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यादें अच्छी हों या बुरी, हमेशा दिल में रहती हैं। ये साल भी इक्कीसवीं सदी की मानव सभ्यता में एक नए और न भूलने वाले सबक के लिए याद रखे जाएँगे।
2020 और 2021 दोनों ऐसे साल रहे हैं जिन्होंने बहुत कुछ इस सभ्यता को सिखाया है। अब ये साल 2021 जाने को है पर अनगिनत टीस के साथ। कुछ अच्छी बुरी यादों के साथ इस साल को विदा करेंगे।
अपनी इस कविता से आज याद करूंगी कि यादें अच्छी हों या बुरी, हमेशा दिल में रहती हैं। ये साल भी इक्कीसवीं सदी की मानव सभ्यता में एक नए और न भूलने वाले सबक के लिए याद रखे जाएँगे।
तुम्हें याद हो या न पर मुझे सब याद है
इस विचित्र वर्ष की एक एक बात याद है
जीवन को अचानक रुकते देखना याद है
भागती जिंदगी को थमते देखना याद है
एक कीटाणु के आगे बेबस विज्ञान याद है।
अनोखे मंज़र इस साल के मुझे सब याद हैं
आग उगलता सूरज और गर्मी से पिघलती सड़कें
बाहर लॉकडाउन और अन्दर खाली पड़े डिब्बे
बंद खिड़की से बाहर ताकती भूखी कातर निगाहें
तुम्हें याद हो या न पर मुझे ये बैचेनी याद है।
पिछले वर्ष देखी मजदूर की जिन्दगी याद है
नंगे पाँव चलते अपने गाँव को लौटते रेले याद हैं
बच्चों को कंधे पे टांगे ,घर की तलाश में लौटते याद हैं
बसों रेल की ख़तम न होने वाली लम्बी कतारें याद हैं
तुम्हें याद हो या न पर मुझे ये बेबसी तकलीफ़ याद हैं।
जो कभी न हुआ वो इस साल में मैंने देखा
लाखों का सामान फिर भी अमीरों को मरते देखा
पल पल बदलते मौसम सा लोगों को बदलते देखा
एक सिलेंडर की खातिर अपनों को भटकते देखा
तुम्हें याद हो या न पर मुझे ये मंज़र सब याद हैं।
इन्सान को इन्सान की गलती दिखाता
नए नए मंज़र दिखाता ये अनूठा साल याद है
इस वर्ष मिली कुदरत की हर सीख याद है
ये अनोखा साल 2021 मुझे याद है।
इमेज सोर्स: primipil via Canva Pro
I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...
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