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अमृता प्रीतम की कविताएं कहती हैं कि उन्होंने कभी भी समाज के बंधनों को नहीं माना, समाज के दकियानूसी उसूलों पर सवाल उठाने में अमृता कभी पीछे नहीं रहीं।
आज अमृता की १०१ वीं जयंती है और उनकी गजलें, उनकी शायरियां आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं शायद इसलिए आज भी हम अमृता प्रीतम को हम एक शायरा, कहानीकार और नारीवादी के रूप में याद करते हैं।
जब भारतीय महिला लेखकों या शायराओं की बात करते हैं तो अमृता का नाम सबसे पहले आता है। अमृता ने उस समय समाज के उन दकियानूसी नियमों को आइना दिखाया था। उन्होंने उस ज़माने में ही अपने जीवन की किताब का हर पन्ना खुद लिखा जबकि आज भी कई महिलाएं समाज के डर के कारण अपने जीवन को अपने नियमों के अनुसार जीने का साहस नहीं दिखा पाती हैं।
अमृता ने विभाजन का आघात और एक नए राष्ट्र के जन्म और उदय को देखा। और उन्होंने भारत माता के विभाजन के समय में हुई खुद की पैदाइश को इस कविता में बहुत खूबसूरती से बताया है।
बंटवारे के दर्द को बयां करने वाली इस नज़्म ने विभाजित होने से लगातार इनकार किया है। बंटवारे का दर्द सरहद के आर-पार फैला था तो यह नज़्म किसी सरहद के अंदर नहीं रही। इससे भी आगे यह नज़्म बंटवारे जैसी हिंसा का शिकार लोगों की ज़ुबान बनने के लिए भाषाओं, मुल्कों और सरहदों की दूरियां मिटाती चली गयी।
प्रीतम की ज़िन्दगी हमेशा से ही कश्मकश में रही, ११ साल की छोटी सी उम्र में भगवान् में विश्वास खो दिया। उन्होंने बहुत छोटी उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया था। उनकी शुरूआती कविताओं में ही उनके संघर्षपूर्ण जीवन की झलक मिलती है।
अमृता को उनके बाग़ी स्वाभाव के लिए भी जाना जाता था। उन्होंने अपनी कविताओं में खुलकर अपने व्यक्तित्व प्रदर्शन किया। उन्होंने यह साफ़ लिखा, “जहां आज़ाद रूह की झलक पड़े, समझना वही मेरा घर है!”
अमृता ने खुद को कभी भी समाज के बंधनों में नहीं बांधने दिया। समाज की छोटी सोच और दकियानूसी उसूलों पर सवाल उठाने में वह कभी पीछे नहीं रहीं ।
जब अमृता प्रीतम की बात होती है तो उनके क्रांतिकारी स्वभाव की, समाज के ढकोसले भरे नियमों को लेकर उठायी गयी उनकी आवाज़ की याद आती है। उनके द्वारा लिखी गयी ये लाइनें समाज के रिवाज़ों पर क्या खूब सवाल उठाती हैं। अमृता प्रीतम ने महिलाओं के अधिकारों की बात को खुलकर रखा। उनके आज़ाद ख़याल कहीं न कहीं हर महिला को प्रभावित करते हैं।
अमृता ने अपने जीवन की साहसी और दर्दनाक अनुभवों को अपने महानतम साहित्यिक कार्यों में छोड़ा।
अमृता की शादी तो १६ साल की छोटी सी उम्र में हो गयी थी लेकिन उन्होंने खुद लिखा की उनका रिश्ता कुछ खास अच्छा नहीं था। अमृता को जाने माने शायर साहिर लुधयानवी से मुहब्बत हो गयी फिर उन्होंने अपनी शादी को खत्म कर दिया और घर छोड़ दिया। अमृता और साहिर के रिश्ते को लेकर बातें बहुत हुईं लेकिन साहिर ने समाज के डर से कभी उस रिश्ते को मान्य नहीं ठहराया। अमृता ने साहिर के लिए और साहिर ने अम्रृता के लिए बहुत सी शायरियां व कविताएं लिखीं।
प्रीतम ने अपनी आज़ादी को बिना सोचे-समझे छीन लिया, चाहे वह धूम्रपान, शराब पीने और बाल काटना हो। स्वतंत्रता की उनकी उग्र भावना, जिसने उनके शब्दों और उनके कार्यों दोनों को चिह्नित किया, अंततः एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता – समान प्रेम के लिए उबला हुआ था।
साहिर से रिश्ता ख़त्म होने के बाद अमृता को एक बार फिर मुहब्बत हुई इस बार एक पेंटर ‘इमरोज़’ से हुई। अमृता अपने आखिरी दिनों तक बिना शादी किये इमरोज़ के साथ रहीं। उनके ज़िन्दगी के संघर्ष उनके शब्दों में नज़र आते हैं। अपनी ज़िन्दगी की कहानी को अमृता ने इन लाइनों में बयां किया है ।
उनकी कविता ‘मैं तैनू फेर मिलांगी‘ बहुत ही प्रसिद्ध है। यह कविता उन्होंने अपने आखिरी दिनों में इमरोज़ के लिए लिखी थीं। वह पेंटर थे और अमृता ने इन लाइनों में ये बात उन्होंने क्या ख़ूबसूरती से बयान की है
वर्तमान समय के छात्र अमृता को एक कवि और गद्य लेखक के रूप में जानना चाहते हैं, जो उनके जीवन जीवन सहित सभी विलुप्त होने वाली घटनाओं को खारिज करते हैं। अमृता जिन्होंने जीवन में बहुत अधिक आक्रोश का सामना किया, अब पाठकों के साथ आमने सामने हैं। अमृता जीती थीं और इसलिए उन्होंने और महिला लेखकों के लिए उन्होंने राह आसान की।
मूल चित्र : Facebook/Twitter/Pinterest
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