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क्या गर्मी सिर्फ़ आपको लगती है, घर की बहू को नहीं?

सीरियल में अगर बहू कुछ गलत करती तो उस दिन वही चर्चा का विषय होता और रीमा को सुन सुन कर ऐसा लगता जैसे उसे ही सुनाया जा रहा हो।

सीरियल में अगर बहू कुछ गलत करती तो उस दिन वही चर्चा का विषय होता और रीमा को सुन सुन कर ऐसा लगता जैसे उसे ही सुनाया जा रहा हो।

क्या बातें बनाने से घर का काम हो जाता है? घर का काम करने के लिए अपना आराम छोड़ना पड़ता है। पर ये बात क्या पति, बच्चों और बाकी  सदस्यों को समझ आती है?

कुछ देर से रीना के दिमाग में यही विचार बार-बार आते पर किस से कहे अपनी उलझन? आखिर दुनिया में सब कहते हैं पति परमेश्वर हैं तो हिम्मत करके रुद्राक्ष से उसने बात करने की ठानी। 

“रुद्राक्ष, आजकल मैं बहुत जल्दी थक जाती हूँ। दोनों बच्चे जल्दी-जल्दी हो गए, फैमिली प्लानिंग का भी हमें समय नहीं मिला। अब मैं पूरे दिन बच्चों को देखूं या बाकी लोगों की फरमाइश पूरी करूँ, तुम्हीं बताओ?” रीमा ने प्यार से रुद्राक्ष के बालों में हाथ फिराते हुए कहा।

“ये तो सब जानते हैं खाने का मेन्यू बना देने से खाना नहीं तैयार हो जाता, खाना बनाने के लिए तो घंटों काम करना पड़ता है। ऊपर से दोनों दीदी गर्मी की छुट्टियों में बीस दिन से बच्चों के साथ हैं। सब घूमने चले जाते हैं, बच्चे छोटे हैं कह के मुझे घर पर तो छोड़ जाते हैं पर खाना बनाने के समय तो कोई नहीं कहता बच्चे छोटे हैं।”

रुद्राक्ष ने उसकी बात तो सुनी पर तभी बाहर से दीदियों के बच्चे रीमा को बुलाने आ गए, चाय का समय हो गया था। रीमा ने ढोकले बनाने की तैयारी कर रखी थी तो वो बच्चों के साथ चली गई। 

यह रोज की बात थी। बहुत गर्मी है कहकर, सारी ननदें और बच्चे ए सी में बैठ जाते और वहीं से खाने में क्या नया बनेगा फरमाइश करते। टीवी पर सास-बहू वाला सीरियल लगते ही दूरदर्शन वाली बहू की बात शुरू हो जाती। सीरियल में अगर बहू कुछ गलत करती तो उस दिन वही चर्चा का विषय होता और रीमा को सुन सुन कर ऐसा लगता जैसे उसे ही सुनाया जा रहा हो।

काम करती रीमा सबकी बातें सुनती और सोचती क्या सीरियल की बहू से उसकी तुलना सही है। उसका मन होता कोई तो थोड़ी मदद कर दे पर हिम्मत ही नहीं होती।

एक दिन उसने हिम्मत जुटा कर मांजी से कहा, “दीदी को सब्जी काटने दे दूँ क्या?”

“खाने के लिए बहुत देर हो गई है। क्या चार दिन अपनी ननद को खाना भी नहीं खिला सकती तुम?” सास की कड़कती आवाज़ से आगे कभी फिर मदद के लिए कहने की हिम्मत भी टूट गई। 

सब उसे अकेले ही करना है यही सोचती हुई रीमा जल्दी जल्दी कपड़े धोने लगी क्योंकि बिजली जाने का समय हो रहा था। आज कितनी ज्यादा गर्मी है उसकी सास ने आवाज़ लगाई, “बहू ज़रा शरबत तो बना दे सबके लिए।”

गर्मी क्या घर की बहू को नहीं लगती है, रीमा ने सोचा। आखिरकार वह तो इन्सान है और हाड़-मांस की ही बनी है। काश रुद्राक्ष कभी उसकी हालत को समझ पाए।

भारत में आज भी अधिकांश घरों में महिलाएँ ही महिलाओं की तकलीफ़ नहीं समझना चाहती, उन्हें कहीं न कहीं बहू या भाभी अपनी दुश्मन ही लगती है। रीमा ने सोचते हुए अपने सर को झटका और शरबत के गिलास लेकर बाहर कमरे में सबको देने लगी। 

तभी रुद्राक्ष ने कमरे में प्रवेश किया और शरबत के गिलास उसके हाथ से ले लिए और बोला, “रीमा अब तुम यहाँ ए सी में बैठो, सुबह से काम में लगी हो तुम्हें भी आराम की जरुरत है। आज का खाना मैं और दोनों दीदी बना लेंगी।”

रीमा को रुद्राक्ष की बात सुनकर लगा जैसे पहली बार वह उसका सच्चा जीवनसाथी बना हो। सच में परिवार में अगर जीवनसाथी आपकी बात समझ ले तो जीवन कितना आसान हो जाता है। 

 

मूल चित्र: Still from Short Film Juice, YouTube

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SHALINI VERMA

I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...

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