कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
कैसे ढूंढें ऐसा काम जो रखे ख्याल आपके कौशल और सपनों का? जुड़िये इस special session पर आज 1.45 को!
लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी के माध्यम से, फिल्म छपाक में एसिड से पीड़ित लड़कियों के दर्द और संघर्ष को नज़दीक से महसूस किया जा सकता है।
आज आपको हर रोज़ अखबार, चैनल, सोशल मीडिया और समाचार आदि पर एसिड अटैक की तमाम खबरें पढ़ने और देखने को मिल जाएंगी। एसिड अटैक पीड़ित पर दुनिया भर की चर्चा और सेमिनार भी देखने सुनने को मिल जाएंगे पर ये चर्चा किसी नतीजे पर पहुंचे बिना ही समाप्त हो जाती हैं।
पुरुष सत्तात्मक समाज में पुरुष अपने अलावा किसी और को महत्व नहीं देता, सबक सिखाने के लिये, थोड़ा सा तेज़ाब किसी भी सिरफिरे, मनचले को इतनी ताकत दे देता है कि वो किसी भी मासूम लड़की की ज़िंदगी तबाह कर दे, उसके सपनों को राख कर दे या फिर उसके भविष्य को झुलासा दे।
उसी तरह लक्ष्मी अग्रवाल का जीवन भी एसिड अटैक ने तबाह कर दिया था। एक लड़की की खुद की कोई इच्छा मायने नहीं रखती, ये बहुत ही कम उमर में उसे समझा दिया था, तेज़ाब से जलाकर।
लक्ष्मी अग्रवाल जब 15 साल की थीं, तब उनकी उम्र से दुगने उम्र, लगभग 32 साल का एक युवक उन्हें शादी के लिए मजबूर करने लगा। लक्ष्मी ने साफ़ मना कर दिया क्यूंकि लक्ष्मी एक सिंगर बनना चाहती थीं।
उस आदमी के बहुत तरीके से धमकाने के बाद भी जब लक्ष्मी नहीं मानी, तो 22 अप्रैल 2005 को 10:45 पर खान मार्केट में लक्ष्मी के ऊपर तेज़ाब फेंका गया। उस समय वह बेहोश हो गई। जब उन को होश आया तब उनकी चमड़ी गिर रही थी। लक्ष्मी अग्रवाल के कई ऑपरेशन सरकारी अस्पताल में हुए, मगर अब भी पहले जैसी ना जिन्दगी रह गई, ना शक्ल।
लक्ष्मी ने खुद ही इंटरव्यू में यह बात कही कि यदि वे अपने घर में इस बात की चर्चा करतीं, तो उनका स्कूल जाना बंद करा दिया जाता। इस डर से वह सब सहते गयीं और अंत में जो अंजाम हुआ उसने सब तबाह कर दिया। बाद में उनके घरवालों के पूर्ण सहयोग से ही वे खुद को संभल पायीं और उन्होंने ये मैसेज दिया कि सब अपने घरवालों से खुल कर बात करें।
यदि घर वाले दोस्ताना व्यव्हार करें, सहयोग करें, समस्या को गौर से सुनें, साथ ही हर बात के लिए लड़कियों को ही जिम्मेदार ना मानें, तो लड़कियाँ खुल कर अपनी बात घर वालों को बता पाएँगी। साथ ही अपराधी लड़कियों को अकेला समझने की भूल नहीं करेंगे।
लक्ष्मी ने अन्यएसिड अटैक सर्वाइवर्स के साथ मिलकर एसिड अटैक सर्वाइवर्स के लिए तत्काल न्याय और पुनर्वास की मांग को लेकर भूख हड़ताल कर दी थी। जब वह इंटरनेशनल वुमन ऑफ करेज अवार्ड प्राप्त करने के लिए यू.एस. में थीं, तब उन्होंने घटना के दौरान अपनी स्थिति का वर्णन करते हुए एक कविता भी लिखी थी। उन्हें यू.एस. की प्रथम महिला मिशेल ओबामा और अन्य ने एसिड हिंसा के खिलाफ अभियान के लिए सराहा भी था।
लक्ष्मी अग्रवाल ने हिम्मत नहीं हारी उन्होंने एसिड अटैक के खिलाफ जंग लड़ी और अपने साथ साथ बाकी पीड़ित लड़कियों के लिए भी न्याय मांगी। आगरा का शिरोज़ केफे और लाइब्रेरी ऐसे ही एसिड पीड़ित लड़कियों द्वारा चलाया जाता है यह सभी लड़कियां अब पहले से काफी मजबूत हो चुकी हैं।
जब शरीर के किसी हिस्से पर एसिड गिराया जाता है, तो उस हिस्से की त्वचा के टीशू नष्ट हो जाते हैं, जिन्हें पहले जैसा होने में लंबा वक्त लगता है और कई बार तो वे इस लायक रह भी नहीं जाते कि फिर से उस अवस्था में लौट सकें। इसके इलाज की प्रक्रिया काफी धीमी, लंबी और साथ ही महंगी है। यह खर्च वहन करना आसान नहीं है। आश्चर्य है कि फिर भी एसिड अटैक को गंभीर अपराध की श्रेणी में न रखकर आरोपियों को साधारण बेल पर छोड़ दिया जाता है। स्टॉप एसिड अटैक कैम्पेन चलाने वाले आलोक दीक्षित ने बताया कि इस मामले को सरकार अगर गंभीरता से ले तो शायद ऐसी वारदातें कम हो जाएं।
ऐसिड कई जगह, इस्तेमाल किया जाता जाता है, रंगाई, कांच, बैटरी बनाने और इसी तरह के दूसरे कई काम जैसे टॉयलेट क्लीनर के रूप में इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है। ऐसे में अगर एसिड काउंटर से न बेचा जाए तो भी ऐसे बहुत सारे रास्ते हैं जहां से एसिड हासिल किया जा सकता है। एसिड खरीदने वालों को अब पहचान पत्र दिखाना होता है। एसिड बेचने वाले दुकानदार उनका नाम पता दर्ज़ करते हैं। यह सब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शुरू हुआ है। लेकिन यह अलग तरह का अपराध अभी भी नहीं माना जाता।
मुझे लगता है, एसिड अटैक को जघन्य अपराध की श्रेणी में रखना चाहिए, और इसके लिए कड़े से कड़ा कदम उठाना चाहिए। पीड़िता को इलाज का पूरा खर्चा मिलना चाहिए, जो एसिड से अंधी या विकलांग हो गई हैं, उन्हें पेंशन मिलना चाहिए। उन्हें दोबारा मुख्यधारा में जोड़ने के लिए पूरे समाज को उन्हें दिल से स्वीकार करना चाहिए ।
छपाक फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया गया है ताकि अधिक से अधिक लोग इसे देखकर इस अपराध की गम्भीरता समझ सके। लड़कियाँ एसे विकृत मानसिकता के लोगों से निश्चित दूरी बनाएं और जागरुक रहें।
छपाक फिल्म के माध्यम से, एसिड से पीड़ित लड़कियों के दर्द और संघर्ष को नजदीक से महसूस किया जा सकता है। औरत को हासिल करने में नाकाम पुरुष उसके अस्तित्व और सम्मान का को खाक में मिलाने के लिए और सबक सिखाने के लिए एसिड का प्रयोग करते हैं, उनका मकसद होता है कि ‘यदि तू मेरी नहीं हुई तो मैं तुझे किसी और की भी नहीं होने दूंगा और जिस खूबसूरती के घमंड में तू मुझे मना कर रही है वह खूबसूरती ही नष्ट कर दूंगा।’
मगर लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन के ऊपर बनी यह फिल्म साबित करती है कि उसके चेहरे को तो जला दिया मगर सपनों को नहीं जला सका।
फिल्म के माध्यम से एक बहुत अच्छा संदेश समाज को गया है। आइये हम सब पीड़ितों के हक के लिए आवाज़ उठाएं।
मूल चित्र : YouTube
फिल्म छपाक का #MuhDikhai 2.0 कौन सी मुँह दिखाई की तरफ इशारा है
फिल्म छपाक का ट्रेलर आपको इमोशनल कर देगा
फ़िल्म छपाक का सोशल एक्सपेरिमेंट क्या है और ये क्या दर्शाता है, आइये जानें
खूबसूरत दिल की मल्लिका मिस यूनिवर्स ग्रेट बिट्रेन का दिल जीतने वाला दौरा!
अपना ईमेल पता दर्ज करें - हर हफ्ते हम आपको दिलचस्प लेख भेजेंगे!