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टूट गयी जो गुड़िया वक़्त के आघात से, उसको फिर से गढ़कर नयी सी कर रही हूँ, समय को बदलकर साथ समय के चल रही हूँ, ऐ ज़िंदगी तेरी कहानी मैं ख़ुद ही लिख रही हूँ।
समय को बदलकर साथ समय के चल रही हूँ ऐ ज़िंदगी तेरी कहानी मैं ख़ुद ही लिख रही हूँ ।
टूट गयी जो गुड़िया वक़्त के आघात से उसको फिर से गढ़कर नयी सी कर रही हूँ ऐ ज़िंदगी तेरी कहानी मैं ख़ुद ही लिख रही हूँ।
बैठे थे मुझको जो कमज़ोर मान के उनके नाम भी निशानी कर रही हूँ ऐ ज़िंदगी तेरी कहानी मैं ख़ुद ही लिख रही हूँ।
करे सितम जो वक़्त भी हँस कर ही सह रही हूँ ऐ ज़िंदगी तेरी कहानी मैं ख़ुद ही लिख रही हूँ।
मानोगे तुम भी मुझको सोना खरा ही एक दिन इम्तिहान की अगन में हर पल जो जल रही हूँ ऐ ज़िंदगी तेरी कहानी मैं ख़ुद ही लिख रही हूँ।
मूल चित्र : Pexels
Dreamer , creative , luv colours of life , Teacher , love adventure, singer , Dancer , P☺️
मैं कविता हूँ
खुद से खुद करती प्रश्न, कौन हूँ मैं…कौन हूँ मैं?
नारी हूँ नारी मैं-किस्मत की मारी नहीं
रंजनी हूँ! मैं, अब सिर्फ मैं हूँ
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