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जिंदगी की प्रताड़ना से बाहर निकलना आवश्यक

हे नारी ज़िंदगी की हर प्रताड़ना को अंदर से निकाल, तू बाहर निकल स्वच्छंद बना अपनी पहचान, एक मिसाल कायम कर बन परिवार व देश की ढाल।

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ये दहेज प्रथा कब तक चलेगी?

हम नवचेतन युग के नवयुवक हैं मां, ये दहेज प्रथा कब तक चलेगी? इस पर अंकुश लगाने के लिए हमें ही कदम बढ़ाना होगा।

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मेरा नया परिवार मेरा इंतज़ार कर रहा है

जिस कलेजे के टुकड़े को रात-रात भर जाग कर, पाल-पोस कर इतना बड़ा किया, आज उसे माता-पिता से दूर जाने में ज़रा सा भी अफ़सोस नहीं था।

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ससुराल में पहला दिन और रस्मों की कुछ खट्टी-मीठी यादें

ससुराल में पहला दिन'-ये शीर्षक पढ़कर मुझे अहसास हुआ कि ये दिन, किसी भी नई बहु के लिए एक परीक्षा से कम नहीं।

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मेरे बेटे जब तूने मुझे दिया जन्म

जब भी मेरा दिल धड़का, जब भी मैं कमज़ोर पड़ी, तुमने अपने नन्हे-नन्हे हाथ-पाँव से मुझे एहसास दिलाया, 'माँ, मैं तुम्हारे पास आऊँगा। माँ मैं ठीक हूँ!'

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थोड़ा सा रूक जाओ ना माँ, मेरा बचपन लौटकर आएगा नहीं अतीत से

क्या होगा ऑल-राउंडर बनकर? कुछ मेडल्स और सर्टिफ़िकेट में इज़ाफ़ा और माँ-बाप की नाक थोड़ी सी ऊंची हो जाएगी? बस इतना ही!

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