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स्त्री हूँ स्त्री, नहीं मैं किसी की जमीन जायदात…

यह स्त्री की बात है, नहीं किसी की जमीन जायदात है, है अधिकार हमें भी गरिमा से जीने का, इसमें भीख मांगने वाली क्या बात?

यह स्त्री की बात है, नहीं किसी की जमीन जायदात है, है अधिकार हमें भी गरिमा से जीने का, इसमें भीख मांगने वाली क्या बात?

कानून किताबों का गहना है,
लेकिन अब अमीरों ने इसे लूट लिया।
कहां जाए अब रोना लेकर के,
अब गरीबों का मुंह सबने है बंद किया।

हाथ जो उठा करती थी उसके दर पर भी,
अब तो उसका दर भी बिक गया,
दर दर भटक के भी जाए कहां,
कि इसका भी अब स्ववित्तपोषितकरण हो ही गया।

समानता कहां, नाम में भी आर्टिकल 15 अब सोचे है,
यह बिकता है बस कानून की किताबों में, मेरा मन अब बोले है।
चुनाव के बाज़ार में, इसकी मारम मार है,
जहां देखो वहां बस अब इसकी ही तकिया-कलाम है।

विधि को भी अब सुविधा दो,
किताबों में है इसका दम घुट गया,
हो ना पाई ईमानदारी तो बिक गए,
अमीरों का बन के दला (हमदर्द) बकर रह गया।

यह स्त्री की बात है, नहीं किसी की जमीन जायदात है,
है अधिकार हमें भी गरिमा से जीने का,
इसे भीख मांगने वाली क्या बात?
होश में आओ अब सुधार जाओ,
यहां नहीं अब कृष्णा, यहां काली का वास है।

बंद करो सब यह पीड़ा, रहने दो इंसानियत को अब,
खुद भी जिओ और जीने दो, ध्यान रहे तुम अब संविधान बनो।

मूल चित्र : vinaykumardudam fro Getty Images Signature via Canva Pro

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रंजनी मणि त्रिपाठी

Occupation -Lawyer , Blogger, Author, Social activities, " If my view at any one person to intratect and understanding my inner surface how to I explained and why I explained this is too much for me" ((कोई भी बदलाव एक ही दिन नहीं होता, उसके लिए सदिया जगनी पड़ती है)) ।।रंजनी श्रीमुख शांडिल्य।। read more...

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