यों के एक लड़के को बुरी तरह पीटा गया।
मेरा यही प्रश्न है यदि इन राज्यों के बच्चों को शिक्षा से लेकर खेलकूद तक की सभी सुविधाएँ उनके राज्यों में मिलने लगें तो शायद उनकी कुछ परेशानी कम हो। खेल के मामले में इन राज्यों से काफी ऊर्जा दिखाई देती है, आवश्यकता सिर्फ़ सुविधा और प्रोत्साहन बढ़ाने की है।
नोंगमैथेम रतनबाला देवी, नगांगोम बाला देवी, लालरेमसियामी, लवलीना बोरगोहाईं, जमुना बोरोआदि ऐसी ही अनेक खिलाड़ी हैं जो असम, मणिपुर, मिजोरम आदि राज्यों से आती हैं और फुटबॉल, मुक्केबाजी और हॉकी जैसे खेलों में देश का नाम रौशन करने में लगी हुई हैं।
इन राज्यों से विभिन्न खेलों में कुछ महिला खिलाड़ी के नाम सुनाई देते हैं पर उन्हें उतनी प्रसिद्धि नहीं मिलती।
आशा करते हैं कि भारत के लिए मीराबाई चानू ने जो रजत पदक जीता है उनसे इन उत्तर पूर्व की लड़कियों को न सिर्फ़ सम्मान मिलेगा बल्कि इन राज्यों से आई इन बेटियों के प्रति लोगों की मानसिकता में बदलाव आएगा।
इसी आशा के साथ मीराबाई चानू और उन जैसी सभी खिलाड़ियों को बहुत शुभकामनाएँ, जो विषम परिस्थितियों के बाद भी अपना हौसला नहीं खोते और अपने देश का नाम रौशन करते हैं।
मूल चित्र: via Twitter
I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...
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