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ये हैं बॉलीवुड की 5 महिला गीतकार जिनके लिखे गीत गुनगुना रहे हैं हम

क्या आप मशहूर बॉलीवुड गानों के बोल लिखने वाली महिलाओ को जानते हैं? आइये आज रूबरू होते हैं बॉलीवुड की 5 महिला गीतकार से...

क्या आप मशहूर बॉलीवुड गानों के बोल लिखने वाली महिलाओ को जानते हैं? आइये आज रूबरू होते हैं बॉलीवुड की 5 महिला गीतकार से…

बॉलीवुड की फिल्में अपने गानों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। हिंदी फिल्मों में हर परिस्त्थिति के ऊपर गाने होते हैं, बिना गानों के हिंदी फिल्मों की कल्पना करना भी असंभव है। हिंदी फिल्मों के गाने अपने लिरिक्स और म्यूजिक के लिए जाने जाते हैं। हमारी फिल्म इंडस्ट्री में जावेद अख्तर, प्रसून जोशी, अमिताभ भट्टाचार्य और मनोज मुन्तशिर जैसे महान लेखक हैं।

लेकिन अगर हम बॉलीवुड की महिला गीतकार और पटकथा लेखकों की ओर रुख करें तो हमारे हाथ निराशा ही लगती है। बॉलीवुड में महिला गीतकारों की संख्या देखकर तो आश्चर्य होता है। आज भी बहुत कम महिलाएं सक्रिय रूप से गानें लिख रही हैं। बॉलीवुड में महिला प्रधान फिल्मों का दौर भले ही क्यों न चल रहा हो लेकिन यह कहना कि सिनेमा में महिलाओं का ‘गोल्डन पीरियड’ चल रहा है, यह ठीक नहीं है क्यूंकि मनोरंजन इंडस्ट्री सिर्फ परदे के आगे से नहीं बनती। एक फिल्म के पीछे भी बहुत से लोग जुड़े होते हैं और डिपार्टमेंट्स में महिलाओं की दशा आज भी खेदजनक है। लेकिन फिर भी बॉलीवुड की महिला गीतकार की बात करें तो इन गीतकारों को नज़रअंदाज़ नहीं कर पाएंगे आप।

तो आइये बॉलीवुड की महिला गीतकारों की सूची पर एक नज़र डालते हैं

कौसर मुनीर

जब हम बॉलीवुड की महिला गीतकार की बात करते हैं तो ‘कौसर मुनीर’ सूची में सबसे ऊपर नज़र आती हैं।वह मुंबई के बांद्रा में पैदा हुईं और पली-बढ़ी, उन्होंने जेवियर कॉलेज, मुंबई से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक किया। उन्हें हमेशा संगीत और गीतों का शौक था। उन्होंने 1997 में निर्मल पांडे से शादी की थी लेकिन सन 2000 में दोनों ने डाइवोर्स ले लिया। कौसर मुनीर ने 2001 में नवीन पंडिता से शादी की। उनकी एक बेटी सोफी पंडिता भी हैं। उन्होंने ने अपने करियर की शुरुआत टेलीविजन धारावाहिक ‘जस्सी जस्सी कोई नहीं’ से की थी। कौसर मुनीर ने ‘टशन’ के गाने ‘फलक तक’ से फ़िल्मी गाने लिखने की शुरुआत की। आज कौसर मुनीर एक जाना माना नाम है। कौसर ने सीक्रेट सुपरस्टार, डिअर ज़िन्दगी, बजरंगी भाईजान, शमिताभ, हीरोपंती आदि सुपरहिट फिल्मों के गाने लिखें हैं। कौसर का गाना ‘लव यू ज़िन्दगी’ एक बहुत ही खूबसूरत गाना है।

अन्विता दास गुप्तन

अन्विता दास गुप्तन का जन्म 20 फ़रवरी 1972 को नई दिल्ली में हुआ था। उनके पिता आर्मी में कार्यरत थे, जिस कारण से उन्होंने भारत के हर छोटे-बड़े हिस्से में अपना बचपन व्यतीत किया है। अन्विता दास गुप्तन ने यशराज फिल्म्स से जुड़ने से पहले 14 सालों तक एडवरटाइजिंग कंपनी में काम किया। उन्होंने ‘यशराज प्रोडक्शंस’ से लेखन में करियर की शुरुआत की फिर उन्होंने धर्मा प्रोडक्शंस व एरोस प्रोडक्शंस के साथ काम किया। अभी वह ‘क्लीन स्लेट’ प्रोडक्शन हाउस में लेखक हैं। अन्विता लिरिक्स के साथ पटकथा भी लिखती हैं। अन्विता ने बैंग-बैंग, दोस्ताना, आई हेट लव स्टोरीज, जैसी फिल्मों के गाने लिखे हैं। अन्विता का गाना ‘लंदन ठुमकदा’ (क्वीन) तो हम सभी का फेवरेट है।

प्रिया सरैया

प्रिया सरैया एक भारतीय प्लेबैक सिंगर और लिरिसिस्ट हैं। उन्होंने छह साल की उम्र से गाना शुरू कर दिया था। उन्होंने मुंबई के गंधर्व महाविद्यालय से हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन का प्रशिक्षण लिया और ट्रिनिटी कॉलेज ऑफ म्यूजिक, लंदन की शाखा से मुंबई में पश्चिमी संगीत का प्रशिक्षण लिया है।
प्रिया ने शोर इन द सिटी, हम-तुम शबाना, बदलापुर, हिंदी मीडियम, मेरी प्यारी बिंदु आदि जैसी फिल्मों के गाने लिखे हैं। ए बी सी डी 2 का ‘सुन साथिया’ गाना तो मेरे पसंदीदा गानों में से एक है।

रश्मि

रश्मि विराग एक भारतीय गीतकार और लिरिसिस्ट हैं। रश्मि ने फिल्म सिटीलाइट्स के ‘मुसकुराने’ गीत के लिए 60 वें फिल्मफेयर अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ गीतकार का पुरस्कार जीता। रश्मि और विराग मिश्रा की जोड़ी साथ में रश्मि विराग के नाम से प्रचिलित है। रश्मि का गाना ‘खामोशियाँ’ तो हम सभी की जुबां पे आज तक है।

अभिरुचि चंदा

अभिरुचि चंदा एक भारतीय फिल्म गीतकार हैं, जिन्होंने लगातार फिल्मों में काम किया है। अक्टूबर और दिल जंगली जैसी हिट बॉलीवुड फिल्में में अभिरुचि के काम को सरहाया गया। चंदा ने पत्रकारिता और विज्ञापन जैसे क्षेत्रों में भी हाथ आजमाया, अंततः गीतिका और संवाद लेखन में अपना जुनून तलाशा। चंदा ने कपूर एंड संस और एनएच 10 जैसी हिट फिल्में दी हैं। चंदा ने अपने संवादों और गीत के बोलों में एक सांकेतिक न्यूनतावादी शैली है। वह एक सामान्य मानव जीवन की चीजों से प्रेरणा लेती हैं। अभिरुचि का गाना ‘ठहर जा’ हर युवा जुड़ाव महसूस करते हैं।

एक तरफ हर दूसरी हिंदी फिल्म में एक नयी हीरोइन लांच होती हैं तो वहीँ आज भी जब हम दूसरे क्षेत्र जैसे- निर्देशन, पटकथा लेखन और भी अन्य विभागों में महिलाओं की संख्या ना के बराबर है, इसके पीछे क्या कारण है? सोचने पर यही लगता है कि समाज की सोच में बदलाव नहीं हुआ है, ऐसा तो नहीं है कि महिलाएं लेखन कार्य में निपुण नहीं होतीं।

हमारे पास ‘अमृता प्रीतम’ जैसे अनेकों उदहारण हैं जो जिनसे यह साबित होता है कि महिलाओं की लेखन में एक अलग प्रकार की कला है। कहीं ना कहीं हमें इस बात पर विचार करने की आवश्यकता है कि आखिर वो क्या कारण है जिस वजह से आज 21वीं शताब्दी में भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बहुत कम महिला कम्पोज़र्स, लिरिसिस्ट ही हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि अभी भारतीय समाज महिलाओं को बॉस बनते हुए नहीं देखना चाहता और परिवार भी लिरिक्स लेखन को महिलाओं के लिए उचित नहीं मानता। लेकिन जिस तेज़ी से महिलाएं हर क्षेत्र में अपने परचम लहरा रही हैं, उससे हमें उम्मीद है कि आने वाले समय में ये संख्या बढ़ती ही जायेगी।

मूल चित्र : Twitter/IG

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